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नि‍र्भया के दोषियों को डेथ वारंट जारी होने के बाद अब क्‍या हैं विकल्‍प

निर्भया कांड के चार दोषियों को कोर्ट ने 22 जनवरी 2020 को सुबह 7 बजे फांसी देने का आदेश दिया है। इसके लिए पटियाला हाउस ने डेथ वारंट जारी किया है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 07 Jan 2020 05:28 PM (IST)Updated: Tue, 07 Jan 2020 05:42 PM (IST)
नि‍र्भया के दोषियों को डेथ वारंट जारी होने के बाद अब क्‍या हैं विकल्‍प

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। 16 दिसंबर 2012 की रात वसंत विहार में चलती बस में युवती से हुए सामूहिक दुष्कर्म के मामले में निचली अदालत द्वारा डेथ-वारंट जारी होने के बाद अब दोषियों की गर्दन अब फांसी के फंदे से ज्यादा दूर नहीं है। हालांकि, दोषियों के पास अब भी कुछ कानूनी विकल्प खुले हैं, लेकिन इसके जरिए अब वह ज्यादा दिनों तक बच नहीं पाएंगे। जिस तरह से बीते दिनों एक ही दिन में सुनवाई करके सुप्रीम कोर्ट ने एक दोषी की पुर्नविचार याचिका काे खारिज कर दिया। उससे साफ है कि अगर दोषी कानूनी विकल्प के लिए जाते हैं तब भी उन्हें ज्यादा दिनों तक राहत नहीं मिलने वाली।

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पुर्नविचार याचिका हो चुकी है खारिज

हाई कोर्ट अधिवक्ता प्रशांत मनचंदा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद दोषियों के पास पुर्नविचार याचिका का विकल्प होता है। इस पर सुनवाई चैंबर के अंदर ही होती है। सुनवाई करके इस पर तत्काल फैसला किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि दोषी अक्षय द्वारा दायर की गई पुर्नविचार याचिका को 18 दिसंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि फैसले पर पुनिर्वचार करने का कोई आधार नहीं है। ऐसे में अब पुर्नविचार याचिका का विकल्प नहीं है।

उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) का प्रयोग कर सकता है दोषी

अधिवक्ता प्रशांत मनचंदा ने बताया कि पटियाला हाउस कोर्ट द्वारा डेथ-वारंट जारी होने के बाद अब दोषियों के पास उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) दायर करने का विकल्प खुला है। उपचारात्मक याचिका के लिए कोई समयसीमा का प्रावधान नहीं है। यह याचिका फांसी की सजा देने से एक दिन पहले तक सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा सकती है। यह याचिका किसी वरिष्ठ अधिवक्ता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय वरिष्ठ न्यायमूर्तियों की पीठ के समक्ष ही दाखिल की जा सकती है। याचिका पर सुनवाई करने या नहीं करने का फैसला तीन सदस्यीय पीठ बहुमत के आधार पर करती है।

दया याचिका

अधिवक्ता प्रशांत मनचंदा ने बताया कि फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद दोषी सजा के लागू होने से एक दिन पहले तक राष्ट्रपति के समक्ष 14 दिन के अंदर दया याचिका दायर कर सकता है। दया याचिका को गृह मंत्रालय के जरिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है और इस पर अंतिम निर्णय राष्ट्रपति को लेना होता है। अब यह राष्ट्रपति के विवेक पर है कि वे दया याचिका को स्वीकार करते हैं या नहीं।

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