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Mass Religion Conversion: मतांतरण के खेल में खुला नापाक मंसूबा, सामने आए चौंकाने वाले तथ्य

यह कैसी विडंबना है। हाल के दिनों में मतांतरण को लेकर देश में तमाम साजिशें सामने आई हैं जिनमें मासूमों को भी नहीं बख्शा जा रहा है उसे देखते हुए एक कड़ा केंद्रीय कानून आवश्यक हो गया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 26 Jun 2021 10:40 AM (IST)Updated: Sat, 26 Jun 2021 10:48 AM (IST)
Mass Religion Conversion: मतांतरण के खेल में खुला नापाक मंसूबा, सामने आए चौंकाने वाले तथ्य
पुलिस द्वारा गिरफ्तार मतांतरण के आरोपित जहांगीर और उमर गौतम। फाइल

नई दिल्‍ली, मनु त्यागी। कमजोर तबका हमेशा एक सरल निशाना रहा है। चाहे वोट लेना है तो फुसला लीजिए। भीड़ दिखानी है तो जुटा लीजिए। किसी भी गलत काम में धकेलना हो तो उसके लिए भी जाल में फंसा लीजिए। अपने धर्म की कथित चिंता है तो जनसंख्या बढ़ाने को मतांतरण करा लीजिए। हर जगह इनकी घेरेबंदी बहुत आसानी से हो जाती है। यह तबका देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। इसको गरीब वर्ग कहते हैं। इसीलिए इस पर सभी की नजरें रहती हैं। इसी कड़ी में गत दिनों देशभर में हजारों लोगों विशेषकर मूक-बधिर बच्चों के मतांतरण का मामला उजागर हुआ। ऐसे बच्चे जिनके जीवन में पहले ही मौन है, समाज के अपराधियों ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। आदित्य, मन्नू जैसे तमाम बच्चों को पैसे, नौकरी और शादी के लालच में बहला-फुसलाकर उनका धर्म परिवर्तित करा दिया।

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वास्तव में मतांतरण किसी व्यक्ति की उपासना पद्धति में बदलाव मात्र नहीं होता है। दरअसल इससे आस्थाएं बदल जाती हैं। पूर्वजों के प्रति भाव बदल जाता है। जो पूर्वज पहले पूज्य होते थे, मतांतरण के बाद वही घृणा के पात्र बन जाते हैं। खानपान बदल जाता है। पहनावा बदल जाता है। संस्कार बदल जाते हैं। नाम बदल जाते हैं। जिनका अर्थ खुद को भी नहीं पता होता ऐसे नाम रख दिए जाते हैं। आदित्य उमर हो जाता है। सामाजिक दृष्टि से मतांतरण का वास्तविक अर्थ राष्ट्रांतरण अधिक लगता है। शायद इसीलिए स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था कि अगर कोई मतांतरण होता है तो एक हिंदू घट गया ऐसा नहीं है, बल्कि देश में एक शत्रु बढ़ जाता है। महात्मा गांधी भी मतांतरण का तीव्र विरोध करते थे। स्वामी जी और गांधी जी ने तो उस दौर में मिशनरियों द्वारा भारतीयों को ईसाई बनाने के षड्यंत्र पर अपने भाव व्यक्त किए थे, लेकिन आज एक और धर्म समुदाय के भटके हुए लोग इस आपराधिक काम में जुट गए हैं। निश्चित रूप से देश विभाजन के समय गांधी जी ने इसकी कल्पना नहीं की होगी।

दरअसल मतांतरण के इस खेल में गरीबों और असहाय लोगों को पैसे का लालच देकर फंसाया जाता है। जाहिर है इसे बगैर बड़े स्तर से आर्थिक सहयोग के संचालित करना संभव नहीं है। हमारा देश तो स्वाधीनता से पहले से मतांतरण के इस जाल में फंसता रहा है। हां, पहले मिशनरी वाले हमें निशाना बनाते थे। अब इस्लाम धर्म के कुछ भटके हुए लोग इस कुकृत्य में शामिल हो गए हैं। चूंकि भारत के लोग अपने हिंदू धर्म की सांस्कृतिक मान्यताओं से भावनात्मक तौर पर इतने गहरे जुड़े होते हैं कि उन्हें इनसे अलग करना आसान नहीं होता है।

इसे देखते हुए भारतीयों को अपने धर्म से अलग करने के लिए मिशनरियों ने ढेरों पाखंड रचे। नए-नए हथकंडों का इस्तेमाल किया। उन्होंने सबसे पहले अलग-अलग राज्यों-झारखंड, छत्तीसगढ़, पंजाब, उत्तराखंड तथा उप्र आदि में गरीब और असहाय लोगों को निशाना बनाया। आज भी ऐसे धर्म प्रचारक जो खुद ही भ्रमित हैं, अलगाव के दलदल में हैं, राष्ट्रहित की परिभाषा नहीं जानते, वे इस वर्ग को निशाना बना रहे हैं। गुमराह कर रहे हैं। हां, इनका कायदा मिशनरियों से कुछ अलग है। ये लोगों को बड़े सपने दिखाते हैं। साफ है इस तरह के बहकावे में आदमी की सोचने-समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है। ये अपनी बातों से ऐसा माहौल रचते हैं कि बच्चे, युवा, महिला सब उनके जाल में फंस जाते हैं। वे उन षड्यंत्रकारियों के मूल मंतव्य को नहीं समझ पाते। मतांतरण के आरोप में हाल में जिन लोगों को पकड़ा गया है, उनका ब्रेनवाश करने का तरीका इतना महीन था कि सुरक्षा एजेंसियां भी इसे समझने को मनोविज्ञानी का सहयोग ले रही हैं। ऐसे में एक आम आदमी को इनके चंगुल में फंसने में कितनी देर लगेगी।

इन लोगों ने ऐसी-ऐसी किताबें तैयार कर रखी हैं कि उनको पढ़ने के बाद किसी का भी मन भटक जाए। इनकी ‘शांति मार्ग’ जैसे शीर्षक से प्रकाशित पुस्तकें कोख को फैक्ट्री बताती हैं। यह कौन सा शांति मार्ग है? पहले नौकरी देते हैं, शादी कराते हैं और फिर उनका दुरुपयोग करते हैं। सोचिए उन स्वजनों ने तो लाचारी में अपने बच्चों को मूक-बधिर संस्थान में शिक्षा-दीक्षा को भेजा था, लेकिन यहां तो एकाएक उनके बच्चों की पहचान ही बदल दी गई। उनका धर्म बदल दिया गया। यह कैसी विडंबना है। यदि धर्म के ये स्वयंभू ठेकेदार वाकई गरीबी उन्मूलन का भाव रखते हैं तो क्या उसके लिए मतांतरण की जरूरत है? क्या आप किसी को दो वक्त की रोटी तभी देंगे जब वह अमर नहीं अब्दुल होगा? निश्चित रूप से उनकी भावना ऐसी नहीं थी। यदि उनमें जरूरतमंदों की मदद का भाव होता तो मूक-बधिर बच्चे गायब नहीं होते। अब तो मतांतरित बच्चों को मानव बम बनाने और देश के खिलाफ साजिश रचने जैसी बातें सामने आ रही हैं। निश्चित रूप से अब ऐसे कुकृत्यों पर अंकुश लगाने के लिए मतांतरण विरोधी एक केंद्रीय कानून बनाने पर विचार किया जाना चाहिए।


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