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देखरेख के लिहाज से लाल किला को निजी हाथों में सौंपा जाना गलत नहीं, विशेषज्ञों ने किया समर्थन

एएसआइ से जुड़े रहे पुरातत्वविदों का कहना है कि सुविधाएं बेहतर करने का कार्य निजी हाथों में सौंपा जाना गलत नहीं है।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 03 May 2018 06:13 PM (IST)Updated: Fri, 04 May 2018 08:36 AM (IST)
देखरेख के लिहाज से लाल किला को निजी हाथों में सौंपा जाना गलत नहीं, विशेषज्ञों ने किया समर्थन
देखरेख के लिहाज से लाल किला को निजी हाथों में सौंपा जाना गलत नहीं, विशेषज्ञों ने किया समर्थन

नई दिल्ली (वीके शुक्ला)। दिल्ली के लाल किला में सुविधाएं बेहतर किए जाने के कार्य को निजी कंपनी डालमिया को देने को लेकर कई राजनीतिक दल तरह-तरह के आरोप लगा रहे हैं। कुछ दल तो लाल किला को बेचने तक की भी बात कह रहे हैं। वहीं, एएसआइ से जुड़े रहे पुरातत्वविदों का कहना है कि सुविधाएं बेहतर करने का कार्य निजी हाथों में सौंपा जाना गलत नहीं है। हालांकि निजी कंपनी के प्रवेश से स्मारक को कोई नुकसान न पहुंचे, इसपर नजर रखी जानी चाहिए।

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आर्कलॉजी के क्षेत्र में बेहतर काम करने के लिए पदमश्री से सम्मानित आरएस बिष्ट भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में संयुक्त महानिदेशक रह चुके हैं। बिष्ट कहते हैं कि यदि लाल किला में सुविधाएं बेहतर करने के लिए कार्य निजी कंपनी को दिया गया है तो यह गलत कदम नहीं है।

दरअसल, एएसआइ मजबूरियों के कारण जो सुविधाएं बेहतर करने का काम ठीक से नहीं कर पा रहा था। अब वे कार्य निजी कंपनी करेगी जबकि स्मारक के संरक्षण का कार्य एएसआइ ही करेगा। डॉ. राकेश तिवारी कुछ साल पहले तक एएसआइ के महानिदेशक रहे हैं।

वह कहते हैं, 'मुझे नहीं पता है कि इस मामले में सहमति ज्ञापन (एमओयू) में क्या है? मगर मीडिया के माध्यम से पता चला है कि संरक्षण का कार्य निजी कंपनी को नहीं दिया गया है। मंत्री जी ने भी टीवी चैनल पर इस बारे में अपना वक्तव्य दिया है। इसमें कुछ भी गलत नहीं लगता है। मगर स्मारक का ध्यान भी रखा जाना जरूरी है। मैं समझता हूं कि इस बारे में जरूर प्रावधान किया गया होगा।'

केएन दीक्षित एएसआइ के संयुक्त महानिदेशक रहे हैं। बकौल दीक्षित, 'मैंने लाल किला के मामले में सहमति ज्ञापन नहीं देखा है इसलिए बहुत कुछ नहीं कह सकता हूं। मगर यदि संरक्षण का कार्य कंपनी को नहीं दिया गया है तो कुछ भी गलत नहीं है।'

डॉ. केके मोहम्मद एएसआइ के उत्तरी क्षेत्र के निदेशक रहे हैं। वह भी केएन दीक्षित की बात का समर्थन करते हैं। उनका भी यही कहना है कि अभी उन्होंने एमओयू नहीं देखा है। मगर यदि सुविधाएं बेहतर करने का काम निजी कंपनी को दिया गया है तो कुछ भी गलत नहीं किया गया है।

एजीके मेनन पुरातत्वविद हैं और लंबे समय से इंटेक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चरल हैरिटेज) से जुड़े हैं। मेनन कहते हैं कि वह स्मारकों का कार्य निजी कंपनियों को देने के विरोधी हैं। लेकिन, यदि पर्यटकों की बेहतरी के लिए इसे किया जाता है तो सरकार इसे करे। हालांकि एएसआइ चीजों पर पूरी नजर रखे और अपनी जिम्मेदारी में काम कराए। अब भविष्य में यह देखने की बात होगी कि वहां किस तरह का काम होता है।


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