Delhi: स्टील उद्योग से निकलने वाले वेस्ट से बनेंगी देश की सड़कें, इकॉलोजी को होगा बड़ा फायदा
केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीएसआइआर) ने स्टील जगत की जानी मानी भारतीय कंपनी एएम/एनएस इंडिया ने अपने वेस्ट मटेरियल से सड़क निर्माण की तकनीक ट्रांसफर के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किया है। इससे वेस्ट का बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीएसआइआर) ने स्टील जगत की जानी मानी भारतीय कंपनी एएम/एनएस इंडिया ने अपने वेस्ट मटेरियल से सड़क निर्माण की तकनीक ट्रांसफर के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किया है। इस मौके पर मंगलवार को भारतीय इस्पात मंत्रालय में सचिव नगेंद्र नाथ सिंह और एएम/एनएस इंडिया में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट मनु कपूर मौजूद रहे।
इसके तहत सीएसआइआर स्टील कंपनी को एक ऐसी तकनीक मुहैया कराएगी, जिसके तहत इससे निकलने वाले वेस्ट मटेरियल का इस्तेमाल सड़क निर्माण में किया जा सकेगा। इस मौके पर सीएसआइआर के निदेशक प्रो. मनोरंजन पैरिदा, डा. प्रदीप कुमार, डा. रविंद्र कुमार, सतीश पांडेय मौजूद रहे। बता दें कि सीएसआइआर की स्थापना भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की एक घटक प्रयोगशाला के रूप में वर्ष 1952 में दिल्ली में की गई थी। संस्थान राजमार्ग और सड़क परिवहन प्रौद्योगिकी के प्रमुख क्षेत्रों में व्यवसाय को उच्च गुणवत्ता और विश्व स्तर पर स्वीकार्य अनुसंधान और परामर्श सेवाएं प्रदान करता है ।
देश में करीब दो से तीन बिलियन टन एग्रीगेट की जरूरत
इस मौके पर दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए सचिव नगेंद्र नाथ सिंह ने कहा कि इस बाबत अब तक चार अन्य स्टील कंपनियों के साथ भी करार किया जा चुका है। इनमें आर्सेलर मित्तल निप्पन स्टील इंडिया, जिन्दल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड, टाटा स्टील, राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड और एएम/एनएस इंडिया प्रमुख रूप से शामिल हैं। उन्होंने कहा कि सड़क निर्माण के लिए उपयोग में आने वाले एग्रीगेट का एक हिस्सा ही इस कंपनी द्वारा मुहैया हो सकता है। यह देश में सड़क निर्माण की मांग का महज एक फीसद है। उन्होंने कहा कि देश में करीब दो से तीन बिलियन टन एग्रीगेट की जरूरत है।
इस तकनीक के उपयोग से स्टील इंडस्ट्री को यह फायदा होगा कि उसका एक बड़ा हिस्सा मुक्त हो जाएगा। इसका उपयोग वह अनयत्र कर सकते हैं। सोसाइटी को यह फायदा होगा कि इस वेस्ट का बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा। इसके अलावा इकोलाजी को भी यह लाभ है कि सड़क निर्माण में एग्रीगेट के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पहाड़ों को तोड़ने से रोका जा सकेगा। उन्होंने कहा कि स्टील उद्योगों के साथ इलेक्ट्रिक सेक्टर से निकलने वाले वेस्ट पर भी सीएसआइआर की पैनी नजर है।
प्रतिवर्ष लगभग 19 मिलियन टन स्टील स्लैग का उत्पादन
इस अवसर पर समारोह के मुख्य अतिथि सिन्हा जी ने बताया की देश में प्रतिवर्ष लगभग 19 मिलियन टन स्टील स्लैग का उत्पादन होता है, जो की वर्ष 2030 तक बढ़कर 60 मिलियन टन हो जाएगा। इसके साथ-साथ काफी बड़ी मात्रा में स्टील स्लैग विभिन स्टील प्लांट्स में कचरे के रूप में एकत्रित हुआ पड़ा है।
स्टील स्लैग को रोड निर्माण में प्रयोग होने वाली प्रोसेस्ड स्टील स्लैग एग्रीगेट में परिवर्तित कर स्टील स्लैग का वैज्ञानिक तरीके से निष्पादन किया जा सकता है। उन्होंने संस्थान के वैज्ञानिको सेदेश भर में फैले हुए छोटे-छोटे स्टील प्लांट्स के लिए भी स्टील स्लैग के निष्पादन के लिए तकनिकी विकसित करने का आवाहन किया।
स्टील कंपनी से निकलने वाला वेस्ट एक बड़ी चुनौती
कपूर का कहना है अभी तो यह ट्रायल है। हम सरकार की गाइडलाइन का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने इसका लाभ गिनाते हुए कहा कि स्टील कंपनी से निकलने वाला स्लैग वेस्ट का अगर सड़क निर्माण में उपयोग होता है तो पर्यावरण पर इसका बेहद अनुकूल असर पड़ेगा। स्टील कंपनी का वेस्ट डंप बड़ी तादाद में एकत्र है। कंपनियों के लिए भी इसका निस्तारण एक बड़ी चुनौती है।
सड़क निर्माण में इस वेस्ट के उपयोग से केंद्र सरकार की सड़क गति योजना को और स्पीड मिलेगी। इसके अलावा देश में प्रधानमंत्री विजन को भी आगे बढ़ाया जा सकेगा। इससे बुनियादी ढांचे को तेजी से विकसित किया जा सकेगा। इस बाबत उन्होंने रूस में स्टालिन के दौर की बनी सड़कों का जिक्र करते हुए कहा कि आज भी ये बेहद मजबूत हैं। उन्होंने इसके तीन लाभ बताते हुए कहा कि इस तकनीक के उपयोग से सड़कों की गुणवत्ता, लागत और टिकाऊपन पर बड़ा असर पड़ेगा। आज हमारी सड़के बारिश में बह जाती हैं। इस तकनीक के उपयोग से इस प्रवृत्ति को रोका जा सकेगा। इसके साथ सड़क के निर्माण में आने वाले प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग पर भी रोक लगेगी।
स्टील स्लैग रोड की मोटाई भी होगी कम
स्टील स्लैग रोड रिसर्च परियोजना के प्रोजेक्ट लीडर एवं प्रधान वैज्ञानिक श्री सतीश पांडेयजी ने बताया की प्रोसेस्डस्टील स्लैग सेबन ने वाली रोड की थिकनेस भी साधारण रोड की तुलना में कम होगी इससे रोड निर्माण में आवश्यक सामग्री की जरूरत कम पड़ेगी जिससे रोड निर्माण की लागत को 30 से 40 फीसद तक कम किया जा सकता है। पांडेय ने बताया की सीआरआरआइ के तकनिकी मार्ग दर्शन में गुजरात, झारखंड, महाराष्ट्र एवं अरुणाचल प्रदेश में स्टील स्लैग रोड का निर्माण किया गया है।