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औरंगजेब की ताजपोशी से लेकर तैमूर की महफिलों और 1857 की लड़ाई का गवाह है शीश महल

दिल्ली के शालीमार बाग का मूल नाम ऐजाबाद बाग था जो शाहजहां ने अपनी तीसरी पत्नी ऐजुन्निशा उर्फ सरहिंदी बेगम के लिए बनवाया था। मुमताज महल की तरह उनको भी एक उपाधि ‘अकबराबादी महल’ की मिली थी। अकबराबाद आगरा को कहा जाता था और वो आगरा में पैदा हुई थीं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 31 Jul 2021 01:02 PM (IST)Updated: Sat, 31 Jul 2021 01:06 PM (IST)
औरंगजेब की ताजपोशी से लेकर तैमूर की महफिलों और 1857 की लड़ाई का गवाह है शीश महल
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में शालीमार बाग में अंग्रेजी सिपाहियों व भारतीय विद्रोहियों के बीच यहां बड़ी लड़ाई हुई थी।

विष्णु शर्मा। उत्तरी पश्चिमी दिल्ली में शालीमार बाग के शीश महल से पुरानी दिल्ली के गुरुद्वारा सीस गंज साहिब की दूरी करीब 18 किलोमीटर है, दोनों के ही नामों के उच्चारण मिलते-जुलते हैं, दोनों का ही गहरा कनेक्शन औरंगजेब से है। पहली वह जगह जहां 1658 में औरंगजेब ने खुद का राजतिलक किया था, दूसरी वह जगह जहां 1675 में उसके जुल्मों का सितम सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुरजी पर टूटा था, ‘सीस’ काटने की वजह से 1783 में वहां सीस गंज गुरुद्वारा बनवाया गया, जो उस वक्त मुगलों की कोतवाली थी। दिलचस्प ये भी है कि अंग्रेजों ने जहां तीनों दिल्ली दरबार लगाए, वह जगह कोरोनेशन पार्क भी शालीमार बाग से करीब छह किमी की दूरी पर ही है।

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औरंगजेब ने ये रस्म तख्तनशीनी जब की थी, तब औरंगजेब आश्वस्त नहीं था कि वह बादशाह बन ही जाएगा, उसके सारे भाई जिंदा थे, पिता शाहजहां और मुराद बख्श जेल में थे जबकि दारा शिकोह और शाहशुजा भागे हुए थे फिर भी औरंगजेब ने लाल किले में ये रस्म आयोजित करने से परहेज किया और उसने जो जगह चुनी वो थी दिल्ली शहर से थोड़ा दूर बना शालीमार बाग का शीशमहल, बाकायदा ज्योतिषियों की दी हुई तारीख और समय पर। मुगलों ने कई शहरों में शालीमार बाग बनवाए हैं लाहौर, श्रीनगर आदि में भी लेकिन दुनिया भर में शालीमार नाम क्यों रखा गया इस पर काफी चर्चा इतिहासकारों के बीच हुई है। रूसी विद्वान अन्ना सुवोरोवा ने अपनी किताब ‘लाहौर: टोपोफिलिया आफ स्पेस एंड प्लेस’ में निष्कर्ष निकाला है कि शाह अल इमारत (मास्टर्स आफ बिल्डिंग) का ही अपभ्रंश शालीमार हो गया होगा।

दिल्ली के शालीमार बाग का मूल नाम ऐजाबाद बाग था, जो शाहजहां ने अपनी तीसरी पत्नी ऐजुन्निशा उर्फ सरहिंदी बेगम के लिए बनवाया था। मुमताज महल की तरह उनको भी एक उपाधि ‘अकबराबादी महल’ की मिली थी। अकबराबाद आगरा को कहा जाता था और वो आगरा में पैदा हुई थीं। सबसे बड़ी बात वो बैरम खां के बेटे रहीम खानखाना की नातिन थीं। 1653 में शाहजहां ने उनके लिए ठीक वैसा शालीमार बाग बनवाया, जैसे नूरजहां के लिए जहांगीर ने कश्मीर मे बनवाया था, उसी के अंदर चमकदार शीशे जड़ित इमारत ‘शीश महल’ बनवाई। औरंगजेब ने भी इसी जगह को अपनी ताजपोशी के लिए चुना, तारीख थी 31 जुलाई थी, हालांकि कुछ लोग 21 जुलाई भी लिखते हैं।

उसके बाद जून 1959 में जब दारा शिकोह को मलिक जीवन ने धोखा देकर गिरफ्तार करवा दिया, तब औरंगजेब ने दूसरी बार ताजपोशी की, तारीख थी 15 जून और जगह थी लाल किले का ‘दीवान ए खासो आम’ उस दिन शाहजहां के मयूर सिंहासन पर बैठा था औरंगजेब लेकिन दिल्ली का दिल तो दारा शिकोह पर आ गया था। दारा और उसके बेटे को हाथी पर बैठाकर जो हाल औरंगजेब ने किया, वो पूरी दिल्ली ने देखा, औरंगजेब के सामने तो वो कुछ नहीं कर पाए, लेकिन गुस्सा उतरा दो दिन बाद दिल्ली आए मलिक जीवन पर। फ्रांसीसी यात्री फ्रेंकोइस बíनयर ने अपनी किताब ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ (1656-1668) में लिखा है कि मलिक जीवन के काफिले पर लोगों ने छतों से कूड़ा, पत्थर फेंक कर अपना गुस्सा उतारा। 1673 में गुरु तेगबहादुर के एक समर्थक ने तो बिना खौफ खाए ईद समारोह के बाद औरंगजेब की ही पालकी पर एक लाठी फेंक दी थी, जो पालकी के कौने पर लगकर औरंगजेब के घुटनों पर गिरी थी।

शालीमार बाग से यूं नादिर शाह का नाम भी जुड़ा है, 1739 में जब उसने दिल्ली पर हमला किया तो उसका डेरा शालीमार बाग में ही लगा था। शालीमार बाग से ही तीसरा बड़ा नाम जुड़ा है, सर डेविड आक्टरलोनी का, दूसरे अंग्रेज-मराठा युद्ध में डेविड की भूमिका से अधिकारी बहुत खुश थे। अगले ही साल 1804 में फिर यशवंत राव होल्कर ने हमला किया, लेकिन कामयाब नहीं होने दिया डेविड ने। 1818 में बना वह दिल्ली का पहले ब्रिटिश रेजीडेंट, शालीमार बाग को डेविड ने अपना ‘समर रेजीडेंस’ बनाया था। उसका इतना जलवा था कि अपनी 13 भारतीय पत्नियों को रोज उनके ही हाथियों पर लाल किले की दीवारों से लगे रास्ते पर सैर को ले जाता था। बाद में जब चाल्र्स मेटकाफ भारत के कार्यवाहक गर्वनर जनरल बने तो उनको भी ये बाग इतना पसंद आ गया कि वो अक्सर अपनी पत्नी के साथ यहां रहते थे और उनके आवास को मेटकाफ साहब की कोठी कहा जाने लगा था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में शालीमार बाग में भी अंग्रेजी सिपाहियों व भारतीय विद्रोहियों के बीच यहां बड़ी लड़ाई हुई थी।

शीशमहल: औरंगजेब की ताजपोशी से लेकर तैमूर की महफिलों और 1857 की लड़ाई का गवाह। जागरण


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