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मुंबई से दिल्ली आकर बुलंद इरादे और हौसलों से संवार रही गरीबी का दंश झेल रहे बच्चों की जिंदगी, पढ़िए नमिता चौधरी की कहानी

इरादे बुलंद और हौसलों में उड़ान हो तो कायनात का हर जर्रा आपके सपनों को पूरा करने में जुट जाता है। शहर के अनाथालय हो या फिर निर्माण स्थलों के आसपास गरीबी का दंश झेल रहे बच्चों की मदद करने का जिम्मा उठाया नमिता चौधरी ने।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Thu, 14 Oct 2021 12:41 PM (IST)Updated: Thu, 14 Oct 2021 12:41 PM (IST)
मुंबई से दिल्ली आकर बुलंद इरादे और हौसलों से संवार रही गरीबी का दंश झेल रहे बच्चों की जिंदगी, पढ़िए नमिता चौधरी की कहानी
नमिता दो सौ से ज्यादा बच्चों को शिक्षित कर उन्हें समाज की मुख्यधारा में जोड़ने का काम कर रही हैं।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। इरादे बुलंद और हौसलों में उड़ान हो तो कायनात का हर जर्रा आपके सपनों को पूरा करने में जुट जाता है। शहर के अनाथालय हो या फिर निर्माण स्थलों के आसपास गरीबी का दंश झेल रहे बच्चे। इनकी जिंदगी संवारने का सपना देखने वाली नमिता चौधरी की राह में कई कठिनाइयां आईं। लेकिन हर कठिनाइयों से जूझते हुए वे बच्चों की जिंदगी संवारने के लक्ष्य से नहीं डिगी और ईश्वर ने उनके चट्टान सरीखे हौसले से लिए गए फैसले को फल देना भी शुरू कर दिया है। आज नमिता दो सौ से ज्यादा बच्चों को शिक्षित कर उन्हें समाज की मुख्यधारा में जोड़ने का काम कर रही हैं।

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स्वजनों ने जताई थी चिंता

नमिता ने बताया कि वर्ष 2013 में वे मुंबई से दिल्ली आईं। यहां की आबोहवा मुंबई से बिल्कुल अलग है। कुछ समय तक ऐसा लगा कि कहां आ गए, लेकिन समय के साथ सबकुछ सामान्य लगने लगा। मुंबई में एक अनाथालय में जाकर पढ़ाती थी। यहां आकर भी कुछ अलग करने का मन किया। सोचा निर्माण स्थल पर इधर-उधर घूम रहे बच्चों को पढ़ाने का कार्य करूं।

यह बात मैंने अपने घर में बताई तो सभी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बड़ी बेटी साक्षी आनंद 12 वर्ष और छोटी बेटी अपेक्षा आनंद मात्र पांच वर्ष की है। अगर तुम बाहर जाओगी तो इन बच्चों की देखरेख कैसे हो पाएगी। उनकी चिंता वाजिब थी, लेकिन मैंने सभी को आश्वस्त किया कि अपने बच्चों की देखभाल के साथ-साथ घर की देखभाल पर कोई असर नहीं होगा और स्वजन की इजाजत के बाद हमने कार्य शुरू कर दिया। वर्ष 2015 में छोटी सी खुशी संस्था रजिस्टर्ड कराने के बाद इस सफर की विधिवत शुरुआत हो गई।

महिलाओं को बनाया जाता है आत्मनिर्भर

बच्चों को पढ़ाने के साथ ही महिलाओं को भी संस्था द्वारा आत्मनिर्भर बनाया जाता है। अभी संस्था के पास 50 महिलाएं हैं, जिन्हें पहले साक्षर बनाया जाता है और बाद में सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग दी जाती है। साथ ही उनके द्वारा बनाए गए उत्पाद को विभिन्न अवसरों पर स्टाल लगाकर बेचा जाता है। ऐसे में ये महिलाएं धीरे-धीरे अपने कार्य में निपुण होकर आत्मनिर्भर बन रही हैं।

संस्था से जुड़े लोग खुद देते हैं पैसे

नमिता ने बताया कि बच्चों को शिक्षा व महिलाओं को प्रशिक्षण देने में आ रहे खर्च हमारी संस्था से जुड़े लोग खुद वहन करते हैं। हमें किसी प्रकार की सहायता कहीं दूसरी जगह से नहीं मिल रही है। कोरोना संक्रमण के समय हमने जरूरतमंदों के बीच राशन वितरण करने की योजना बनाई थी। उसमें ज्यादा पैसों की जरूरत पड़ी थी। इसको लेकर हमने अपने दोस्तों से बात की और दोस्तों ने हमारी भरपूर मदद की थी।

15 बच्चों का दाखिला हुआ राजकीय प्रतिभा विद्यालय में

नमिता ने बताया कि छोटी सी खुशी संस्था से अभी दो सौ बच्चे जुड़े हुए हैं। ये बच्चे कक्षा एक से लेकर कालेज जाने वाले तक हैं। इनकी पढ़ाई के लिए पांच सेंटर खोले गए हैं। इनमें द्वारका में तीन, रोहिणी में एक व एक सेंटर कोलकाता में है। द्वारका में बच्चों की संख्या ज्यादा होने के कारण शाम के समय पार्क में भी पाठशाला लगाई जाती है।


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