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Mental Health Day 2021: बच्चों और युवाओं की मानसिक सेहत असर डाल रही हैं ये चीजें, इन बातों का रखें ध्यान

Mental Health Day 2021 भारत में कोरोना के बाद 14-24 तक की उम्र के युवाओं की मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ा है। उससे भी गंभीर बात यह है कि बच्चों व युवाओं की मानसिक सेहत को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sun, 10 Oct 2021 11:31 AM (IST)Updated: Sun, 10 Oct 2021 11:41 AM (IST)
Mental Health Day 2021: बच्चों और युवाओं की मानसिक सेहत असर डाल रही हैं ये चीजें, इन बातों का रखें ध्यान
बच्चों के मन में क्या है, क्या हम उन्हें सुन पा रहे हैं?

नई दिल्ली [सीमा झा]। जो उम्र आजाद पंछी की तरह उड़ान भरने की थी, उन पंखों को जबरन समेटना पड़ गया। देश की युवाशक्ति जिनके कंधों पर इसे आगे ले जाने का भार है, वह महामारी के दलदल से निकलने की कोशिश में जुटा है। हाल ही में यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कोरोना के बाद 14-24 तक की उम्र के युवाओं की मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ा है। उससे भी गंभीर बात यह है कि बच्चों व युवाओं की मानसिक सेहत को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस लापरवाही के परिणाम आगे चलकर उनकी जिंदगी के लिए घातक हो सकते हैं।

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24 वर्षीया सॉफ्टवेयर इंजीनियर शिवानी सिंह को वर्क फ्रॉम होम करते हुए डेढ़ साल से अधिक हो गए हैं। घंटों काम की थकान के बाद उन्हें तब बड़ी राहत मिलती है जब वे अपने कपड़ों की आलमारी खोलती हैं। वहां सहेजे और करीने से सजाए हुए कपड़े देखकर पुरानी यादों में खो जाती हैं। उन कपड़ों को पहनकर वे रोजाना दफ्तर जाती थीं। वहां उनके ड्रेसिंग सेंस की खूब चर्चा होती थी। पर बीते दो सालों से कपड़ों की संभाल के लिए उन्हें समय-समय निकालती हैं और फिर वापस हैंगर में टांग देती हैं। शिवानी कहती हैं, ‘यह सुकून देता है लेकिन इसमें दर्द और एक अजीब तरह के सूनेपन का एहसास अधिक है।

कब मिलेगी मुझे इन खयालों से आजादी!

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे 21 वर्षीय प्रणव शुक्ला कहते हैं,‘इन दिनों हर चीज से उकताहट होने लगी है। आखिर कब तक बंदिशें प्राकृतिक खुशी दे सकती हैं!’ वहीं, 12वीं के छात्र कृश मिश्रा अपनी दोनों बड़ी बहनों के साथ घर पर ही बैडमिंटन खेल लेते हैं। पहले महीने में एक बार बाहर खाना खाने परिवार रेस्तरां जाता था पर अब सब बंद है। घर पर ही रेस्तारां ‘क्रिएट’ कर लेते हैं। लेकिन क्या वह इससे खुश हैं!कृश कहते हैं, ‘मजबूरी में भी खुशी होती है क्या, पर हम इसमें भी तलाश रहे हैं खुशी।‘

आइए गढ़ लें नयी कहानी

खुशी की यह ‘खोज’ जारी है। पर यह यकीनन निराशा में डूबकर पूरी नहीं हो सकती। आइएमएस बीएचयू के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर संजय गुप्ता के मुताबिक, ‘युवाओं में इतनी क्षमता व ऊर्जा होती है कि वे हर मुश्किल से निकल सकते हैं, बड़ों की भी जिम्मेदारी ले सकते हैं। पर इससे पहले खुद में उत्साह जगाना होगा, अपनी मानसिक सेहत पर ध्यान देकर इस निराशा से निकलना ही होगा।‘

वहीं, पिछले दिनों सोशल मीडिया पर आयोजित वेबिनार के दौरान वरिष्ठ मनोचिकित्सक समीर पारिख ने कहा था कि हमारा यह दौर भी एक कहानी बनने वाला है। पर यह हमारे बच्‍चों, युवाओं को तय करना है कि वे अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को कैसी कहानी सुना सकते हैं। वह कैसी होनी चाहिए, हर हाल में उम्मीद बनाए रखने वाली या निराश करने वाली!

आगे की सोचते चलें

खेलों के महाकुंभ टोक्यो ओलिंपिक का समापन बहुत पहले हो गया पर रह गयी ढेरों अनमोल यादें और जीवन में हमेशा काम आने वाले सबक। जैसे 41 साल बाद भारतीय हॉकी टीम की सेमीफाइनल में पहुंचने की खुशी हार के बाद झटके में खत्म हो गयी। पूरा देश निराशा में डूब गया था। पर भारतीय कप्तान मनप्रीत सिंह ने मैच के बाद जो कहा, वह युवाओं को बुरी स्थिति से निकलने व आगे बढ़ने का मंत्र बन गया।

हार के बाद उन्होंने कहा था कि यह एक कठिन समय है लेकिन अब हमारा सारा ध्यान कांस्य पदक लेने पर होना चाहिए। उन्हें मेडल लेना ही है। सचमुच उनकी यह दृढ़ता रंग लायी और उनकी टीम ने देश को कांस्य पदक दिला दिया। टीम के गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने कहा कि हार से निराश होना स्वाभाविक है लेकिन रोने से ज्यादा आगे पदक हासिल करने के मौके पर विचार करना है। जरा विचार कर देखें, यदि भारतीय हॉकी टीम ने आगे की सोच नहीं रखी होती तो क्या वे पदक अपने साथ ला पाते!

बीमारी समझेंगे, तो चीजें आसान होंगी

फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा के मनोचिकित्सा विभाग के अध्‍यक्ष मनु तिवारी कहते हैं, 'अभिभावक इसलिए भी अधिक परेशान होते हैं क्‍योंकि उन्‍हें लगता है बच्‍चों की समस्‍या उनकी वजह से है या बच्चा ही ठीक नहीं। जबकि बचपन में मानसिक सेहत संबंधी समस्‍या का आना अधिकांशतया आनुवांशिक भी हो सकता है।' डॉक्‍टर मनु के मुताबिक, बच्‍चों की असामान्‍य हरकतों या व्‍यवहार के कारण अभिभावक परेशान तो होते हैं लेकिन इसके लिए ठोस उपाय नहीं करते। वे अपने स्‍तर पर प्रयास जरूर करें, लेकिन सबसे अधिक जरूरी है कि आप इसे एक बीमारी मानकर ही चलें और उचित इलाज के लिए चिकित्‍सक से संपर्क जरूर करें। बच्‍चों के व्‍यवहारजनित लक्षणों के आधार पर चिकित्‍सक वैज्ञानिक तरीके से दवा भी देते हैं और उचित सलाह देकर समाधान भी करते हैं।

बदलाव के लिए बनें संवदेनशील

डॉक्टर समीर पारिख युवाओं को एक और सलाह देते हैं कि, 'उन्हें जीवन की बागडोर अपने हाथ में थामे रहनी है और बस वर्तमान पर फोकस कर चलना है।’ कोरोना की पहली लहर के दौरान बिग बी ने भी एक पते की बात कही थी। उसके मुताबिक, जीवन में आप असाधारण रूप से बुद्धिमान या असामान्य होने से सुरक्षित नहीं रह सकते, बल्कि बदलाव के लिए संवदेनशील बनकर ही आपको सुरक्षा का एहसास होगा।

मुंबई की मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट प्रकृति पोद्दार कहती हैं, ‘ नि:संदेह कोरोना ने युवा मन को झकझोरा है लेकिन दूसरी तरफ उन्हें अपनी छुपी हुई ताकत का भी पता चला है।‘ 

प्रकृति आगे कहती हैं कि मैं ऐसे युवाओं को देखकर हैरान हो जाती हूं जो खुद किसी न किसी दिक्कत से जूझ रहे हैं पर वालंटियर बनकर लोगों की मदद कर रहे हैं।’ प्रकृति के मुताबिक, बस हमें इसी तरह किसी भी बड़े बदलाव के प्रति संवेदनशील बनना है। खुद को ढालते जाना है।

ज्यादा सोचने से कम होती है प्रोडक्टिविटी

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी के प्रोफेसर मैथू किलिंजवोर्थ के अनुसार, दिमाग की शांति हमारी मनोदशा से जुड़ी होती है। हमारा दिमाग जितना शांत रहेगा,हम उतने ही प्रसन्न महसूस करेंगे। इसके बाद हमारी प्रोडक्टिविटी उतनी ही बेहतर होगी। दरअसल, इंसान अपने दिमाग के ज्यादातर हिस्से का इस्तेमाल कुछ और सोचने में खर्च कर देता है। जो हम कर रहे होते हैं,उसमें दिमाग कम लगता है,बाकी दिमाग का अधिकांश हिस्सा दूसरी चीजों को सोचने में व्यस्त रहता है।

एक अकेला थक जाएगा

परिस्थिति जब चुनौतीपूर्ण हो तो चिंता होना स्वाभाविक है। पर कठिनाइयां ही तो आपको आगे बढ़ाती हैं। इन दिनों तमाम तरह की चुनौतियां पैदा हो रही हैं। किसी की नौकरी चली गयी, परिवार पर अचानक आर्थिक संकट आ गया, घर के किसी सदस्य को कोरोना के कारण खो दिया आदि। ऐसे में क्या करें, युवा अक्सर पूछते हैं। मैं कहूंगा हिंदुस्तान के युवाओं का जज्बा तो बहुत मजबूत है। बस वह खुद से कहते रहें कि मेरा हौसला जब तक जिंदा है कठिनाइयां मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं।

हां, यह सही है कि आप जब अनपेक्षित कुछ सामना करते हैं तो परेशानी अधिक होती है। दरअसल, आप उसके लिए तैयार नहीं रहते हैं। पर यह दौर ऐसा है कि परेशानियां आएंगी ही। यदि अकेले इस युद्ध से लड़ेंगे तो थकान होगी, तनाव बढ़ेगा, यह तय है। इसलिए भावनात्मक सपोर्ट हमेशा तैयार रखें। घर में, मित्रों आदि से अपनी बांडिंग और मजबूत बनाएं, आप देखेंगे मुश्किलें बड़ी भले हों पर आप उनसे भी बड़े हैं।

-डॉक्टर संजय गुप्ता, वरिष्ठ मनोचिकित्सक, आईएमएस, बीएचयू

मदद से कैसा संकोच?

कोई भी इस आपदा से अछूता नहीं रहा है। यह दौर हमें कितना कुछ सिखा रहा है। यह भी सच है कि एक दिन यह चला जाएगा। इसलिए परेशानी कोई भी हो, वह भी जाता है यदि हम उस अनुरूप खुद में बदलाव लाएं। समस्याएं तो जीवन का हिस्सा हैं, वे पहले भी थीं और अब भी हैं। हमेशा हेल्प सीकिंग माइंडसेट रखें यानी किसी से मदद लेने में कोई संकोच न करें।

-डॉक्टर समीर पारिख, निदेशक, फोर्टिस मेंटल हेल्थ केयर प्रोग्राम

इन बातों का ध्यान रखें

  • समय की मांग को समझेंगे तो आप खुद की जिम्मेंदारी लेंगे। स्वस्थ रहना आपकी प्राथमिकता होगी।
  • जब आप खुद का ध्यान रखेंगे तो इस बात का आत्मविश्वास जगेगा कि आपने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। यह संतुष्टि सुकून देगी।
  • अनिश्चितता से निपटने के लिए जरूरी है कि आप समय के मुताबिक खुद को ढालते चलें। खुद से या परिस्थिति को लेकर शिकायतें न करें।
  • दिनचर्या से समझौता न करें। यह असंतुलित होगी तो जीवन का संतुलन बिगड़ेगा।
  • घर पर ही तो हैं क्या फर्क पड़ता है, कल कर लेंगे, अभी नहीं बाद में करेंगे आदि।
  • ये बातें वर्कफ्रॉम के दौरान मन में आती हैं तो आपको टालने की आदत पड़ती जाएगी। इससे तनाव बढ़ेगा।
  • स्वअनुशासन हो तो हर चुनौती पर विजय पाई जा सकती है।
  • नियमित कार्यों के अलावा, आपको जो पसंद हो, उसके लिए रोजाना समय जरूर निकालें।
  • अच्छी डाइट लें। संतुलित भोजन करें। तन-मन दोनों की सेहत को समान महत्‍व दें।

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