सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बोले चिदंबरम, नोटबंदी पर असहमतिपूर्ण फैसला अनियमितताओं की ओर करता है इशारा
Chidambaram on SC verdict सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कांग्रेस नेता चिदंबरम ने कहा की फैसले का असहमति हिस्सा अनियमितताओं की ओर इशारा करता है। यह इंगित करना जरूरी है कि बहुमत ने निष्कर्ष निकाला कि घोषित उद्देश्यों को नोटबंदी से हासिल नहीं किया गया था।
नई दिल्ली, एजेंसी। Chidambaram on SC verdict: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नोटबंदी के खिलाफ डाली गई 58 याचिकाएं पर 2 जनवरी यानी आज बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने नोटों को बंद करने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा की फैसले का असहमति हिस्सा अनियमितताओं की ओर इशारा करता है।
चिदंबरम ने एक बयान में कहा, “एक बार माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कानून घोषित कर दिया है, हम इसे स्वीकार करने के लिए बाध्य हैं। हालांकि, यह इंगित करना जरूरी है कि बहुमत ने निष्कर्ष निकाला कि घोषित उद्देश्यों को नोटबंदी से हासिल नहीं किया गया था।”
अल्पमत ने नोटबंदी की अवैधता और अनियमितता का इशारा किया
वास्तव में, बहुमत ने इस सवाल को स्पष्ट कर दिया है कि क्या उद्देश्यों को हासिल किया गया था। हम खुश हैं कि अल्पमत के फैसले ने नोटबंदी में अवैधता और अनियमितताओं की ओर इशारा किया है। यह सरकार के लिए चेतावनी है, लेकिन यह स्वागत योग्य है।
एतिहासिक असहमतियों में शामिल होगा यह फैसला
पूर्व वित्तमंत्री ने कहा कि असहमति का फैसला "माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास में दर्ज प्रसिद्ध असहमतियों में शामिल होगा।" सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार के 2016 में 1,000 रुपए और 500 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण यानी नोटबंदी के फैसले को जायज ठहराया है।
न्यायमूूर्ति नागरत्न का मत बहुमत से था अलग
न्यायमूर्ति एसए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ और न्यायमूर्ति बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना ने केंद्र के साल 2016 के 1,000 रुपए और 500 रुपए के नोटों को बंद करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया। बताते चलें कि पांच जजों में से न्यायमूर्ति नागरत्न का मत बहुमत से अलग था। उन्होंने असहमतिपूर्ण निर्णय दिया।
फैसले को नहीं ठहरा सकते गलत- बेंच
बहुमत का फैसला सुनाते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया को सिर्फ इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि प्रस्ताव केंद्र सरकार से आया था। पीठ ने कहा कि आर्थिक नीति के मामलों में काफी संयम बरतना होता है और कार्यपालिका के ज्ञान को अदालत अपने विवेक से नहीं दबा सकती।