इम्यूनोथेरेपी से खत्म हो जाएगा कैंसर, विदेशों में इस तकनीक का लाभ ले रहे मरीज
डॉक्टर व विशोषज्ञ देश में भी कैंसर के इलाज में नई तकनीक इम्यूनोरोथेरपी के इस्तेमाल और उस पर शोध शुरू करने की जरूरत महसूस कर रहे हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस तकनीक से लाभ होगा।
नई दिल्ली, जेएनएन। कैंसर अब लाइलाज नहीं रहा। बावजूद, यह अभी भी देश में दिल की बीमारियों के बाद मौत का दूसरा बड़ा कारण साबित हो रहा है। इसलिए, डॉक्टर और विशेषज्ञ देश में भी कैंसर के इलाज में नई तकनीक इम्यूनोथेरेपी के इस्तेमाल और उस पर शोध शुरू करने की जरूरत महसूस कर रहे हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह तकनीक आने वाले समय में कैंसर के इलाज में वरदान साबित होगी। इससे इलाज आसान हो जाएगा।
इस संबंध में दिल्ली ट्यूमर बोर्ड शनिवार को एरोसिटी स्थित पाइड प्लाजा होटल में एक सम्मेलन कराने जा रहा है, जिसमें बड़े चिकित्सा संस्थानों के डॉक्टर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली व कनाडा से आए विशेषज्ञ शामिल होंगे। अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ. अजित सक्सेना ने कहा कि अपोलो अस्पताल भी ऐसा लैब स्थापित करने पर विचार कर रहा है, जहां इस तकनीक पर शोध किया जाएगा।
इम्यूनोथेरेपी से कैंसर पीड़ित मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। इससे कई नामचीन लोगों का इलाज हो चुका है और वे कैंसर से उबर चुके हैं। अमेरिका के एफडीए (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) ने इम्यूनोथेरेपी की एक दवा के इस्तेमाल के लिए मंजूरी भी दे दी है।
यह त्वचा कैंसर के इलाज में बेहद कारगर है। इसके अलावा इम्यूनोथेरेपी की कई दवाओं का क्लीनिकल परीक्षण के स्टेज में इस्तेमाल हो रहा है। अमेरिका में कई तरह के कैंसर के इलाज में इसके इस्तेमाल पर शोध चल रहा है। उन्होंने कहा कि शरीर में ही कुछ किलर सेल होते हैं।
इम्यूनोथेरेपी में इन सेल को निकालकर लैब में कल्चर किया जाता है और दोबारा उन्हें मरीज के शरीर में डाल दिया जाता है, जो कैंसर सेल को खत्म करते हैं। डॉ. सक्सेना ने कहा कि इस तकनीक का इस्तेमाल 'इम्यून चेक प्वाइंट इनहिबिटर' दवा के रूप में भी होता है। असल में शरीर में कुछ ऐसे सेल होते हैं, जो कैंसर को बढ़ाते हैं, जबकि शरीर में ही कुछ ऐसे इनहिबिटर (प्रोटीन) भी होते हैं, जो कैंसर सेल को बढ़ने से रोकते हैं।
इस इनहिबिटर से दवा विकसित कर इलाज में इस्तेमाल हो रहा है। उन्होंने कहा कि सामान्य तौर पर कैंसर के इलाज में कीमोथेरेपी व रेडियोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इनका शरीर के अन्य हिस्सों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। जबकि, इम्यूनोथेरेपी में मरीज के ही सेल व इनहिबिटर का इस्तेमाल होता है, इसलिए शरीर पर इसका दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।
यह थेरेपी सिर्फ कैंसर सेल को टारगेट करती है। देश में है इस पर शोध की जरूरत कनाडा में इम्यूनोथेरेपी पर शोध कर रहीं पूजा सक्सेना ने कहा कि अमेरिका, यूके व कनाडा में इस तकनीक पर काफी काम चल रहा है। चार-पांच दवाएं भी बन चुकी हैं। 100 से अधिक दवाएं शुरुआती परीक्षण के स्तर पर हैं। जो दवाएं बनी हैं उनका इस्तेमाल कीमो के साथ इस्तेमाल किया जाता है। इससे 90 फीसद मरीजों को बचाया जा सकेगा। इसके इस्तेमाल से कीमो व रेडियोथेरेपी का इस्तेमाल काफी कम हो जाएगा। विशेषज्ञ कहते हैं कि देश में इस पर शोध होने से इम्यूनोथेरेपी की सस्ती दवाएं विकसित हो सकेंगी।