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पिता को खोने के 42 घंटे बाद कृतिका ने ऐसा क्या किया कि लोग बोले 'जीना इसी का नाम है'

थिएटर की मझी हुई कलाकार ने ऑडिटोरियम में साथी कलाकारों और दर्शकों को यह अहसास तक नहीं होने दिया कि उसने अपने सबसे करीबी और जन्मदाता पिता को खोया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 21 Jan 2019 09:56 AM (IST)Updated: Tue, 22 Jan 2019 12:42 PM (IST)
पिता को खोने के 42 घंटे बाद कृतिका ने ऐसा क्या किया कि लोग बोले 'जीना इसी का नाम है'
पिता को खोने के 42 घंटे बाद कृतिका ने ऐसा क्या किया कि लोग बोले 'जीना इसी का नाम है'

नई दिल्ली [जेपी यादव]। ‘जरा सी देर को रुकता तो है सफर लेकिन, किसी के जाने से कब जिंदगी ठहरती है।' ये पंक्तियां जिंदगी की एक कड़वी सच्चाई हैं और इसका सामना देर-सबेर हम सबको करना पड़ता है, लेकिन दिल्ली की कृतिका सिंह ने सिर्फ 19 साल की उम्र में इन पंक्तियों को हकीकत में जिया है। प्यारे पिता लाल सिंह को 42 घंटे पहले खोने वाली कृतिका को ‘The show must go on’ का फलसफा याद आया और वह दिल्ली में मंडी हाउस के श्रीराम सेंटर में नाटक ‘खबसूरत बहू’ में दी गई ‘चाची’ की भूमिका को निभाने के लिए मंच पर उतर गईं। नाटक का मंचन समाप्त हुआ तो तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कृतिका के चेहरे पर उदास मुस्कान थी, तो आंखों में पिता की याद में आंसू मोतियों की तरह चमक रहे थे और कुछ आंसू गालों पर लुढ़क आए थे।

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थिएटर की मझी हुई इस कलाकार ने ऑडिटोरियम में साथी कलाकारों और दर्शकों को यह अहसास तक नहीं होने दिया कि उसने अपने सबसे करीबी और जन्मदाता पिता को खोया है। नाटक खत्‍म होने के बाद निर्देशक सुमन कुमार ने यह जानकारी दर्शकों से साझा की। दरअसल, 16-18 जनवरी तक दिल्ली के मंडी हाउस स्थित श्री राम सेंटर सभागार में आयोजित पांचवां रंगशीर्ष जयदेव नाट्य उत्सव मनाया गया था, इसी दौरान का यह वाकया है।

याद आया ‘द शो मस्ट गो ऑन’का मंत्र
दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले आत्मा राम सनातन धर्म महाविद्यालय में बी कॉम (प्रोग्राम) सेकेंड ईयर की छात्रा कृतिका कहती हैं, ‘फैसला थोड़ा मुश्किल था, लेकिन ‘द शो मस्ट गो ऑन’ मंत्र याद आया कि थिएटर (रंगमंच) भी एक जिंदगी है और इस दुनिया में कुछ भी ठहरता-थमता नहीं है। हमारी जिंदगी कभी हंसती-गाती तो कभी चुपचाप चलती रहती है और इस दौरान थोड़ा-बहुत उतार-चढ़ाव भी आता रहता है। इन पंक्तियों ने मुझे बहुत हौसला दिया।’

दर्शक बजा रहे थे तालियां, कृतिका की आंखों में थे आंसू
17 जनवरी, 2019 की शाम 8:30 बजे दिल्ली के मंडी हाउस स्थित श्रीराम सेंटर सभागार में जब नाटक खत्म हुआ तो इसके निर्देशक व वरिष्ठ रंगकर्मी ने कृतिका के साथ हुए इस हादसे की जानकारी दी। ऑडिटोरियम में मौजूद हर दर्शक कृतिका सिंह की हिम्मत की दाद देते हुए उसके लिए तालिया बजा रहा था। इस पर कृतिका कहती हैं, ‘पूरे ऑडिटोरियम में तालियां बज रही थीं, लेकिन न चाहते हुए मेरी आंखों में आंसू आ गए। ...लेकिन मैंने झट से आंसू पोछे और मंच पर दर्शकों के सामने आ गई।’

 

मुश्किल था फैसला पर संभाल लिया मां ने
ऐसे विपरीत हालात पर भावुक होकर कृतिका की मां संगीता सिंह कहती हैं,‘कभी ऐसा सोचा ही नहीं था कि ऐसा लम्हा भी जिंदगी में आएगा। 15 जनवरी की रात को मैंने अपने पति को खोया था, उस वक्त लग रहा था मेरा सबकुछ लुट गया है। वह रात मेरे लिए जिंदगी की सबसे भारी और मुश्किल रात थी। एक अंधेरा उस रात का था और दूसरा अंधेरा मेरी जिंदगी में हो गया था।’

कृतिका के ऐसे विपरीत हालात में नाटक में भूमिका अदा करने पर मां संगीता बताती हैं, ‘मैंने अपनी बेटी को इस नाटक को तैयार करते देखा था। वह हर समय ‘खूबसूरत बहू’ नाटक में अपने ‘चाची’ के चुनौती भरे किरदार के बारे में बात करती थी। 16 जनवरी को इस बारे में कृतिका ने कोई बात नहीं की, फिर हिम्मत जुटाकर 17 जनवरी को मुझसे गुजारिश की तो मैंने खुद को संभाला और इजाजत दी। कृतिका सही मायने में हिम्मती है। उसने इस मुश्किल हालात में मुझे और छोटी बहन को तो संभाला ही, साथ ही नाटक का मंचन भी किया।’

कुछ तो लोग कहेंगे
मां संगीता की मानें तो कृतिका को मंच पर उतरने के लिए हां कहना मुश्किल भरा फैसला था। एक तरफ पिता की आग की चिता भी ठंडी नहीं हुई थी और बेटी नाटक का मंचन करने जा रही थी। संगीता बताती हैं, ‘परिवार का कोई सदस्य मानसिक रूप से तैयार नहीं था। पहले तो मैंने कृतिका को साफ मना कर दिया कि लोग क्या कहेंगे? फिर ख्याल आया जिस रोल के लिए मेरी बेटी ने महीनों मेहनत की और सपने देखें, ऐसे में कृतिका के मन को पढ़ते हुए हां कह दिया। उस समय एक और ख्याल मन में आया था कि जो घट गया उसे बदल तो नहीं सकते हैं, लेकिन उस शख्स को कुछ समर्पित तो कर ही सकते हैं जो अपनी बेटी को बेइंतेहा प्यार-दुलार करता था।’

पिता को समर्पित है मेरी नाटक में निभाई गई भूमिका
9वीं क्लास से थिएटर कर रहीं कृतिका कहती हैं, ‘पिता की मौत के बाद 16-17 जनवरी दोनों दिन मेरा, मेरी छोटी बहन और मम्मी का रो-रोकर बुरा हाल था। परिवार के लोग जब भी एक-दूसरे से बात करते तो पिता का जिक्र कर रो पड़ते। मुझे ख्याल आया कि जब भी मैं नाटक की रिहर्सल करके लौटती तो पिता यही पूछते ‘मैं तुम्हारा नाटक जरूर देखने आऊंगा...देखता हूं तुम क्या तीर मारती हो।’ पिता के नहीं होने का एक तीर परिवार के हर सदस्य के सीने में धंसा था और उस दर्द से हम लोग कराह रहे थे। इंद्रपुरी स्थित ज्ञान मंदिर स्कूल से पढ़ाई करने वालीं कृतिका कहती हैं, ‘मैंने तय किया मैं पिता के इस सपने को पूरा करने के लिए नाटक करूंगी और ऐसा ही हुआ।‘

दर्शकों के बीच खड़े होकर तालियां बजा रहे थे पिता
पिता का जिक्र करते हुए कृतिका भावुक हो जाती हैं। बताती हैं, ‘पिता के साथ मेरा रिश्ता दोस्त के जैसा था। उन्होंने खुद वादा किया था वह नाटक देखने ऑडिटोरियम आएंगे। नाटक खत्म होने के बाद जब लोग तालियां बजा रहे थे तो मुझे एक बारगी लगा कि मेरे पिता भी इन्हीं दर्शकों में शामिल हैं। कुछ देर में मेरी आंखों में इतने आंसू आ गए कि वह मेरे आंसुओं में तैरते नजर आए और फिर कुछ लम्हों बाद ओझल हो गए।’ 

वरिष्ठ रंगकर्मी और खूबरसूरत बहू नाटक के निर्देशक सुमन कुमार ने बताया कि हम सबकी जिंदगी में ऐसे हालात आते हैं, जब हम दोराहे पर खड़े होते हैं और ऐसे में मुश्किल भरा फैसला लेना होता है। कृतिका की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि उसने ऐसी मुश्किल घड़ी में न केवल पूरे परिवार को संभाला, बल्कि खुद को नाटक करने के लिए तैयार कर पायी। पिता की इच्छा पूरी करने के साथ अपनी सामाजिक और सांस्कृतिक जिम्मेदारी भी निभाई। नाटक यही सिखाता है कि भावना में बहो नहीं, बल्कि भावनाओं पर काबू रखो। 

वहीं, डॉ. ज्ञानतोष कुमार झा ( प्राचार्य, आत्म राम सनातन धर्म, कॉलेज) के मुताबिक, जब छात्रा कृतिका के पिता की मौत की जानकारी मिली तो हमें दोहरा झटका लगा। नाटक मंचन का संकट था, बावजूद इसके इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी हिम्मत जुटाकर इस छात्रा ने सच्चे रंगकर्मी का धर्म निभाया है। रंगमंच इसी का नाम है, जहां कुछ भी हो जाए हमें ठहरना नहीं आगे बढ़ते जाना है।

आपको बता दें कि कृतिका के पिता रेलवे में चीफ बुकिंग सुपरवाइजर थे। उनका 15 जनवरी को आकस्मिक निधन हो गया था। कृतिका फिलहाल अपने परिवार के साथ दिल्ली के इंद्रपुरी इलाके में रह रही हैं। 

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