...मालूम न था कि जनरल रावत से है ये आखिरी मुलाकात
आम तौर पर जनरल रावत समय पर आते थे लेकिन उस दिन थोड़ा देर से और अकेले आए थे। अपने चिरपरिचित अंदाज में गर्मजोशी के साथ सभी से मिले थे।मुझे नहीं मालूम था कि यह उनसे आखिरी मुलाकात होने वाली है। जनरल रावत की असमय मृत्यु मेरी व्यक्तिगत क्षति है।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। अब भी इस दर्दनाक घटना पर यकीन नहीं हो रहा है। विगत रविवार पांच दिसंबर को ही चीफ आफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत से भारतीय सेना सेवा कोर के रेजिंग-डे पर मुलाकात हुई थी। आम तौर पर जनरल रावत समय पर आते थे, लेकिन उस दिन थोड़ा देर से और अकेले आए थे। अपने चिरपरिचित अंदाज में गर्मजोशी के साथ सभी से मिले थे। मुझे नहीं मालूम था कि यह उनसे आखिरी मुलाकात होने वाली है। जनरल रावत की असमय मृत्यु मेरी व्यक्तिगत क्षति है।
जनरल रावत से मेरी पहली मुलाकात वर्ष 2005 में तब हुई थी, जब वे सेना मुख्यालय में कर्नल एमएस ब्रांच में तैनात थे और उनकी फाइव सेक्टर कमांडर के तौर पर कश्मीर घाटी में तैनाती आई थी। उस समय मैं मिलिट्री आपरेशन डायरेक्टरेट में तैनात था। यहां से शुरू हुआ मुलाकात का सिलसिला अनवरत जारी रहा। मैनपावर प्लानिंग डायरेक्टरेट में जब मेरी तैनाती थी, तब वे सेनाध्यक्ष थे।
इस दौरान उनसे सेना की बेहतरी से जुड़े कई अहम मुद्दों पर गंभीर चर्चा होती थी। जनरल रावत अपने आइडिया पर काम करते थे, भले ही कोई उनसे सहमत हो या नहीं। पाकिस्तान पर बालाकोट एयर स्ट्राइक से पहले उन्होंने बताया था कि हम जवाबी कार्रवाई करने वाले हैं। उन्होंने एयर स्ट्राइक के विभिन्न पहलुओं पर बेहद सूझबूझ तरीके से रणनीति तैयार करने में अहम भूमिका भी निभाई थी।
ऊंचे दर्जे के पेशेवर सैन्य अधिकारी होने के नाते जनरल रावत सेना पर खर्च होने वाले बजट को लेकर बेहद संजीदा थे। उनका इस बात पर विशेष जोर होता था कि सैन्य बजट का खर्च लड़ाई की तैयारी की जरूरी चीजों पर ही हो। उन्होंने हमेशा यह प्रयास किया कि अनावश्यक चीजों पर बजट खर्च न हो। कुछ वर्ष पूर्व मैं नाइन कोर के कमांडर के तौर पर हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला के योल में तैनात था। उस समय जनरल रावत योल आए थे। इस दौरान, उन्होंने अपने स्कूल में जाकर वहां पर पढ़ाई के समय की यादें भी ताजा की थीं।
लेफ्टिनेंट जनरल(सेवानिवृत्त) एसके सैनी, पूर्व वाइस चीफ आफ आर्मी स्टाफ (विनीत त्रिपाठी से बातचीत के आधार पर)