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अपनों ने नहीं दिया साथ तो भगत सिंह सेवा दल ने बढ़ाया हाथ, कोरोना शवों का कर रहे अंतिम संस्कार

कोरोना का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। कई मामलों में मौत के बाद अंतिम संस्कार तो दूर शव को देखने तक के लिए परिवार का कोई सदस्य सामने नहीं आ रहा है। ऐसे में सेवा दल भूमिका निभा रहा।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sun, 14 Jun 2020 03:10 PM (IST)Updated: Sun, 14 Jun 2020 03:39 PM (IST)
अपनों ने नहीं दिया साथ तो भगत सिंह सेवा दल ने बढ़ाया हाथ, कोरोना शवों का कर रहे अंतिम संस्कार
अपनों ने नहीं दिया साथ तो भगत सिंह सेवा दल ने बढ़ाया हाथ, कोरोना शवों का कर रहे अंतिम संस्कार

नई दिल्‍ली [स्वदेश कुमार]। कोरोना का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। अब ऐसे भी मामले सामने आ रहे हैं कि कोरोना से मौत के बाद अंतिम संस्कार तो दूर शव को देखने तक के लिए परिवार का कोई सदस्य सामने नहीं आ रहा है। ऐसे शवों को अंतिम स्थल तक पहुंचाने में का जिम्मा उठाया है शहीद भगत सिंह सेवा दल के संस्थापक और शाहदरा के पूर्व विधायक जितेंद्र सिंह शंटी ने। अपने बेटे ज्योत जीत के साथ वह प्रतिदिन चार से पांच ऐसे शवों को शव वाहनों में लेकर श्मशान घाट या कब्रिस्तान पहुंचते हैं। उनका अंतिम संस्कार करते हैं। इसके लिए किसी के परिवार से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। संस्था के सात शव वाहन इस काम में लगे हुए हैं। अब तक 161 लोगों का अंतिम संस्कार संस्था की तरफ से किया जा चुका है।

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26 वर्षों से सेवा में जुटा

जितेंद्र सिंह शंटी बताते हैं कि शहीद भगत सिंह सेवा दल पिछले 26 वर्षों से लोगों की सेवा में जुटा है। शव वाहन के साथ संस्था के कई एंबुलेंस निशुल्क लोगों की मदद कर रहे हैं। कोरोना का संक्रमण शुरू हुआ तो हम लोगों ने संक्रमित लोगों की मदद करने का जिम्मा उठाया। जिला प्रशासन के आह्वान पर 21 मार्च को हमने इसकी शुरुआत की। तब कोरोना पीड़ित या संदिग्धों को जांच केंद्र या क्वारंटाइन सेंटर तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस लगाए गए थे। जो परिवार क्वारंटाइन में थे, उनके घर राशन पहुंचाने का काम शुरू किया गया।

लावारिस शवों का हो रहा अंतिम संस्कार 

मई माह में हमें पता चला कि कई शव लावारिस अस्पतालों में पड़े हैं क्योंकि उनके परिवार का कोई सदस्य अंतिम संस्कार के लिए नहीं आ रहा है। ऐसे में हमने सात शव वाहन इस काम में लगा दिए। आज पूरी दिल्ली में संस्था के शव वाहन चल रहे हैं। उन्होंने बताया कि एक शव के अंतिम संस्कार पर करीब साढ़े पांच हजार रुपये खर्च होते हैं, जो कि संस्था ही वहन करती है।

कमजोर हो रही रिश्‍तों की डोर

उन्हाेंने बताया कि कोरोना के संक्रमण काल ने बताया कि हमारे रिश्तों की डोर कितनी कमजोर है। जब हम यह देखते हैं कि किसी का अपना शव को देखने भी नहीं पहुंच रहा है तो बहुत दुख होता है। ऐसे हमने करीब 11 शवों को अंतिम स्थल तक पहुंचाया है। वहीं, कुछ परिवार क्वारंटाइन होते हैं इस वजह से भी नहीं आ पाते हैं। जो आते हैं उनमें भी कुछ लोग दूर ही खड़े रहते हैं। वह कहते हैं आप लोग सब कर दीजिए। इसमें कई समर्थ लोग भी होते हैं। शव को ढोने के अलावा हमारे पांच एंबुलेंस आज भी कोरोना संक्रमित या संदिग्ध लोगों को जांच केंद्र, कोविड केयर सेंटर या अस्पताल पहुंचाने में लगे हुए हैं।

शवों को एहतियात के साथ पहुंचाते हैं अंतिम स्थल तक

अस्पताल की मोर्चरी से अंतिम संस्कार तक शव को ले जाने के दौरान कई तरह के एहतियात भी बरते जाते हैं। जितेंद्र सिंह शंटी ने बताया कि वह उनके बेटे सहित अन्य कर्मचारी पीपीई किट में शव को लेने के लिए पहुंचते हैं। शव को वाहन में डालते से पहले और बाद में अपने हाथों को सैनिटाइज करते हैं। हर शव को अंतिम स्थल तक पहुंचाने के बाद वाहन को पूरी तरह से सैनिटाइज किया जाता है।

क्या अपनाते हैं प्रक्रिया

लावारिस शव के लिए अस्पताल से कोरोना से मौत का प्रमाण पत्र लिया जाता है। अस्पताल से ही अंतिम संस्कार के लिए अधिकार पत्र भी ले लेते हैं। वहीं, जो परिवार सामने आते हैं उनसे एक फार्म भरवा लिया जाता है, जो हमें अंतिम संस्कार का अधिकार देता है। इसके साथ भी कोरोना से मौत का प्रमाण पत्र लिया जाता है।

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