यहां पढ़िए कैसे बनती हैं प्री-फैब्रिकेटेड इमारत, जिस पर नहीं होता किसी बड़े से बड़े भूकंप का असर
इस तकनीक से उन देशों में मकान बनाए जाते हैं जिन देशों में भूकंप आने का खतरा अधिक रहता है। इस प्रकार का निर्माण भूकंप के समय बचाने में सक्षम है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भूकंप के लिहाज से बेहद खतरनाक सिसिमिक जोन-चार में आने के चलते दिल्ली-एनसीआर काफी संवेदनशील है। इस बात को ध्यान में रखते हुए दिल्ली में प्री-फेब्रिकेटेड इमारतें बनाई गई है। इन इमारतों पर किसी बड़े से बड़े भूकंप का कोई असर नहीं होता है।
कैसी होती हैं प्री-फेब्रिकेटेड इमारतें
बताया जाता है कि इस तकनीक से दिल्ली सरकार पहली तीन फ्लोर वाली इमारत उपराज्यपाल निवास में रिसेप्शन इमारत के रूप में बनाई गई है। इसमें भूतल के अलावा दो और फ्लोर हैं। इस इमारत के निर्माण पर 3 करोड़ के करीब लागत आई है। साल 2016 में इस तकनीक को लेकर खबर आई थी जिसके मुताबिक इमारत के निर्माण का पूरा समय 4 माह रखा गया था।
खास बात यह है कि इस तकनीक से तैयार किए जाने वाले ढांचे का सुरक्षा के लिहाज से आइआइटी दिल्ली से तकनीकी अध्ययन कराया गया थी। आइआइटी की रिपोर्ट ओके होने के बाद इमारत के निर्माण पर काम शुरू हुआ। इस तकनीक से बनने वाली दिल्ली सरकार की यह पहली इमारत है। योजना पर लोक निर्माण विभाग काम किया था।
क्या थी योजना
एलजी हाउस में पहले जगह की कमी थी। जिसके कारण एलजी हाउस का रिसेप्शन भी बहुत छोटा था। इसके चलते रिसेप्शन के लिए अलग से इमारत बनाने का फैसला लिया गया। इस रिसेप्शन बिल्डिंग में रिसेप्शन काउंटर, विजिटर्स रिसीविंग सेंटर, मीडिया सेंटर, कैफेटेरिया, वेटिंग हॉल के अलावा अधिकारियों के लिए केबिन मुख्यरूप से बनाए गए हैं।
क्या है तकनीक
इस तकनीक में स्टील का बहुत अधिक उपयोग किया गया है। इमारत का पूरा ढांचा फैक्ट्रियों में तैयार किया गया है। इमारत के ढांचे का स्टील फ्रेम तैयार कर लिया जाता है। इसी तरह दीवारों के लिए फाइबर सीमेंट मिक्स बोर्ड तैयार कर लिए जाते हैं। जिस स्थान पर इसे फिट किया जाना है वहां पर मजबूती के हिसाब से जमीन में गहराई तक सीमेंट और स्टील का मजबूत फाउंडेशन बनाया जाता है।
इमारत में निर्माण स्थल पर सीमेंट आदि का बहुत कम उपयोग होता है। स्टील फ्रेम व फाइबर-सीमेंट बोर्ड को निर्माण स्थल पर केवल नट-बोल्ट से कसने का काम शेष रहता है। इस तरह के निर्माण की तकनीक से जुड़े तकनीकी विशेषज्ञों के अनुसार इस तकनीक से कई मंजिल ऊंची इमारतें बनाई जा सकती हैं। ऊंचाई के हिसाब से ही निर्माण में स्टील का अधिक उपयोग बढ़ जाता है।
क्या है इस तकनीक का लाभ
इस तकनीक से उन देशों में मकान बनाए जाते हैं जिन देशों में भूकंप आने का खतरा अधिक रहता है। इस प्रकार का निर्माण भूकंप के समय बचाने में सक्षम है। निर्माण की यह तकनीक पर्यावरण फ्रेंडली है। निर्माण स्थल पर धूल मिट्टी नहीं होती है।
बड़ा लाभ यह भी है कि इस तकनीक से समय की बहुत बचत है। जिस निर्माण के पूरा होने में एक साल तक लगता है। उसे 4 माह में पूरा किया जा सकता है। निर्माण में सामान्य तकनीक यानी ईंट-सीमेंट वाले निर्माण से केवल 10 फीसद अधिक खर्च आता है।
गौरतलब है कि मंगलवार को आए भूकंप ने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से लेकर देश कीराजधानी दिल्ली तक को हिला दिया है। शाम साढ़े चार बजे आए भूकंप की तीव्रता 5.8 बताई जा रही है। हालांकि भारत में किसी तरह के जान-माल के नुकसान की कोई खबर नहीं है लेकिन पाकिस्तान में भूकंप के झटकों से कई लोग जख्मी हो गए हैं।
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