Move to Jagran APP

जानिए- कौन थे जाट महाराजा सूरजमल, 'पानीपत' फिल्म को लेकर फिर आए चर्चा में

Third battle of Panipat सूरजमल का उदात्त मानवीय चरित्र युद्ध के पश्चात घायल मराठा सेना और स्त्रियों को सुरक्षा और शरण देने से उजागर हुआ।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 21 Dec 2019 11:40 AM (IST)Updated: Mon, 23 Dec 2019 10:36 AM (IST)
जानिए- कौन थे जाट महाराजा सूरजमल, 'पानीपत' फिल्म को लेकर फिर आए चर्चा में
जानिए- कौन थे जाट महाराजा सूरजमल, 'पानीपत' फिल्म को लेकर फिर आए चर्चा में

नई दिल्ली [नलिन चौहान]। सप्ताह पहले रिलीज हुई हिंदी फिल्म पानीपत के कारण जाट  राजा सूरजमल का ऐतिहासिक चरित्र दोबारा चर्चा में आ गया। उल्लेखनीय है कि फिल्म कथानक में उनके सही चरित्र चित्रण न किए जाने को लेकर काफी असंतोष भी दिखा, जबकि पानीपत की लड़ाई (वर्ष 1761) में ऐन मौके पर सदाशिव भाऊ के व्यवहार से बेजार होकर अपनी सेना सहित मैदान से हटने वाले सूरजमल का उदात्त मानवीय चरित्र युद्ध के पश्चात घायल मराठा सेना और स्त्रियों को सुरक्षा और शरण देने से उजागर हुआ। नटवर सिंह ने अपनी पुस्तक ‘महाराजा सूरजमल’ में लिखा है कि पानीपत युद्ध से बचे हुए एक लाख मराठे बिना शस्त्र, बिना वस्त्र और बिना भोजन सूरजमल के राज्य-क्षेत्र में पहुंचे। सूरजमल और रानी किशोरी ने प्रेम और उल्लास से उन्हें ठहराया और उनका आतिथ्य किया। हर मराठे सैनिक या अनुचर को खाद्य सामग्री दी गई। घायलों का तब तक उपचार किया गया, जब तक कि वे आगे यात्रा करने योग्य न हो गए।

loksabha election banner

अंग्रेज इतिहासकार ग्रांट डफ ने मराठे शरणार्थियों के साथ सूरजमल के बर्ताव के बारे में लिखा है कि जो भी भगोड़े उसके राज्य में आए, उनके साथ सूरजमल ने अत्यंत दयालुता का बर्ताव किया और मराठे उस अवसर पर किए गए जाटों के व्यवहार को आज भी कृतज्ञता तथा आदर के साथ याद करते हैं। फादर वैंदेल, और्म की पांडुलिपि के अनुसार, (पानीपत की लड़ाई के परिणामस्वरूप) सूरजमल उन अनेक महत्वपूर्ण स्थानों का स्वामी बन गया, जो इससे पहले पूरी तरह मराठों के प्रभाव-क्षेत्र में थे। चंबल के इस ओर उसके सिवाय अन्य किसी का शासन नहीं था और गंगा की ओर भी लगभग यही स्थिति थी।18 वीं शती तक मुगल शासन की यह स्थिति हो गई थी कि दिल्ली में बादशाहत कमजोर पड़ने से सारे देश में सत्ता की छीन झपटी आरंभ हो गई थी। मुगल बादशाह मुहम्मद शाह राग-रंग-रस में इतना मग्न रहता था कि परदेश से नादिरशाह और अहमद शाह के रेले आते और किले और नगर को लूटकर जाते रहे, देश और प्रजा का कुछ भी होता रहा, वह तो अपनी लालपरियों के आगोश में मस्त रहा।इतिहास के अनुसार, ब्रज प्रदेश पर अब्दाली का आक्रमण दो बार हुए। पहला आक्रमण 26-27 फरवरी 1757 को जहान खां अफगानी के सेनापतित्व में हुआ था, फिर नजीम खां आया था और दूसरी बार का आक्रमण पंद्रह दिन बाद स्वयं अब्दाली के नेतृत्व में हुआ था। लेकिन चाचा वृन्दावन दास की लंबी कविता ‘श्री हरिकला बेला’ के अनुसार वर्ष 1757 और वर्ष 1761 में तीन वर्ष के अंतराल में वे आक्रमण किए गए थे।

उल्लेखनीय है कि अंतिम आक्रमण के बाद कवि ने ‘हरिकला बेला’ की रचना भरतपुर में सुजान सिंह सूरजमल के शासनकाल में की थी। उत्तर मुगल काल में नादिरशाह का आक्रमण दिल्ली तक और उसके बाद अहमद शाह दुर्रानी अब्दाली का आक्रमण मथुरा-वृंदावन तक हुआ था। उन दोनों को यहां हमले के लिए आमंत्रित किया गया था। असली बात यह थी कि ब्रज प्रदेश का जाट राजा सूरजमल और दक्षिण के मराठे दिल्ली पर निगाह लगाए हुए थे और जो अपने को दिल्ली का वंशागत मालिक समझते थे, वे इन शक्तियों से घबराए हुए थे।अहमदशाह अब्दाली को विशेष रूप से सूरजमल जाट की बढ़ती शक्ति और प्रभाव से टक्कर लेने के लिए बुलाया गया था। उसका वश सूरजमल पर तो चला नहीं, मथुरा-वृंदावन की लूटपाट और हिंदुओं के सिरों की मीनारें बनाकर ही वह लौट गया। ऐसे में अब्दाली के सूरजमल को कुचल डालने के बुलावा की बात बेअसर ही रही और उसका वह कुछ नहीं बिगाड़ पाया। जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह की मृत्यु के बाद ही सूरजमल का सितारा चमका। जयपुर राज्य में ईश्वरी सिंह और माधोसिंह के बीच सात वर्षों तक उत्तराधिकार संघर्ष हुआ। इस दौरान ही सूरजमल उभरा क्योंकि न तो विलास भवन में बैठे मुगल बादशाह को उस ओर ध्यान देने की फुर्सत थी और न अंतपुर के षड्यंत्रों में फंसे जयपुर नरेश के पास समय था। बल्कि मराठों के आक्रमण से अपनी रक्षा करने बगरू की लड़ाई (1748) माधोसिंह को समझाने- बुझाने के लिए ईश्वरी सिंह को ही सूरजमल की आवश्यकता पड़ गई थी। उस आवश्यकता ने सिद्ध कर दिया कि जयपुर की तुलना में भरतपुर की शक्ति कम नहीं थी, बल्कि बढ़ने लगी थी। उसकी शक्ति बढ़ने का एक और प्रमाण यह है कि दिल्ली के शाह आलम के वजीर सफदरजंग ने भी अपने पठान विरोधी अभियान में सूरजमल की सहायता मांगी थी। बाद में सफदरजंग और सूरजमल ने मिलकर दिल्ली को खूब लूटा और नष्ट कर डाला। अब्दाली के जाने के बाद सूरजमल मुगल बादशाह का अटल शत्रु बन गए थे और जयपुर के सहायक हो गए थे। ईश्वरी सिंह की आत्महत्या के बाद जब माधोसिंह जयपुर का राजा बन गया, तब उसके भाई प्रताप सिंह के लिए भी आड़े वक्त में वही शरणदाता सिद्ध हुए थे।

(लेखक दिल्ली के अनजाने इतिहास के खोजी हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.