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Air Pollution: दिल्ली में वायु प्रदूषण छीन सकता है जिंदगी के 10 साल, जानें- अपने शहर का हाल

Air Pollution in India रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में तेजी से बढ़ रहे वायु प्रदूषण की वजह से भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा में लगभग पांच वर्ष की कमी आ रही है। अध्ययन में दिल्ली को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया है।

By Amit SinghEdited By: Published: Tue, 14 Jun 2022 04:56 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jun 2022 04:56 PM (IST)
Air Pollution: दिल्ली में वायु प्रदूषण छीन सकता है जिंदगी के 10 साल, जानें- अपने शहर का हाल
दिल्ली की सड़कों पर वायु प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक। फाइल फोटो - दैनिक जागरण

नई दिल्ली, आइएएनएस। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लिए वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। वर्ष के ज्यादातर महीनों में दिल्ली की वायु गुणवत्ता बेहद खराब स्थिति में रहती है। देश के ज्यादातर अन्य शहरों की स्थिति दिल्ली से कुछ बेहतर है, लेकिन वहां भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। पूर्व में हुए कई अध्यय बताते हैं कि वायु प्रदूषण की ये स्थिति जानलेवा है। अब एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण हमारी जिंदगी के 10 साल तक छीन सकता है।

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यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (EPIC) द्वारा किए गए इस अध्ययन में दिल्ली को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया है। इंस्टीट्यूट में यूएस शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि उत्तर भारत में रह रही देश की 40 फीसद आबादी (लगभग 51 करोड़ लोग) वायु प्रदूषण की वजह से अपनी जिंदगी के औसत साढ़े सात साल (7.6 वर्ष) गंवाने की दिशा में बढ़ रहे हैं। अध्ययन में दावा किया गया है कि वायु प्रदूषण की वर्तमान स्थिति भारतीयों की औसत प्रत्याशित आयु में पांच वर्ष की कटौती कर रही है।

अध्ययन के अनुसार भारत की 130 करोड़ आबादी ऐसे क्षेत्रों में रह रही है, जहां का औसत वार्षिक वायु प्रदूषण स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित सुरक्षित लिमिट से ज्यादा है। यही वजह है कि भारत में खराब वायु गुणवत्ता की वजह से प्रति वर्ष लाखों लोगों की जान जा रही है। सर्दियों के महीनों में देश के ज्यादातर शहर स्मॉग युक्त प्रदूषित वायु की चादर से ढक जाते हैं। इसमें बेहद खतरनाक श्रेणी के प्रदूषण के कण होते हैं, जिन्हें पीएम-2.5 कहा जाता है। प्रदूषण के ये कण इतने छोटे होते हैं कि हमारे फेफड़ों में जाकर गंभीर बीमारियों की वजह बन सकते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि डब्ल्यूएचओ द्वारा तय मानकों के अनुरूप वायु गुणवत्ता में सुधार लाने का मतलब है कि उत्तर प्रदेश में रह रही तकरीबन 24 करोड़ आबादी की जीवन प्रत्यासा में औसत 10 वर्ष की वृद्धि करना। EPIC के अनुसार वर्ष 2013 से वैश्विक आबादी में भारत की हिस्सेदारी 44 फीसद है, जो कि वर्तमान में दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश है। इतना ही नहीं 63 फीसद आबादी ऐसी जगहों पर रहती है, जहां भारत का वायु गुणवत्ता मानक भी पूरा नहीं होता है।

EPIC के अनुसार भारत में प्रदूषण के कण मानव जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। वर्ष 1998 से प्रदूषण के इन कणों में 61.4 फीसद का इजाफा हुआ है। वायु प्रदूषण की ये स्थिति धूम्रपान से भी कहीं ज्यादा खतरनाक है, जो औसत जीवन प्रत्याशा को तकरीबन ढाई वर्ष तक कम करता है। पिछले दो दशकों में भारत में बेतहाशा बढ़े प्रदूषण की वजह औद्योगिकरण, आर्थिक विकास और जीवाश्म ईंधन का आसमान छूता उपयोग है। इस दौरान भारतीय सड़कों पर वाहनों की संख्या में चार गुना से ज्यादा का इजाफा हुआ है।


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