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लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर लिखा था सैन्य इतिहास का स्वर्णिम अध्याय

युद्ध में तत्कालीन 13 कुमाऊं बटालियन के 124 जवानों में से 114 जवान देश के लिए कुर्बान हो गए थे। हथियारों में भले ही चीनी हमसे आगे थे, लेकिन हौसले के मामले में हम इक्कीस थे।

By Edited By: Published: Tue, 07 Aug 2018 06:36 PM (IST)Updated: Wed, 08 Aug 2018 03:01 PM (IST)
लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर लिखा था सैन्य इतिहास का स्वर्णिम अध्याय

रेवाड़ी (महेश कुमार वैद्य)। विभिन्न देशों के बीच अतीत से लेकर वर्तमान तक कई युद्ध लड़े गए, लेकिन हम यहां जिस रेजांग-ला युद्ध का जिक्र कर रहे हैं उसमें भाग लेने वाले जवानों की वीरगाथा दुनिया के युद्ध इतिहास में अद्वितीय है। पराक्रम के मामले में इन जवानों की कहानी हर लिहाज से अनूठी है। लद्दाख की दुर्गम बफीली चोटी पर वर्ष 1962 में मा भारती के 124 वीरों ने सैन्य इतिहास का स्वर्णिम अध्याय लिखा था। यह इन जवानों की वीरता का ही परिणाम था, जिसके चलते संसाधनों में इक्कीस होते हुए भी चीन युद्ध विराम के लिए सहमत हो गया था।

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चीनी आक्रमण के समय 18 नवंबर, 1962 को लद्दाख की बर्फीली चोटी पर स्थित रेजांग-ला पोस्ट पर जिस तरह की वीरता भारतीय वीरों ने दिखाई थी, उस पर सहसा यकीन नहीं होता। एक ओर आधुनिक हथियारों से लैस तीन हजार चीनी सैनिक थे तो दूसरी ओर मुट्ठीभर भारतीय जवान, लेकिन इन वीरों ने 1300 चीनी सैनिकों को गाजर-मूली की तरह काट दिया था।

उधर भौगोलिक परिस्थितियों और बर्फीले मौसम के अभ्यस्त जवान थे और इधर मैदानी भाग से गए हमारे सैनिक। इस युद्ध में तत्कालीन 13 कुमाऊं बटालियन के 124 जवानों में से 114 जवान देश के लिए कुर्बान हो गए थे। हथियारों में भले ही चीनी हमसे आगे थे, लेकिन हौसले के मामले में हम इक्कीस थे।

17 नवंबर को आई परीक्षा की घड़ी

भारतीय वीरों के सामने परीक्षा की घड़ी 17 नवंबर की रात तब आई थी, जब तूफान के कारण रेजांग-ला दर्रा की बर्फीली चोटी पर मोर्चा संभाल रहे इन जवानों का संपर्क बटालियन मुख्यालय से टूट गया। विषम परिस्थितियों के बीच ही 18 नवंबर को तड़के चार बजे युद्ध शुरू हो गया, लेकिन किसी को रेजांग-ला पोस्ट पर चल रहे ऐतिहासिक युद्ध की जानकारी नहीं मिल पाई। 18 हजार फुट ऊंची पोस्ट पर इस युद्ध में भारतीय जांबाजों की वीरता के सामने चीनी सेना काप उठी। रेजांग-ला पोस्ट पर दिखाई गई वीरता का सम्मान करते हुए ही भारत सरकार ने कंपनी कमाडर मेजर शैतान सिंह को जहा मरणोपरात देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार पदक परमवीर चक्र से अलंकृत किया था, वहीं इस बटालियन के आठ अन्य जवानों को वीर चक्र, चार को सेना मेडल व एक को मैंशन इन डिस्पेच का सम्मान प्रदान किया गया था। इसके अलावा 13 कुमायूं के कमाडिंग अफसर (सीओ) को अति विशिष्ट सेवा मेडल (एवीएसएम) से अलंकृत किया था।

सर्वाधिक वीरता पदक
देश के सैन्य इतिहास में आज तक किसी भी एक बटालियन को एक साथ वीरता के लिए इतने पदक नहीं मिले। सरकार ने बाद में रेजाग-ला के शहीदों को सम्मान देने के लिए कंपनी का नाम रेजाग-ला कंपनी कर दिया था। रेजाग-ला युद्ध में शहीद हुए वीरों में मेजर शैतान सिंह (परमवीर चक्र) राजस्थान के जोधपुर के निवासी थे, जबकि नर्सिंग सहायक धर्मपाल सिंह दहिया (वीर चक्र) हरियाणा के सोनीपत के रहने वाले थे। कंपनी का सफाई कर्मचारी पंजाब का रहने वाला था, जबकि शेष सभी जवान रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ व अलवर के रहने वाले थे।


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