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बेटे की मौत ने बदली जिंदगी, 30 साल से बिना वेतन ट्रैफिक संभाल रहे हैं 70 साल के गंगाराम

एक झटके में मेरे घर का चिराग बुझ गया, पत्नी का साथ छूट गया बाबू.. पर मैं अब किसी और के घर के चिराग को इस चौराहे पर नहीं बुझने दूंगा।

By Amit MishraEdited By: Published: Sat, 22 Sep 2018 08:51 PM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 01:00 AM (IST)
बेटे की मौत ने बदली जिंदगी, 30 साल से बिना वेतन ट्रैफिक संभाल रहे हैं 70 साल के गंगाराम
बेटे की मौत ने बदली जिंदगी, 30 साल से बिना वेतन ट्रैफिक संभाल रहे हैं 70 साल के गंगाराम

नई दिल्ली [मनोज कुमार दुबे]। इसी खूनी चौक पर मेरे जवान बेटे को एक ट्रक ने कुचल दिया था। इकलौता बेटा था मेरा। बुरी तरह घायल हो गया था। छह महीने तक सरकारी अस्पताल के चक्कर लगाता रहा, लेकिन उसे बचा नहीं सका। बेटे की मौत के गम में कुछ दिनों बाद उसकी मां भी गुजर गई। एक झटके में मेरे घर का चिराग बुझ गया, पत्नी का साथ छूट गया बाबू.. पर मैं अब किसी और के घर के चिराग को इस चौराहे पर नहीं बुझने दूंगा। यही सोचकर अपनी टीवी रिपेयरिंग की दुकान हमेशा के लिए बंद कर अब मैं रोज यहां सीलमपुर चौक पर आकर ट्रैफिक व्यवस्था संभालता हूं..।

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सोच को ठीक करने का उठाया बीड़ा 
गंगाराम कहते हैं, लोगों के लिए ये समझना बहुत जरूरी है कि रफ्तार उन्हें मंजिल तक नहीं, मौत की ओर लेकर जाती है। उनकी तो जान जाती ही है, साथ ही सड़क पर पैदल चलने वाले और फुटपाथ पर सोने वाले भी जान गंवा देते हैं। सीट बेल्ट बांधकर गाड़ी चलाओगे, हेलमेट पहनकर बाइक चलाओगे, लालबत्ती पर रुकोगे तो आपका ही भला होगा। 30 साल हो गए लोगों को ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरूक करते हुए। पहले यहीं मेरी टीवी रिपेयरिंग की दुकान थी। मैं सुबह जल्दी आ जाता था और 10 बजे तक यहां ट्रैफिक व्यवस्था संभालता था, फिर अपनी दुकान खोलता था। शाम को दुकान बंद करने के बाद फिर रात 10 बजे तक सड़क पर खड़ा होकर ट्रैफिक संचालित करता था। बेटे की मौत के बाद मैंने अपनी दुकान बंद कर दी और ये सोच लिया कि अब यहां ट्रैफिक व्यवस्था संभालने और नियमों के बारे में लोगों को जागरूक करने का काम करूंगा। अब टीवी रिपेयर की नहीं, गलत तरह से तेज रफ्तार में वाहन चलाने वालों की सोच को ठीक करने में जुटा हूं। सुबह 10 बजे से देर रात तक चौक पर डटा रहता हूं। ट्रैफिक व्यवस्था भी संभालता हूं और लोगों को नियमों का पाठ भी पढ़ाता हूं।

सभी मानते हैं बात, कोई नहीं तोड़ता ट्रैफिक 
गंगाराम कहते हैं, दिन भर गाडि़यों के शोर के बीच ट्रैफिक संभालना अच्छा लगता है। यहीं आकर मन लगता है। घर पर रहकर बीमार हो जाता हूं। जब तक जान है, तब तक इसी तरह सेवा करता रहूंगा। 30 साल हो गए इस चौक पर। लालबत्ती से गुजरने वाले हजारों लोग 'चचा' कह के पुकारते हैं। बसें, स्कूटी, बाइक, कारें सब मेरे एक इशारे पर रुक जाती हैं। लोग हाथ मिलाते हैं, हालचाल पूछते हैं। सेल्फी लेते हैं। कोई अनजान ही लालबत्ती का उल्लंघन करके निकलता है। एक दिन डीसीपी ट्रैफिक गाड़ी रोक कर मेरे पास आईं और अपनी टोपी मेरे सर पर रख सैलूट किया। ऐसा सम्मान पाकर आंखे भर आई थीं। मुख्यमंत्री भी सम्मान दे चुके हैं। कुछ समय पहले ट्रैफिक पुलिसकर्मियों ने अपने पास से ट्रैफिक वार्डन की वर्दी सिलवाकर दी थी। अब यही वर्दी पहनकर सड़क पर तैनात रहता हूं।

बहू के वेतन से चलता है घर 
गंगाराम कहते हैं, बेटे और पत्नी की मौत के बाद तो मैं टूट गया था, लेकिन बहू ने मुझे और अपने बच्चों को संभाल लिया। बड़ी पोती की शादी हो गई है। छोटी पोती और पोता पढ़ते हैं। बहू एक निजी अस्पताल में नर्स है। उसी के वेतन से परिवार का गुजर-बसर होता है। यह कहते हुए उनकी आंखें भर आईं कि चौक से गुजरने वाले हर इंसान में बेटे का ही चेहरा दिखाई देता है..।


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