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विशेषः आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी को रेवाड़ी से मिली थी ऑक्सीजन

अहीरवाल की राजनीतिक राजधानी रेवाड़ी का पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से गहरा नाता रहा है।

By JP YadavEdited By: Published: Sun, 19 Nov 2017 05:18 PM (IST)Updated: Sun, 19 Nov 2017 06:23 PM (IST)
विशेषः आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी को रेवाड़ी से मिली थी ऑक्सीजन
विशेषः आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी को रेवाड़ी से मिली थी ऑक्सीजन

रेवाड़ी (महेश कुमार वैद्य)। अहीरवाल की राजनीतिक राजधानी रेवाड़ी का पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से गहरा नाता रहा है। आपातकाल के बाद जब इंदिरा गांधी संकट में थीं, तो उन्हें दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए रेवाड़ी से ही आक्सीजन मिली थी।

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यहां के बुजुर्गों की जुबान पर आज भी तब के किस्से मौजूद हैं जब कांग्रेस को झटका देकर हरियाणा में पहली संयुक्त विधायक दल सरकार बनाने वाले स्व. राव बिरेंद्र सिंह ने अपनी विशाल हरियाणा पार्टी का कांग्रेस में विलय किया था।

हालांकि एक दूसरे के निकट आना कांग्रेस व राव दोनों की मजबूरी भी कहा जाता है, लेकिन तब राव निसंदेह ताकतवर थे। उन्होंने 23 सितंबर 1978 को शहीदी दिवस के अवसर पर अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय किया था। आज भी उस रैली को अहीरवाल की विशालतम रैलियों में गिना जाता है।

1971 में भी इंदिरा आई थी रेवाड़ी

वर्ष 1971 में भी इंदिरा गांधी रेवाड़ी आई थी। तब वे प्रधानमंत्री थी। राव बिरेंद्र तब महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से 71 के चुनाव में उनकी पार्टी कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे।

इंदिरा गांधी ने उनके सामने निहाल सिंह को मैदान में उतारा था। मुकाबला कड़ा हुआ, लेकिन राव बिरेंद्र सिंह ने 1899 मतों से जीत हासिल की। उस समय इंदिरा गांधी की लोकप्रियता भी शिखर पर थी।

चुनाव में हरियाणा की नौ में से सात लोकसभा सीटें कांग्रेस ने जीती थीं, जबकि महेंद्रगढ़ से राव बिरेंद्र सिंह अपनी विशाल हरियाणा पार्टी से व रोहतक से भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार ने मैदान मारा था।

इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय

लंबी राजनीति के बाद रेवाड़ी ने इंदिरा गांधी की स्मृति को चिरस्थायी भी बनाया है। पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर मीरपुर में स्थिति इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय इसका उदाहरण है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कैप्टन अजय सिंह यादव का इस नामकरण में अहम योगदान रहा। यह अलग बात है कि एक बड़ा वर्ग राव तुलाराम के नाम पर विश्वविद्यालय की मांग उठा रहा था, लेकिन कैप्टन ने इंदिरा नाम को इसलिए प्राथमिकता दी थी ताकि दिल्ली दरबार से विश्वविद्यालय को हरी झंडी मिल जाए।


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