Move to Jagran APP

ममता को मरते देख मासूम ने मूंद लीं आंखें

स्वदेश कुमार, पूर्वी दिल्ली नाम : स्टेविया..। घरवालों ने यही नाम रखा था उस बच्ची का, जिसने 2

By JagranEdited By: Published: Sun, 25 Feb 2018 03:20 AM (IST)Updated: Sun, 25 Feb 2018 03:20 AM (IST)
ममता को मरते देख मासूम ने मूंद लीं आंखें

स्वदेश कुमार, पूर्वी दिल्ली

loksabha election banner

नाम : स्टेविया..। घरवालों ने यही नाम रखा था उस बच्ची का, जिसने 25 दिनों के भीतर ही अपनी आंखों से मां की ममता को मरते हुए देखा। पहली संतान थी वह, फिर भी ठुकरा दी गई। इसलिए नहीं कि बेटी थी, बल्कि इसलिए क्योंकि वह अपने बालपन की जुबां यानी रोकर-मुस्कुराकर कुछ कहना चाहती थी पर उसे क्या पता था कि नौ महीने कोख में रखने वाली मां ही उसकी किलकारियों का गला घोंट देगी। लेकिन, विडंबना देखिए कि 25 दिन बाद ऐसा ही हुआ।

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, शुक्रवार शाम करीब सात बजे मां नेहा तिवारी ने बच्ची को डलावघर में फेंका था। पुलिस ने जिस वक्त बच्ची को बरामद किया, उसकी सांसें चल रही थीं। एंबुलेंस में डाला गया तो बच्ची ने आंखें भी खोली, लेकिन उसके सिर में चोट की वजह से खून का थक्का जम चुका था। इसे हेमाटोमा कहते हैं। जीटीबी अस्पताल में उसके सिर का ऑपरेशन हुआ और आखिरकार सुबह साढ़े छह बजे उसने दम तोड़ दिया।

सौरभ और उनकी मां सदमे में, पड़ोसी भी सहमे

पड़ोसियों बताया कि सौरभ और नेहा की करीब दो साल पहले शादी हुई थी। इसके बाद दोनों यहां किराये के मकान में रहने लगे। नेहा ने दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलतराम कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की थी। ऐसी पढ़ी-लिखी महिला इस तरह का कदम उठा सकती है, ऐसा न तो उसके परिवार और न ही पड़ोसियों ने कभी सोचा था। बेटी की मौत से सौरभ और उनकी मां सदमे में हैं। वह किसी से बात तक नहीं कर पा रहे हैं। सौरभ तो बस मूक होकर अपने वाट्सएप पर डीपी (डिस्प्ले पिक्चर) में स्टेविया को निहार रहे हैं। जांच में ऐसी कोई बात भी सामने नहीं आई कि वह नेहा अभी संतान नहीं चाहती थी या उसे बेटी पसंद नहीं थी। वह सिर्फ अपनी दिनचर्या खराब होने से परेशान हो गई थी।

----

शोध का विषय और समाज के लिए चेतावनी है यह घटना : डॉ. देसाई

मानव व्यवहार व संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) के निदेशक डॉ. निमेष जी देसाई ने बताया कि इस मामले में तुरंत किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है। यह मनोवैज्ञानिक रूप से शोध का एक विषय है। अगर महिला अवसाद में होती तो बच्ची को नुकसान पहुंचाने के बाद खुद को भी चोटिल करती, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ है। संभव है कि गर्भ के दौरान या उससे पहले वह किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त रही हो। वहीं, सामाजिक और मानवीय तरीके से इस मामले को देखें तो यह ¨चता का विषय है। जिसकी कल्पना भी कठिन है, वह सब हमारे सामने हो रहा है। यह समाज के लिए चेतावनी है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.