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जानिए नए दौर की तकनीकी शिक्षा, पीएम मोदी ने राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति से जुड़ी की है दस नई पहल

मीडिया ऐंड मार्गदर्शन सेल एआइसीटीई के डायरेक्टर लेफ्टिनेंट कर्नल कैलाश बंसल ने बताया कि हाल के वर्षों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस मशीन लर्निंग ब्‍लाक चेन क्‍लाउड कंप्‍यूटिंग जैसी नई तकनीकों के तेजी से बढ़ते इस्‍तेमाल को देखते हुए इंजीनियरिंग की पारंपरिक शिक्षा में भी बदलाव की जरूरत महसूस की गई।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Sat, 31 Jul 2021 09:17 AM (IST)Updated: Sat, 31 Jul 2021 09:17 AM (IST)
जानिए नए दौर की तकनीकी शिक्षा, पीएम मोदी ने राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति से जुड़ी की है दस नई पहल
नई राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति के तहत एआइसीटीई की देखरेख में हो रहे तकनीकी बदलाव

नई दिल्ली, जेएनएन। नई राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के एक साल पूरा होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देकर कहा कि, 'जब हंसी-खुशी से पढ़ाई होगी तो कामयाबी तय है।... राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति देश के युवा वर्ग के सोच के अनुरूप है। 21वीं सदी के युवाओं को एक्‍सपोजर चाहिए। वे शिक्षा के पुराने बंधनों और पिंजरों से मुक्‍त होना चाहते हैं।' इस मौके पर प्रधानमंत्री ने राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति से जुड़ी दस नई पहल की। इसमें 'आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस फार आल' भी, जिसके तहत शिक्षा प्राप्‍ति के सभी चरणों में छात्रों को एआइ से संबंधित कोर्स करना होगा।

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देखा जाए तो हाल के दिनों में आल इंडिया काउंसिल फार टेक्निकल एजुकेशन (एआइसीटीई) द्वारा भी तकनीकी शिक्षा में बदलाव लाने की दिशा में कई अहम कदम उठाए गए हैं, ताकि नई राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार पारंपरिक तकनीकी शिक्षा को और ज्‍यादा समावेशी बनाया जा सके। इस क्रम में पहला बदलाव एंट्री विषयों में किया गया है। एआइसीटीई का मानना है कि वर्तमान में, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में उच्च शिक्षा प्राप्‍त करने के लिए दाखिले फिजिक्‍स, केमिस्‍ट्री और मैथ्‍स के पारंपरिक विषयों पर आधारित हैं, जो नये दौर के मल्‍टीडिसिप्लिनरी दृष्टिकोण की जरूरत को देखते हुए एक तरह से बाधा है।

इसलिए 21वीं सदी में, जैव-प्रौद्योगिकी, क्लाउड कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसे नये सब-डोमेन के आने से इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी की विभिन्न शाखाओं के बीच अभी तक चली आ रही पारंपरिक व्‍यवस्‍था में बदलाव किया जा रहा है, क्‍योंकि इन सब-डोमेन में कुशलता हासिल करने के लिए बायोलाजी, सांख्यिकी, प्रोग्रामिंग लैंग्‍वेज, वोकेशनल स्‍ट्रीम्‍स जैसे एलायड विषयों के भी समझ की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए पहले की तरह सिर्फ मैथ्‍स, फिजिक्‍स और केमिस्‍ट्री पर पूरी तरह से निर्भर नहीं रहा जा सकता। समय के साथ प्रासंगिक बने रहने के लिए कुछ दूसरे नये विषयों को भी जोड़े जाने की जरूरत है।

अप्रूवल प्रासेस में बदलाव:

तकनीकी शिक्षा को इंडस्‍ट्री की जरूरतों के अनुकूल बनाने के लिए शैक्षणिक वर्ष 2021 से अनुमोदन प्रक्रिया (अप्रूवल प्रासेस) में भी बदलाव किया गया है। एआइसीटीई के इस बदलाव से माना जा रहा है कि इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने का सोच रखने वाले छात्रों को विषयों के चयन में काफी आसानी होगी यानी अब इंजीनियरिंग करने के लिए गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना प्रौद्योगिकी, जीव विज्ञान, इंफार्मेशन प्रैक्टिसेज, जैव प्रौद्योगिकी, तकनीकी व्यावसायिक विषय, कृषि, इंजीनियरिंग ग्राफिक्स, बिजनेस स्‍टडी या उद्यमिता जैसे कोई भी तीन विषय होने चाहिए। प्रवेश स्तर की योग्यताओं को व्यापक बनाकर डोमेन के विकास को आगे बढ़ाने की दिशा में शिक्षाविदों को भी इससे काफी मदद मिलेगी और वे इंटर-डिसिप्लिनरी दृष्टिकोण पर ज्‍यादा फोकस कर पाएंगे।

समावेशी शिक्षा पर जोर:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में समावेशी शिक्षा में काफी जोर दिया गया है। एआइसीटीई द्वारा उठाए गए कदमों को भी इसी से जोड़कर देखा जाना चाहिए। ऐसे में किसी भी अनदेखे भय/आशंका या पूर्वाभास से चिंतित होने के बजाय यथास्थिति की व्‍यवस्‍था को तोड़ने वाले कदमों का स्वागत किया जाना चाहिए। तकनीकी शिक्षा में बदलाव क्‍यों जरूरी है, इसके लिए चिकित्सा विज्ञान का ही उदाहरण ले लीजिए। टोमोग्राफी या न्‍यूक्लियर मेडिसिन में गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान के कई तत्व आपस में किसी न किसी रूप में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। अब ऐसे में किसी भी डोमेन में विषयों की कोई सीमा तय नहीं की जा सकती। वैसे भी, शिक्षा तो उत्कृष्टता और परिणाम प्राप्‍त करने के लिए ही है, जिसका एकमात्र ध्‍येय परिणाम प्राप्ति ही है। असल में, यह पहल खोये ज्ञान को फिर से खोजने की एक कोशिश है। इसी ने शिक्षा मंत्रालय को एआइसीटीई में इंडियन नालेज सिस्‍टम्‍स (आइकेएस) डिवीजन स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। आइकेएस का भी उद्देश्य यही है कि देश की समृद्ध विरासत और पारंपरिक ज्ञान के आधार पर इंटरडिसिप्लिनरी रिसर्च को और बढ़ावा दिया जाए। ऐसे में हमारे वेद-पुराणों में निहित वैज्ञानिक सिद्धांतों की पुन: खोज और प्राचीन ज्ञान से जुड़ने से हमारी वैज्ञानिक खोज को और बल ही मिलेगा। हमारे प्राचीन ज्ञान की ही देन 'शून्य' है। इस योगदान को पूरी दुनिया में स्‍वीकार किया गया।

एक वर्षीय प्रारंभिक पाठ्यक्रम की शुरुआत:

देश में ऐसे कई डिप्लोमा छात्र हैं, जिन्होंने खुद को आगे बढ़ाने और उत्कृष्टता हासिल करने में एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। सोचिए, अगर उन्हें आगे बढ़ने का मौका न मिलता, उन्‍हें यूं ही छोड़ दिया जाता, उनकी प्रगति को नकार दिया जाता, तो क्‍या यह प्रतिभा आगे बढ़ने से रुक नहीं जाती और इससे हमारी राष्ट्रीय संभावनाओं को गहरा आघात नहीं पहुंचता। आइआइटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अभी तक ऐसा ही है, जो अपने ब्रांड की वजह से एक बहुत ही ऊंचे प्रवेश मानदंड का पालन करते हैं। ऐसे में अगर कोई छात्र जो गणित/भौतिकी/रसायन विज्ञान के विषयों में कमजोर हैं, लेकिन कटआफ की न्यूनतम सीमा क्‍वालिफाइ कर लिया है, उन्हें अब प्रासंगिक विषयों में एक साल का प्रारंभिक पाठ्यक्रम कराया जाएगा, ताकि उन्‍हें इस पाठ्यक्रम के माध्यम से आगे के लिए फिर से प्रशिक्षित किया जा सके।

क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम:

एआइसीटीई द्वारा अप्रूवल प्रासेस हैंडबुक में भी बदलाव किया गया है। इन परिवर्तनों का उद्देश्य योग्यता और कौशल को व्यावहारिक बनाते हुए इसे अधिक समावेशी बनाना है। दरअसल, एक छात्र की प्राकृतिक क्षमता को समृद्ध बनाने के लिए जो साधन चाहिए, उसी के लिए माडल पाठ्यक्रम की व्‍यवस्‍था की गई है, जिसके अंतर्गत चार मैथमेटिक्‍स कोर्सेज, दो फिजिक्‍स कोर्सेज तथा केमिस्‍ट्री और बायोलाजी में एक-एक कोर्स की बात कही गई है। इस दिशा में ई-लर्निंग को बढ़ावा देने के लिए मैसिव ओपन आनलाइन कोर्स (एमओओसी) को अपनाया गया है। इसका क्रेडिट सिस्‍टम औपचारिक डिग्री प्राप्त करने में भी मान्‍य होगा। इसी तरह, भाषा की बाधा को दूर करने के लिए एआइसीटीई ने 'स्वयं' मंच पर उपलब्ध सभी पाठ्यक्रमों को आठ भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने की पहल की है। इंडक्शन प्रोग्राम भी ऐसी ही एक पहल है। इसके अंतर्गत एनवायर्नमेंटल साइंस, इंडियन कांस्टिट्यूशन, यूनिवर्सल ह्यूमन वैल्‍यू आदि का अध्ययन कराया जाएगा, जो देश की समृद्ध संस्‍कृति को देखेते हुए छात्रों के लिए काफी उपयोगी साबित होगा।

14 एंट्री लेवल विकल्‍प की उपलब्‍धता:

राष्ट्र के विकास के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर तकनीकी शिक्षा की प्रगति को केवल एंट्री लेवल विषयों तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता। इसलिए शैक्षणिक वर्ष 2021 से छात्रों को अप्रूवल प्रोसेस हैंडबुक (एपीएच) में 14 एंट्री लेवल विकल्‍प प्रदान किए गए हैं, जिससे कि छोटे शहरों/दूर-दराज के क्षेत्रों के उन मेधावी छात्रों को भी समान अवसर मिल सके, जो किसी कारण ग्यारहवीं/बारहवीं में अपने पारंपरिक एंट्री विषयों में अच्‍छा प्रदर्शन नहीं कर पाए। हालांकि ऐसे छात्रों को डिग्री प्रोग्राम में शामिल होने से पहले एमओओसी (ई-लर्निंग) के तहत एडिशनल कोर्स कराया जाएगा। इसलिए विषयों के आधारभूत ज्ञान से किसी को छूट नहीं होगी। क्‍योंकि ये विषय ज्ञान ही आगे चलकर अकादमिक प्रगति का भी आधार बनते हैं। कुल मिलाकर, एआइसीटीई ने हमेशा इनपुट के बजाय परिणामों की प्रापति पर अधिक जोर दिया है। नये बदलाव भी इसी दिशा में एक कोशिश हैं। सही अर्थों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के जरिए तकनीकी शिक्षा को और सक्षम बनाने के लिए सारे प्रयास किये गए हैं, ताकि नई तकनीकी शिक्षा मार्केट की जरूरतों के अनुसार अपनी उपयोगिता साबित कर सके।

 

लेफ्टिनेंट कर्नल कैलाश बंसल

(डायरेक्‍टर मीडिया ऐंड मार्गदर्शन सेल, एआइसीटीई)


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