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अचानक क्यों चर्चा में हैं राम शरण, जिन्होंने पीएम, केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों के बीच बिताए 21 साल

Postman Ram Sharan दो दशक में कई प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री बदल गए सांसदों के भी नए चेहरे भी सामने आते रहे लेकिन देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी संसद भवन में नहीं बदला तो एक आम इंसान ‘पोस्टमैन राम शरण’।

By Jp YadavEdited By: Published: Tue, 31 Aug 2021 08:15 AM (IST)Updated: Tue, 31 Aug 2021 08:36 AM (IST)
अचानक क्यों चर्चा में हैं राम शरण, जिन्होंने खास लोगों के बीच आम बनकर बिताए 21 साल

नई दिल्ली/फरीदाबाद [संजीव गुप्ता]। खास लोगों के गलियारे में दो आम कदमों की पदचाप भी अपनी अलग पहचान रखती है। पोस्टमैन राम शरण भी एक ऐसे ही शख्स हैं, जिन्होंने 21 साल तक बेहद आम तरीके से खास लोगों के बीच अपनी उपस्थिति को सार्थक किया। दो दशक में प्रधानमंत्री और मंत्री बदल गए, सांसदों के भी नए चेहरे सामने आते रहे, लेकिन देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी संसद भवन में नहीं बदला तो एक आम इंसान ‘पोस्टमैन राम शरण’। वह आज रिटायर हो रहे हैं।

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बहुमत-अल्पमत और दलगत राजनीति से दूर राम शरण अनथक चिट्ठियां बांटते रहे। इस दौरान, राम शरण को किसी माननीय के साथ फोटो खिंचवाने या सीधे संवाद का अवसर भले न मिला हो, लेकिन कुछ समय पूर्व सेंट्रल हाल के बाहर लिफ्ट के पास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दिखना वह अपना बड़ा सौभाग्य मानते हैं। अपने व्यवहार से सारे संसदीय स्टाफ का दिल जीत लेने वाले राम शरण ने शुक्रवार को संसद में अपनी आखिरी डाक बांटी। जन्माष्टमी न होती तो सोमवार को उनका अंतिम कार्यदिवस होता, मंगलवार को वह सेवानिवृत्त हो जाएंगे। उन्हें इस बात की खुशी है कि जिंदगी ने उनको आम होते हुए भी बरसों खास होने का एहसास कराया। वहीं, इस बात का मलाल भी है कि 41 साल की नौकरी में उन्हें एक बार भी प्रमोशन नहीं मिला। सात विवाहित बच्चों के पिता राम शरण अब सेवानिवृत्त डाकिया संघ का सदस्य बनने की योजना बना रहे हैं।

फरीदाबाद के नीमका गांव निवासी राम शरण को वर्ष 2000 में संसद भवन की ड्यूटी दी गई थी। दरअसल, वहां कोई भी पोस्टमैन अपनी ड्यूटी नहीं लगवाना चाहता था। संसद के भूल-भुलैया जैसे गलियारे और एक जैसे दिखने वाले कमरे व दरवाजे भ्रमित करते थे। शुरुआती दिनों में राम शरण भी भ्रमित हुए, लेकिन जल्द ही सारा नक्शा दिमाग में अंकित हो गया।

50-50 किलो के तीन बैग में लाते थे डाक

60 वर्षीय राम शरण ने समय के साथ आए बदलाव पर कहा, शुरुआती दिनों में सोमवार सबसे व्यस्त दिन होता था। हर सोमवार को डाक के तीन बैग होते थे। इसमें हर एक का वजन 50 किलोग्राम होता था, उनकी डाक बांटनी होती थी। जैसे-जैसे संचार के ई-युग में प्रवेश हुआ तो पत्रों की जगह ईमेल ने ले ली और बैग का वजन भी घट गया। उन्होंने कहा, वह फरीदाबाद में अपने घर से सुबह 10 बजे गोल डाकखाना पहुंचते और डेढ़ घंटे तक डाक छांटने के बाद साइकिल से संसद भवन तक का एक किमी का दायरा तय करते। वर्ष 2011 में एक दुर्घटना में घायल होने के बाद पिछले 10 वर्षों से वह गोल डाकखाने से संसद भवन पुस्तकालय तक जेब से किराया खर्च कर आटो लेते व शाम को वापस आफिस जाते।

रेलवे मेल सेवा में भी रहे

राम शरण ने वर्ष 1981 से 1989 तक रेलवे मेल सेवा में काम किया। वर्ष 1989 में इंडिया पोस्ट ने पोस्टमैन की रिक्तियों के लिए एक नोटिस निकाला था। उसी दौरान परीक्षा पास करने के बाद राम शरण पोस्टमैन बन गए।


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