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मैं फॉर्मूला फिल्में नहीं बनाती : अपर्णा सेन

प्रियंका दुबे मेहता नई दिल्ली जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) के दूसरे दिन फिल्मों पर चर्चा क

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Jul 2019 07:05 PM (IST)Updated: Mon, 22 Jul 2019 06:27 AM (IST)
मैं फॉर्मूला फिल्में नहीं बनाती : अपर्णा सेन
मैं फॉर्मूला फिल्में नहीं बनाती : अपर्णा सेन

प्रियंका दुबे मेहता, नई दिल्ली

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जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) के दूसरे दिन फिल्मों पर चर्चा के सत्र में बाग्ला फिल्म अभिनेत्री व निर्देशक अपर्णा सेन शामिल हुई। बतौर निर्देशक उन्होंने अब तक 13 फिल्में ही बनाई हैं। इस पर वह कहती हैं कि मैं फिल्में केवल बनाने के लिए नहीं, बल्कि समाज व देश तक संदेश पहुंचाने के लिए बनाती हूं। मैं फॉर्मूला फिल्में नहीं बनाती, अगर कोशिश करती भी हूं तो बीच में ही रुक जाती हूं। फिल्में बनाने के लिए दिमाग में कोई सशक्त विषय या स्टोरी आइडिया आना चाहिए।

गुरुवार को जेएफएफ में उनकी फिल्म 'घरे बायरे आज' का प्रीमियर हुआ था। यह फिल्म रवींद्रनाथ टैगोर की अमर कृति घरे बायरे (घर और दुनिया) पर बनी है, जो गुरुदेव ने 1916 में लिखी थी। इस कृति पर सबसे पहले महान फिल्मकार सत्यजीत रे ने 1984 में इसी नाम से एक फिल्म बनाई थी। अपर्णा ने बताया कि इस फिल्म में उन्होंने गौरी लंकेश के किरदार का पुट दिया है क्योंकि उस घटना से वह स्तब्ध रह गई थीं। साथ ही इसके माध्यम से सत्यजीत रे को श्रद्धांजलि भी दी है। वह बताती हैं कि सत्यजीत रे उनके पिता के दोस्त थे, इसलिए उन्हें काका कहकर पुकारती थीं और मजाक में कहती थीं कि वह उन्हें स्टेपनी के रूप में फिल्मों में इस्तेमाल करते थे। फिल्म बनाने की कला और बारीकिया उनसे ही सीखी। एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि वह पार्टी पॉलिटिक्स में विश्वास नहीं रखती हैं, बल्कि मुद्दों को लेकर सरकार की सराहना या आलोचना करती हैं। फिल्मों के कंटेंट को लेकर उन्हें परेशानिया झेलनी पड़ीं।

अपर्णा सेन ने कहा कि आज के दौर में फिल्मों को लेकर दर्शकों की पसंद बदल रही है। समानातर सिनेमा और कमर्शियल सिनेमा के बीच की रेखा धुंधली पड़ रही है, लेकिन ग्रामीण व शहरी सिनेमा के बीच की रेखा गहराती जा रही है। वह बड़े सितारों को कास्ट नहीं करतीं, बल्कि नए चेहरों को मौका देती हैं। वह किरदार में फिट होने वाले चेहरे तलाशती हैं। महिला होने के नाते मागी मदद

मेरे लिए फेमिनिस्ट होने के मायने अलग हैं। मुझे महिला होने के नाते कभी चुनौती नहीं पेश आई। चुनौतिया आई तो केवल कंटेंट को लेकर। इंडस्ट्री में महिला होने के फायदे ज्यादा हुए। मैंने कई बार महिला होने का हवाला देते हुए मदद मागी और मिल गई। -------------------------

क्लासिक फिल्मों का रीमेक होना चाहिए। रीमेक के जरिये उन फिल्मों की सशक्त कहानियों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ढालकर आज की पीढ़ी को दिखाया जाना चाहिए। क्लासिक फिल्में बहुत मजबूत स्टोरी लाइन देती हैं।

अपर्णा सेन, अभिनेत्री व फिल्म निर्देशक

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