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सुरों की सुरीली गाथा से सजा शहर रेख्ता

फोटो संख्या : 10 डीईएल 110 से 114 तक जश्न-ए-रेख्ता -प्रसिद्ध गीतकार जावेद अख्तर संग परिचर्चा ने उदू

By JagranEdited By: Published: Sun, 10 Dec 2017 09:25 PM (IST)Updated: Sun, 10 Dec 2017 09:25 PM (IST)
सुरों की सुरीली गाथा से सजा शहर रेख्ता

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :

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राजधानी की आपाधापी के बीच मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में उर्दू के रंगो-नूर से शहर रेख्ता रोशन हुआ। जहां जुबां पर गालिब का तराना था। अकबर इलाहाबादी का फसाना था। कुछ किस्से थे बेटियों को बेहतर बताने की, चंद लाइनें थीं अपनों को अपनों से मिलाने की। जुबां पर गीता और कुरान भी। जावेद अख्तर के समाज से तीखे सवाल थे तो अन्नू कपूर के प्यार के सुरीले नगमे भी थे। रविवार को सजी जश्न-ए-रेख्ता की महफिल में मुशायरों, किस्सागोई, परिचर्चा व गजल ने चार चांद लगा दिया। यह उर्दू के प्रति प्यार का ही परिणाम था कि जावेद अख्तर को सुन तालियां बजाते उर्दू प्रेमी निजामी बंधुओं को सुनने के बाद भी टस से मस होने का नाम नहीं ले रहे थे।

जिंदगी का फलसफा

कुछ इश्क किया कुछ काम किया सत्र में जावेद अख्तर ने अतिका अहमद फारूकी के साथ गुफ्तगू की। फिल्मों में हीरो के चयन पर उन्होंने कहा कि पहले हीरो मजदूर, टैक्सी चलाने वाला, डॉक्टर, वकील आदि होता था। 50-60 के दशक में 25 या 30 उम्र वर्ग के युवा पुरुष और महिला हीरो होते थे, लेकिन 1980 केबाद औद्योगिकीकरण की वजह से 15 से 20 करोड़ की आबादी मध्यम वर्ग में शिफ्ट हुई। जो अपने बच्चों को 500 रुपये पॉकेट मनी भी दे सकती है। चूंकि युवा वर्ग की अधिकता है। लिहाजा हीरो भी अब 18, 25 उम्र के होते हैं। गुफ्तगू में मा के सर्वोपरि होने का जिक्र आया तो उन्होंने कहा कि दुनिया मा की बहुत इज्जत करती है। उसे खुदा भी मानती है, लेकिन वह तो खुदा को ही नहीं मानते। इज्जत सिर्फ मा की ही नहीं बल्कि हर महिला की होनी चाहिए। बचपन में आपको दात टूट जाने पर परीकथा सुनाई जाती थी। शहरों में यही काम सेंटा क्लाज की कहानी सुनाकर किया जाता था। जब बड़े होकर आप समझ गए कि यह सब कहानिया हैं और आप इन्हें भूल गए तो खुदा की कहानी से अब तक क्यों चिपके हैं। उसे क्यों नहीं छोड़ देते।

खुदा से बेहतर प्रशासक थे मनमोहन सिंह

अख्तर ने हल्के फुल्के अंदाज में कहा कि मैं नहीं मानता कि खुदा है, और यदि है तो फिर बड़े शर्म की बात है कि उसके होते हुए दुनिया ऐसे चल रही है। बुरा न मानिए, लेकिन हम कहते हैं कि मनमोहन सिंह के दौर में बड़े घोटाले हुए। ये हुआ, वो हुआ, लेकिन सोचिए उनके गठबंधन के कुछ साथी भी थे। उनके अपने बॉस भी थे और उनकी कुछ मजबूरिया भी रहीं होंगी। फिर भी उन्होंने सरकार चला ही ली। यहा आप तो खुदा हैं, फिर भी दुनिया ऐसे चल रही है तो यकीन मानिए मनमोहन सिंह खुदा से बेहतर प्रशासक थे।

अन्नू कपूर ने सुनाई उर्दू की सुरीली दास्तां

अन्नू कपूर ने कहा कि दिल्ली कमाल की जगह है। दिल्ली घराने का तबला वादन, गालिब, मोमीन, मीर, तकी की कविताओं की लोकप्रियता जगजाहिर है। सुरीली कहानियों के दौरान लैला और मजनूं की मुलाकात पर कहानियों का सफर महफिल में मौजूद हर एक शख्स को भाया। उर्दू-¨हदी अफसाने की बेबाक आवाजें के तहत मृदुला गर्ग, मुशर्रफ आलम, सैय्यद मोहम्मद अशरफ के बीच साहित्यिक परिचर्चा हुई। जिसमें लेखकों की बेबाकी पर विस्तार से चर्चा हुई। मुगलई जायकों का भी लोगों ने लुत्फ उठाया। पुरानी दिल्ली की चाट लोगों को पसंद आई। केंद्रीय मंत्री विजय गोयल भी मुगल जायका चखने पहुंचे। निजामी बंधुओं की कव्वाली से जश्न-ए-रेख्ता के चौथे संस्करण का यादगार समापन हुआ।


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