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जागरण को हमारे समाज के ताने बाने में बढ़ रही गांठों को भी खोलना होगा

प्रो.आनंद कुमार प्रसिद्ध समाजशास्त्री जागरण के हीरक जयंती का वर्ष भारतीय स्वाधीनता और जनतंत्र

By JagranEdited By: Published: Thu, 14 Dec 2017 10:16 PM (IST)Updated: Thu, 14 Dec 2017 10:16 PM (IST)
जागरण को हमारे समाज के ताने बाने में बढ़ रही गांठों को भी खोलना होगा
जागरण को हमारे समाज के ताने बाने में बढ़ रही गांठों को भी खोलना होगा

प्रो.आनंद कुमार

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प्रसिद्ध समाजशास्त्री

जागरण के हीरक जयंती का वर्ष भारतीय स्वाधीनता और जनतंत्र के वर्षो के साथी पूरे देश के लिए उत्सव और आत्मविश्वास का अवसर है। ¨हदी पत्रकारिता के बहाने जागरण समेत कई समाचार पत्रों ने स्वाधीनता के बाद के राष्ट्र निर्माण की चुनौतियों को पूरा करने में रचनात्मक तरीके से ऐतिहासिक योगदान किया है। अगर जागरण की विकास और विस्तार यात्रा को हम देखें तो वह हमें स्वाधीनता और देश विभाजन से जुड़ीं चुनौतियों के मुकाबले में किए गए उपक्रमों का स्मरण कराते हैं। पिछले सात दशकों में भारत के ¨हदी इलाके में जनतंत्रीकरण और राष्ट्रीय एकता में ¨हदी पत्रकारिता का बुनियादी महत्व रहा है। ¨हदी समाचार पत्र बिरादरी में जागरण अपने छोटे-छोटे कदमों से एक ऐसे मुकाम तक पहुंचा जिसने ¨हदी पत्रकारिता का विश्व में अनूठा स्थान बना दिया, क्योंकि आज यह सुखद सच सबको मालूम हो चुका है कि दुनिया का सबसे बड़ा समाचार पत्र ¨हदी भाषा का ही है। मुझे जागरण का पाठक बनने का सौभाग्य इसके काशी संस्करण की शुरुआत के साथ हुआ। तब बनारस से निकलने वाला आज अखबार राष्ट्रीय आंदोलन से शुरू पत्रकारिता की परंपरा का मानक जैसा था, लेकिन जागरण ने अपनी विशिष्ट शैली, सामाजिक और बौद्धिक सरोकारों के जरिये बगैर किसी मुकाबले के अपने को पूरे उत्तर प्रदेश के पाठकों का लोकप्रिय समाचार और विचार मंच के रूप में स्वीकृत करा लिया। श्री नरेंद्र मोहन जागरण के संपादक के रूप में भारतीय मीडिया परिवार में सम्मानित शिखर पुरुष तो थे ही, लेकिन उनके अपने सांस्कृतिक सामाजिक और राजनीतिक सरोकार कई अर्थो में अभिव्यक्ति के साहस का प्रतीक थे। किसी अखबार के संपादक का सत्ता प्रतिष्ठान के विमर्शो से अलग विमर्श को प्रस्तुत करना और प्रवाहमान बनाना बौद्धिक साहस और समाज से समर्थन की मांग करता है। श्री नरेंद्र मोहन इसमें समर्थ संपादक साबित हुए। यह ¨हदी के पाठकों के लिए एक और कीर्तिमान जैसा ही था।

इसमें यह भी जोड़ देना जरूरी है कि उनके महाप्रस्थान के बाद जागरण के नए नेतृत्व ने मीडिया तकनीकी और संचार क्रांति दोनों के साथ सफल तालमेल बनाया। और जागरण एक दैनिक समाचार पत्र के रूप में अपनी प्रगति यात्रा को अविश्वसनीय ऊंचाइयों तक ले गया। शिक्षा जगत से जुडे़ होने के कारण जागरण का ¨हदी समाचार पत्र के रूप में शिक्षा की चुनौतियों और समस्याओं तथा विद्यार्थियों व युवाजनों के प्रश्नों और सपनों के बारे में जागरण की सजग भूमिका को रेखांकित करना आवश्यक लगता है। जागरण के विगत वर्षो में ¨हदी का शिक्षा माध्यम और सूचना और राजनीति के माध्यम के रूप में भी व्यापक स्वीकार्यता हुई है। इसमें ¨हदी क्षेत्र के विद्यार्थियों शिक्षकों और अभिभावकों के लिए जागरण के स्तंभ साप्ताहिक विशेषांक और संपादकीय पृष्ठ में उपलब्ध होने वाली सामग्री का प्रशंसनीय योगदान है।

आने वाली 21 वीं शताब्दी के दूसरे दशक के समापन वर्षो में जागरण के लिए यह बड़ी चुनौती होगी कि वह भारतीय समाज विशेषकर ¨हदी के पाठकों को देश के सामने और दुनिया के सामने खड़ी मुख्य चुनौतियों के समान और उसके समाधान के लिए सहयोग करे। आज भारतीय समाज भूमंडलीकरण से पैदा अंतरविरोधों से जूझ रहा है। देश में भूमंडलीकरण से लाभांवित और इसके कारण क्षतिग्रस्त हुए क्षेत्रों समूहों और वर्गो में विभाजित होने को अभिशप्त है। ऐसे में राष्ट्र निर्माण में हमारी प्राथमिकताओं को पहचानना जरूरी है। हम शिक्षा स्वास्थ्य और पर्यावरण का मोर्चा संभाले बगैर आगे नहीं बढ़ सकेंगे। शिक्षा के व्यवसायीकरण के चार दशकों के परिणाम आशाजनक नहीं हैं। दूसरी तरफ सरकारी निगरानी में चल रही शिक्षा व्यवस्था भ्रष्टाचार और गुणवत्ता के अभाव की दोहरी मार झेल रही है। इन चुनौतियों के समाधान के लिए आंदोलन और विवाद की बजाय मंथन और संवाद की जरूरत है। इसी प्रकार स्वास्थ्य के मोर्चे पर ¨हदी भाषी और दक्षिण भारतीय प्रदेशों के बीच का फासला शर्मनाक होता जा रहा है। स्वास्थ्य की जरूरत किसे नहीं है, लेकिन स्वास्थ्य का व्यवसायीकरण इसका अधूरा समाधान है। स्वास्थ्य वोट की राजनीतिक एजेंडे में कभी नहीं आएगा, इसलिए जागरण जैसे सशक्त माध्यम का स्वास्थ्य के बारे में नागरिकों के सरोकार की अभिव्यक्ति और स्वास्थ्य संबंधी उपलब्धियों की जनसाधारण तक जानकारी, दोनों ही हमारी अपेक्षा का हिस्सा हैं।

जागरण गंगा नदी के तट से पैदा एक समाचार पत्र है। और गंगा समेत तमाम नदियां हमारी दिशाहीन नगरीकरण और औद्योगीकरण की शिकार हो चुकी हैं। इसलिए जागरण को गंगा माता समेत सभी नदियों और प्रदूषण से पीड़ित बच्चों-बूढों का संवाद माध्यम भी बनने का काम पूरा करना होगा। इतना ही नहीं जागरण को हमारे समाज के ताने बाने में बढ़ रही गांठों को भी खोलना और कबीर वाले अंदाज में बगैर किसी से दोस्ती और बैर के सबकी खैरियत का जिम्मा भी पूरा करना होगा।


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