हीमोफीलिया मरीजों को नहीं मिल रहा फैक्टर-7 का इंजेक्शन
अनियमितता -दिल्ली के किसी सरकारी अस्पताल में उपलब्ध नहीं है यह दवा -आरटीआइ के जवाब से स
रणविजय सिंह नई दिल्ली
चिकित्सा सुविधाओं में सुधार के दावे बहुत किए जाते रहे हैं। फिर भी यह जानकर हैरानी होगी राजधानी में स्थित दिल्ली या केंद्र सरकार के किसी भी अस्पताल में हीमोफीलिया के गंभीर मरीजों के इलाज के लिए फैक्टर-7 का इंजेक्शन उपलब्ध नहीं है। इसलिए जरूरतमंद मरीज की जिंदगी दाव पर है। आरटीआइ के जवाब में यह बात सामने आई है।
यह हाल तब है जब लोकनायक अस्पताल में हीमोफीलिया के इलाज के लिए विशेष सेंटर हैं। यह देश में इस बीमारी के इलाज का सबसे बड़ा सेंटर हैं। दरअसल हीमोफीलिया पीड़ित एक व्यक्ति ने दिल्ली सरकार के जीटीबी, लोकनायक व डीडीयू अस्पताल और केंद्र सरकार के आरएमएल व सफदरजंग अस्पताल में आरटीआइ दायर की थी। जिसमें अस्पतालों में हीमोफीलिया के पंजीकृत मरीजों और इलाज की सुविधाओं की जानकारी मांगी गई थी। जीटीबी अस्पताल ने अपने जवाब में बताया है कि अस्पताल में इस बीमारी के 79 मरीज पंजीकृत हैं। फैक्टर-8 व फैक्टर-9 का इंजेक्शन उपलब्ध है पर फैक्टर-7 का नहीं है। डीडीयू अस्पताल ने बताया कि इस साल जनवरी से जुलाई तक हीमोफीलिया से पीड़ित 58 मरीज देखे गए हैं। जिनमें से 58 मरीज हीमोफीलिया-ए व एक मरीज हीमोफीलिया-बी बीमारी से पीड़ित था। उन मरीजों को जरूरत के अनुसार फैक्टर-8 व नौ के इंजेक्शन दिए गए पर फैक्टर-7 का इंजेक्शन उपलब्ध नहीं है। लोकनायक अस्पताल ने अपने जवाब में बताया है कि इस अस्पताल में 3112 मरीज पंजीकृत हैं। यहां भी फैक्टर-7 का इंजेक्शन नहीं है। केंद्र सरकार के सफदरजंग और आरएमएल अस्पताल में भी यही साल है। हालांकि फैक्टर-7 के इंजेक्शन क्यों उपलब्ध नहीं हैं यह सवाल आरटीआइ में नहीं पूछा गया था और अस्पतालों ने भी अपने जवाब में यह नहीं बताया है, लेकिन यह दवा महंगी है। इसके एक मिलीग्राम के इंजेक्शन की कीमत करीब 47,000 रुपये है। यदि किसी मरीज को एक दिन में तीन एमजी के इंजेक्शन की जरूरत हो तो 1,40,000 रुपये का खर्च बैठता है। अस्पतालों ने अपने जवाब में कहा है कि हीमोफीलिया के इलाज के लिए उन्हें अलग से बजट नहीं मिलता।
क्या होती है हीमोफीलिया की बीमारी
देश में करीब डेढ़ लाख लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। ब्लड में फैक्टर-8 की कमी होने पर हीमोफीलिया ए व फैक्टर-9 की कमी होने पर हीमोफीलिया बी बीमारी होती है। इस वजह से मरीज के शरीर के किसी हिस्से में आंतरिक या बाहरी रक्तस्राव होने लगता है। आंतरिक रक्तस्राव होने पर यह जमकर ट्यूमर का रूप ले लेता है। रक्तस्राव को रोकने के लिए हीमोफीलिया ए से पीड़ित मरीज को हर सप्ताह फैक्टर-8 के तीन इंजेक्शन लगाने पड़ते हैं। वहीं हीमोफीलिया बी होने पर हर सप्ताह फैक्टर-9 के दो इंजेक्शन लगाने पड़ते हैं।
क्या है फैक्टर-7 की भूमिका
डॉक्टर कहते हैं कि इस बीमारी का मुख्य इलाज फैक्टर-8 व नौ का इंजेक्शन ही है। लंबे समय तक इलाज चलने से कई मरीजों में इस इंजेक्शन का असर बंद हो जाता है। इस स्थिति में मरीजों को फैक्टर-7 का इंजेक्शन लगाने की जरूरत पड़ती है।
आगरा व जयपुर का चक्कर लगाने को मजबूर मरीज
हीमोफीलिया मरीजों के लिए काम करने वाले वकील सागर शर्मा ने कहा कि जरूरतमंद मरीजों को हर 15 दिन पर फैक्टर-7 का इंजेक्शन लगाना जरूरी होता है। दिल्ली में इस इंजेक्शन के उपलब्ध नहीं होने से मरीजों को आगरा व जयपुर का चक्कर काटना पड़ता है। दिल्ली में ऐसे करीब 35 मरीज हैं, जिनमें ज्यादातर बच्चे हैं। आगरा व जयपुर भागदौड़ करने से बच्चों की पढ़ाई व परिजनों का कामकाज प्रभावित होता है।