जामा मस्जिद के उत्तर-दक्षिण में बसती है जमात व जज्बात की दुनिया
विश्व प्रसिद्ध जामा मस्जिद के उत्तर और दक्षिण में अलग-अलग दुनियां बसती है। अलग रहन-सहन खान-पान और पहनावा। दोनों भाग चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत आता है। जामा मस्जिद के गेट नंबर-1 के सामने से गुजरते उर्दू बाजार सड़क के किनारे दशकों पुरानी उर्दू किताबों की दुकान पर बैठे निजामुद्दीन देहलवी बिना लाग-लपेट के कहते हैं कि यहां की गलियों में बहुत पिछड़ापन है।
नेमिष हेमंत, नई दिल्ली
विश्व प्रसिद्ध जामा मस्जिद के उत्तर और दक्षिण में अलग-अलग दुनिया बसती है। अलग रहन-सहन, खान-पान और पहनावा। दोनों भाग चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। जामा मस्जिद के गेट नंबर-1 के सामने से गुजरते उर्दू बाजार सड़क के किनारे दशकों पुरानी उर्दू किताबों की दुकान पर बैठे निजामुद्दीन देहलवी बिना लाग-लपेट के कहते हैं कि यहां की गलियों में बहुत पिछड़ापन है। कई महिलाएं मिल जाएंगी जिन्होंने ठंडी सड़क (लालकिले के सामने की सड़क को पुरानी दिल्ली में ठंडी सड़क के नाम से भी जाना जाता है) तक नहीं गई हैं। कई बस और ट्रेन तक में नहीं बैठी है। जिनकी दुनियां पुरानी दिल्ली की संकरी गलियों में ही है। वैसे, निजामुद्दीन ने जाकिर हुसैन कॉलेज से उर्दू में एमए किया है, लेकिन वह यह कहते हुए गंभीर हो जाते हैं कि यह क्षेत्र शिक्षा के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है। इसलिए यहां वोट अब भी पैसे, बिरयानी और शराब पर बिक जाते हैं। यहां किताबों के अलावा मुगलई व्यंजनों की कई लोकप्रिय दुकानें हैं। जामा मस्जिद के सामने से शुरू होकर यह इलाका संकरी गलियों में करीब दो किलोमीटर का सफर करते हुए तुर्कमान गेट तक निकल जाता है। यहां मुगलकालीन जामा मस्जिद का नाम अदब से लिया जाता है। क्योंकि देशभर का बड़ा धार्मिक केंद्र होने के साथ ही इस क्षेत्र की यह प्रमुख पहचान भी है।
मनी एक्सचेंज की छोटी सी दुकान पर बैठे जहांगीर (बदला हुआ नाम) कहते हैं कि यहां जो कुछ भी है इस मस्जिद की बदौलत है। न जाने कितनों की रोजी-रोटी इससे चल रही है। वह समस्याओं के सवाल पर कहते हैं कि चावड़ी बाजार की सड़क काफी खराब है। इससे दर्दनाक बात क्या हो सकती है कि एक गर्भवती महिला इस कारण रिक्शे से गिर जाती है। मतदान के सवाल पर वह दो टूक कहते हैं कि भाजपा को वोट नहीं दे सकते हैं, क्योंकि उसके शासनकाल में देश की फिजा खराब हुई है।
यही कहना जामा मस्जिद के सामने की सड़क पर कपड़े की दुकान पर बैठे दुकानदार का है। काफी कुरेदने पर कहते हैं कि इस सरकार ने कोई काम नहीं किया है। हालांकि आजादी के 70 सालों बाद भी इस इलाके के पिछड़ेपन पर उनके भीतर भी कसक है और इसे वह शिक्षा से जोड़ते हैं। कहते हैं कि अगर शिक्षा का भरपूर अवसर मिला होता तो हालात दूसरे होते। पर इसमें वह यह भी जोड़ते हैं कि अब लोगों के भीतर जागरूकता आई है। लड़कों के साथ-साथ लड़कियों की शिक्षा पर भी जोर दिया जा रहा है। वह अपनी चारों लड़कियों को उच्च शिक्षा दिलवा रहे हैं। युवा इर्तजा कुरैशी कहते हैं कि अब हालात बदल रहे हैं। लड़कियां शिक्षा में आगे निकल रही हैं, लड़के पिछड़ रहे हैं। इसके पीछे वह तर्क देते हैं कि इस इलाके में पुलिस-प्रशासन का कोई डर भय नहीं है। इसलिए छोटी उम्र में ही लड़के फुटपाथ व सड़कें कब्जा कर दुकानें लगाने लग जाते हैं। उनकी आमदनी होने लगती है। अगर ऐसा न हो तो लड़के पढ़े। थोड़ा आगे संकरी गली में ही एक लड़कियों का स्कूल चल रहा है। जिसमें से खिलखिलाहट की आवाज आ रही है। यहां की इंचार्ज यासमीन बताती है कि यह एक ऐसी जगह है जहां महिलाएं, युवतियां व बच्चियां खुलकर बात कर पाती है। घर में अभी इसकी इजाजत नहीं है।