फलों के बाग से जिंदगी में रस घोल रहे किसान
वानिकी की राह पकड़ दिल्ली देहात के किसान अब अपनी तकदीर संवारने में जुटे हैं। वानिकी की ओर किसानों का रूझान उन गांवों में अधिक नजर आ रहा है जो ग्रीन बेल्ट के अंतर्गत आते हैं। यहां के किसान खेतों में फलों के बाग लगा रहे हैं। ये बाग बागवानी विशेषज्ञों की देखरेख में जैविक तरीके से विकसित हो रहे हैं। खेत के आसपास बाग लगा देख अब अन्य किसान भी कुछ ऐसा ही करने को प्रेरित हो रहे हैं।
गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली : बागवानी की राह पकड़ दिल्ली देहात के किसान अब अपनी तकदीर संवारने में जुटे हैं। बागवानी की ओर किसानों का रूझान उन गांवों में अधिक नजर आ रहा है, जो ग्रीन बेल्ट के अंतर्गत आते हैं। यहां के किसान खेतों में फलों के बाग लगा रहे हैं। ये बाग बागवानी विशेषज्ञों की देखरेख में जैविक तरीके से विकसित हो रहे हैं। खेत के आसपास बाग लगा देख अब अन्य किसान भी कुछ ऐसा ही करने को प्रेरित हो रहे हैं।
उजवा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के बागवानी विशेषज्ञ डॉ. राकेश कुमार बताते हैं कि पिछले करीब पांच वर्षों के दौरान बाग लगाने का प्रचलन दिल्ली देहात, खासकर ग्रीन बेल्ट के अंतर्गत आने वाले गांवों में काफी बढ़ा है। इसकी एक बड़ी वजह खेत में पारंपरिक तौर पर उगाए जाने वाले धान-गेहूं की तुलना में बाग से कई गुना अधिक होने वाली आमदनी है। यह एक ओर जहां किसानों को आर्थिक तौर पर सशक्त बनाता है तो दूसरी ओर किसानों की आमदनी में काफी इजाफा करता है। बडूसराय, कैर, दरियापुर व मित्राऊं गांव में लगाए गए बाग इसके मिशाल हैं। छह एकड़ में लगाया नींबू, अमरूद व बेर का बाग
छावला गांव निवासी यमन शौकीन ने बताया कि हमने छह एकड़ जमीन पर जैविक खेती करने का मन बनाया था। कृषि विज्ञान केंद्र से हमें पूरा तकनीकी सहयोग मिला। सबसे पहले हम लोगों ने यहां की मिट्टी व पानी की जांच कराई। तमाम नतीजों के आधार पर विशेषज्ञों से राय ली। जो सुधार करने की सलाह मिली, उन पर अमल किया। फिर यहां हम लोगों ने बाग लगाना शुरू किया। आज यहां नींबू, अमरूद, बेर के करीब 600 पेड़ लगे हैं। आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद: दिलीप यादव
दरियापुर गांव के दिलीप सिंह यादव ने पंजाब नेशनल बैंक में वरिष्ठ प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्ति के बाद फल का बाग लगाने का फैसला किया। इस दौरान वे कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में आए। करीब डेढ़ बीघा खेत में उन्होंने विभिन्न फलों के करीब सौ पेड़ लगा दिए। इस बात को करीब तीन वर्ष हो चुके हैं। अब पेड़ फल दे रहे हैं। दिलीप बताते हैं कि इन पेड़ों को बढ़ते देखना, इनसे फल निकलते देखना एक अलग ही आनंद देता है। आर्थिक दृष्टि से भी अगर देखें तो यह बहुत फायदेमंद है। दिलीप अपने बाग में केवल जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं। वे बताते हैं कि पहले दो वर्ष में फल आए, लेकिन इसका व्यवसायिक लाभ नहीं मिला। इस बार से इसका व्यवसायिक लाभ मिलना शुरू हो जाएगा। जिस प्रकार से फल नजर आ रहे हैं, उससे यह साफ है कि मेहनत का फल मीठा ही होगा। दिलीप ने अपने बाग में अमरूद, आम, नींबू, अनार के पेड़ लगाए हैं। फलों की विविधता के बीच से किस्मों में भी विविधता कायम रखे हुए हैं।