गानों के बोल पर ध्यान देना जरूरी : फराह खान
प्रियंका दुबे मेहता नई दिल्ली बदलते दौर में समानातर और कम बजट के सिनेमा को भी पहचान मिल र
प्रियंका दुबे मेहता, नई दिल्ली
बदलते दौर में समानातर और कम बजट के सिनेमा को भी पहचान मिल रही है। ये फिल्में पैसा भी कमा रही हैं और लोगों को पसंद भी आ रही हैं। यह बात कोरियोग्राफर और फिल्म निर्देशक फराह खान ने दसवें जागरण फिल्म फेस्टिवल के दौरान आयोजित परिचर्चा में कही। कार्यक्रम का संचालन फिल्म समीक्षक राजीव मसंद ने किया। अपने चिर-परिचित अंदाज में जब राजीव ने एक के बाद एक प्रश्नों की बौछार की तो फराह भी हर सवाल पर नहले पर दहला साबित हुई। उन्होंने हर प्रश्न का जवाब रोचक और मजाकिया अंदाज में देकर श्रोताओं का मन मोह लिया।
बात जब फराह खान की फिल्मों की आई तो बड़ी बेबाकी से उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ फिल्में इस कदर विफल हुई कि उन्हें आज याद नहीं करना चाहतीं। उन्होंने कहा कि फिल्मों में जो बदलाव आया है वह दर्शकों की वजह से भी आया है। दर्शक बड़े बजट की फिल्मों को सराहते हैं और ऐसे में उनकी फिल्में लोगों को पसंद आती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह आज भले ही सफल फिल्म निर्देशकों की फेहरिस्त में शामिल हों, लेकिन कभी वह भी आम लोगों की तरह थीं। शुरुआती दिनों को कभी नहीं भुलाया और शायद इसी वजह से आज भी जमीन से जुड़ी हुई हैं।
फिल्मों में आइटम सॉन्ग के बढ़ते प्रचलन को लेकर फराह ने कहा कि उन्हें लगता है कि आज के दौर में जो भी आइटम सॉन्ग उन्होंने बनाए हैं उनमें कहीं औरत को वस्तु के तौर पर नहीं दिखाया गया है बल्कि पहले के बजाय आज के ये गाने ज्यादा मनोरंजक हैं। पहले के आइटम सॉन्ग अगर आज सुने जाएं तो उनके बोल से लेकर कोरियोग्राफी तक में अश्लीलता का पुट नजर आता है। एक समय माधुरी दीक्षित पर फिल्माया गया बेहद लोकप्रिय हुआ गाना 'चने के खेत में' आज सुनें तो लगता है कि उसमें छेड़खानी के कृत्य को ग्लैमराइज किया गया है। आज ऐसा नहीं है, गानों को लेकर इंडस्ट्री थोड़ी गंभीर हुई है।
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रीमेक फिल्में बनें, लेकिन खूबसूरती रहे बरकरार
फराह द्वारा अमिताभ बच्चन अभिनीत सत्ते पे सत्ता का रीमेक बनाने की खबरें हैं। हालाकि इसकी आधिकारिक घोषणा न होने के कारण उन्होंने इसका नाम नहीं लिया, लेकिन रीमेक के चलन पर विचार जरूर साझा किए। फराह ने कहा कि रीमेक से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। आज से पंद्रह साल पहले जब वह फिल्में बनाती थीं तो रीमेक के बारे में नहीं सोच पाती थीं, लेकिन आज उन्हें लगता है कि जो क्लासिक फिल्में उन्होंने देखी हैं उन्हें उनके बच्चे भी देख सकें। ऐसे में वह रीमेक की तरफ मुड़ीं। फिल्में हों या गाने, उन्हें फिर से बनाने का दौर चल पड़ा है। वह चाहती हैं कि जो भी रीमेक फिल्में बनें उनकी खूबसूरती से छेड़छाड़ न हो। अगर कोई इतनी हिम्मत करता भी है तो उससे बेहतर बनाने का दबाव होता है। उनके मुताबिक संघर्ष केवल फिल्म इंडस्ट्री में नहीं है। यह हर जगह और हर किसी के जीवन में है। --------------------------------------
अब 25 साल बाद मैं शाह रुख के अलावा किसी अन्य हीरो के बारे में सोच पा रही हूं। हालाकि शाह रुख अब भी मेरे पसंदीदा हैं, लेकिन अब मैं राजकुमार राव, वरुण धवन व रणबीर कपूर जैसे अभिनेताओं को अपनी फिल्मों में लेने के बारे में सोच रही हूं।
-फराह खान, कोरियोग्राफर और फिल्म निर्देशक