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निजी अस्पतालों में कोविड-19 के इलाज के खर्च को सीमति करें

दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा कि राज्य के निजी अस्पतालों में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज पर आने वाले खर्च को तय करने की मांग को लेकर दायर याचिका को प्रतिवेदन के तौर पर लेकर विचार करें।

By JagranEdited By: Published: Tue, 09 Jun 2020 08:42 PM (IST)Updated: Wed, 10 Jun 2020 02:03 AM (IST)
निजी अस्पतालों में कोविड-19 के इलाज के खर्च को सीमति करें
निजी अस्पतालों में कोविड-19 के इलाज के खर्च को सीमति करें

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :

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दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा कि राज्य के निजी अस्पतालों में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज पर आने वाले खर्च को तय करने की मांग को लेकर दायर याचिका को प्रतिवेदन के तौर पर लेकर विचार करें। याचिकाकर्ता विनीत कुमार वाधवा ने कहा कि दिल्ली सरकार को ऐसी व्यवस्था बनाने का निर्देश दिया जाए कि निजी अस्पताल अपनी वेबसाइट पर उनके अस्पताल में उपलब्ध बेड के संबंध में जानकारी उपलब्ध कराएं।

मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार से कहा कि वह इसे प्रतिवेदन के तौर पर लेकर अंतिम निर्णय करें। पीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए याचिका का निपटारा कर दिया।

इसी विषय से जुड़ी अभय गुप्ता, प्रकाश अरोड़ा, कुणाल मदान, गौरव प्रकाश शाह और अशोक यादव की याचिका का भी हाई कोर्ट ने निपटारा कर दिया। बच्चे की याचिका पर करें विचार

दिल्ली सरकार के कई फैसलों के खिलाफ एक दो वर्षीय बच्चे दिल्ली हाई कोर्ट पहुंच गया। हाई कोर्ट ने बच्चे की याचिका को प्रतिवेदन के तौर लेकर विचार करने का निर्देश दिया है। बच्चे ने अलॉक-1 के दौरान कई तरह की पाबंदियां हटाने के बाद पैदा होने वाले खतरे का जिक्र किया गया है। बच्चे ने इसके साथ ही बिना लक्षण वाले मरीजों की कोरोना जांच कराने के फैसले से उसे और अन्य बच्चों के समक्ष खतरा पैदा होने की आशंका जताई है। उसने यह भी कहा कि शॉपिग मॉल और रेस्तरां खुलने से सड़कों और बाजारों में लोगों की आवाजाही ज्यादा बढ़ गई है, इससे संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। पिता के माध्यम से दायर याचिका में बच्चे कहा वह संयुक्त परिवार में रहता है, जिसमें रहने वाले सभी लोग रोजी-रोटी के लिए काम के सिलसिले में बाहर जाते हैं। 8 जून से कई तरह की छूट दी गई हैं, जिससे दिल्ली के लोगों में कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। बेघर व मानसिक रूप से बीमार लोगों को इलाज मुहैया कराने पर करें विचार

बेघर व मानसिक रूप से बीमार लोगों को लेकर दायर एक अन्य याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को कहा कि इसे प्रतिविदेन के तौर पर लेकर विचार करें। मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने दिल्ली के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि दो लाख से ऊपर बेघर एवं मानसिक रूप से बीमार लोगों को कोरोना होने की दशा में उनका इलाज मुहैया कराने पर गंभीरता से विचार करें। याचिकाकर्ता गौरव बंसल ने कहा था कि बेघर लोगों के पास ना ही रहने का ठिकाना है और ना ही उनका कोई पहचान पत्र है। ऐसी सूरत में अगर सरकार इलाज पहचान पत्र देख कर ही करेगी तो इन लोगों को इलाज कैसे मिलेगा। याचिका के अनुसार दिल्ली सरकार ने इलाज के लिए दिल्ली के अस्पतालों में पहचान पत्र को अनिवार्य कर दिया है। ऐसी स्थिति में बिना पहचान पत्र के मरीजों का इलाज कैसे होगा। सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के स्टैंडिग काउंसल ने पीठ को बताया कि उपराज्यपाल अनिल बैजल ने मुख्यमंत्री अरविद केजरीवाल के उस फैसले को पलट दिया है जिसमें उन्होंने दिल्ली सरकार के अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली के मरीजों का इलाज करने की बात की थी। इसके अलावा उपराज्यपाल ने कहा कि अब जिन लोगों को कोरोना का लक्षण नहीं भी दिखाई देता है और जो सीधे किसी कोरोना पॉजिटिव के संपर्क में आए हैं, वह 5 से लेकर 10 दिन के अंदर कोरोना की जांच करवा सकते हैं।


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