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Exclusive Interview: फौज लड़कियों के लिए सुरक्षित, हर लड़की इसका सपना देख सकती है-लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. माधुरी

International Womens Day 2021 अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के विशेष मौके पर लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. माधुरी बताती हैं कि फौज लड़कियों के लिए सुरक्षित है और हर लड़की इसका सपना देख सकती है। उनका कहना है कि वे भी अपनी जिद से ही फौज में आईं।.

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sun, 07 Mar 2021 04:53 PM (IST)Updated: Mon, 08 Mar 2021 10:04 AM (IST)
Exclusive Interview: फौज लड़कियों के लिए सुरक्षित, हर लड़की इसका सपना देख सकती है-लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. माधुरी
लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. माधुरी - पेश है उनसे हुई खास बातचीत के अंश ..

नई दिल्‍ली, यशा माथुर। International Women's Day 2021 लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. माधुरी कानिटकर भारतीय सेना में दूसरे सबसे बड़े पद पर आने वाली पहली महिला हैं। वे भारतीय सशस्त्रबलों में लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर पहुंचने वाली तीसरी महिला और पहली बाल रोग विशेषज्ञ हैं। 

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जिद थी फौज में जाने की

मैं जब फिल्मों में सेना की अफसरों को देखती थी तो मुझे बहुत अच्छा लगता था। मैं सत्रह साल की छोटी और टीनएजर थी। जब पहली बार सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज (एएफएमसी), पुणे गई तो वहां पर मुझे आकर्षण हुआ कि मुझे यही करना है। फिर मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मैंने पापा से जिद की कि मुझे तो फौज में ही जाना है। हालांकि घर में इसका विरोध भी हुआ। जब मैंने एएफएमसी ज्वाइन किया तो दादा-दादी को समझा दिया था। लेकिन पापा डीन के पास चले गए कि यह तो माइनर है, मैंने इसे स्वीकृति नहीं दी हे। पापा ने मुझे वहां से बाहर निकाल कर दूसरे कॉलेज में भर्ती करवाना चाहा। लेकिन लड़की जब जिद कर लेती है तो उसे मनवा कर ही छोड़ती है। घर में मेरा रोना-धोना चला तो फिर पापा ने मुझसे कहा कि अगर एएफएमसी जाना चाहती हो तो तुम्हें फौज में जाना पड़ेगा। बाद में मुझसे मत कहना कि मेरे बॉन्ड का भुगतान कर दो। मैंने कहा कि मेरा इरादा पक्का है और मुझे फौज में ही जाना है। इसलिए जब कभी मुझे कोई मुश्किल आती तो मैं खुद को याद दिलाती कि यह तो मेरी ही जिद थी। मेरा ही इरादा था।

यूनिफॉर्म ने किया आकर्षित

मुझे बचपन में सेना के बारे में ज्यादा पता नहीं था क्योंकि पिता रेलवे में थे और दादी डॉक्टर थीं। लेकिन जब बारहवीं में थी तब पुणे के हॉस्टल में मेरी एक दोस्त सुचित्रा के पिता वायुसेना में थे। वी हमें एक दिन एएफएमसी दिखाने ले गए। जब मैंने वहां सभी को यूनिफॉर्म में देखा तो मुझे बहुत अच्छा लगा। वहां बड़े मैदान थे, स्विमिंग पूल थे। तब मुझे लगा कि मुझे यहीं आना है।

फील्ड पोस्टिंग पर गई तो हैरान हो गए साथी

उस समय सिर्फ मेडिकल कोर में लड़कियां होती थीं और वे भी कम। हमारे बैच में तकरीबन बीस लड़कियां थी। जब समाज और फौज ने तरक्की की तो सिर्फ अस्पतालों तक सीमित रहने वाली महिलाओं को फील्ड पोस्टिंग मिलने लगी। हमारे बैच को पासिंगआउट परेड के बाद फील्ड पोस्टिंग मिली। जब मैं पहली बार फील्ड अस्पताल में पहुंची तो सब हैरानी से देखने लगे कि यह महिला अधिकारी कहां रहेंगी। मुझसे कहा गया कि आप हेडक्वार्टर के मेस में ठहरिए। हम तो टेंट में रहते हैं। मैंने कहा कि मैं यहां आई हूं, तो यहीं रहूंगी। वहां मुझे फिर जिद करनी पड़ी। मैं वहीं रही और वहीं से सीखने की शुरुआत हुई। मेरे जवान भाइयों और पुरुष सहयोगियों ने काफी इज्जत दी। मैं उनके साथ दौड़ती, खेलती। इससे मेरा अपनी काबिलियत पर भी भरोसा बढ़ा।

हर लड़की सपने देख सकती है

यह कहा जाता है कि सेना में जो महिलाएं हैं वे पहले से ही सशक्त हैं। हम जैसी सशक्त महिलाएं अगर अन्य महिलाओं के सामने आकर बात करें तो उन्हें बहुत प्रेरणा मिलेगी। हम बताएंगे कि लड़के-लड़की बराबर हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर नेशनल ज्योग्राफिक चैनल पर रात 9 बजे 'वूमेन ऑफ ऑनर- डेस्टिनेशन आर्मी' नाम की डॉक्यूमेंट्री प्रसारित की जाने वाली है। इस फिल्म को लड़कियों के साथ लड़कों को भी देखना चाहिए। इससे जो जज्बा तैयार होगा उसे पूरा देश देखेगा और हर लड़की और लड़का यह सोचेगा कि हम भी ऐसे बनना चाहते हैं। हर लड़की एक सपना देख सकती है। इसमें जेंडर नहीं आना चाहिए। मैं लड़कियों को कहूंगी कि सेना सुरक्षित जगह है जहां पर गर्व के साथ काम कर सकते हो। हमारे बैच में पासिंगआउट परेड में शामिल महिलाओं ने साड़ी में मार्च किया था।

पति-पत्नी लेफ्टिनेंट जनरल

हम दोनों पति-पत्नी लेफ्टिनेंट जनरल हैं। देश के पहले लेफ्टिनेंट जनरल दंपत्ती हैं। अब पति रिटायर हो चुके हैं। जब मैं बारहवीं में थी तो इनसे (पति लेफ्टिनेंट जनरल राजीव कानिटकर) एएफएमसी में ही मुलाकात हुई। जब भी मैं कमजोर पड़ी तो परिवार ने साथ दिया। पति का हमेशा सहयोग रहा। साथी अधिकारियों ने भी काफी मदद की। लेकिन घर में आम लोगों की तरह ही रहते हैं। मैं आज भी दौड़ती हूं, फिट रहती हूं, व्यायाम करती हूं और बच्चों जैसा उत्साह रखती हूं इसलिए इतनी ऊर्जावान दिखती हूं।

सेना में महिलाओं के कड़े प्रशिक्षण को दर्शाती है 'वूमेन ऑफ ऑनर: डेस्टिनेशन आर्मी'

'वूमेन ऑफ ऑनर: डेस्टिनेशन आर्मी' फिल्म को जब आप छोटे पर्दे पर देखेंगे तो दातों तले अंगुली दबा लेंगे। भारतीय सेना में शामिल होने वाली महिलाओं को कमीशन से पहले किस प्रकार की कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है उसका ब्यौरा प्रस्तुत करती है यह फिल्म।

नेशनल जियोग्राफिक इंडिया भारतीय सेना के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर इस विशेष फिल्म 'वूमेन ऑफ ऑनर: डेस्टिनेशन आर्मी' के जरिए भारतीय सेना में महिलाओं के कड़े प्रशिक्षण, उनके पैशन और उनकी हिम्मत को बड़े ही विश्वसनीय तरीके से दिखाने वाला है। यह फिल्म चेन्नई की ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी में ट्रेनिंग कर रही दो महिला कैडेट्स की दिलचस्प कहानी दर्शाती है। इसमें अरुणाचल प्रदेश से आने वाली 26 वर्षीय महिला कैडेट इप्पू मेना का अकादमी में प्रवेश से लेकर सीनियर कैडेट बनने तक का रोमांचक सफर दिखाया गया है और दूसरी महिला कैडेट के तौर पर श्रुति दुबे की कड़ी मेहनत दिखाई गई है। फिल्म में श्रुति दुबे कहती हैं कि मैं शारीरिक रूप से फिट नहीं थी। मैने यहां आने से पहले कभी नहीं सोचा था कि मैं एक बार में 28 किलोमीटर भी दौड़ सकती हूं। फिल्म में लड़कियों का कैडेट के रूप में मेकओवर भी दिखाया गया है। फिल्म में भारतीय थल सेना अध्यक्ष जनरल एम. एम. नरवण कहते हैं कि 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में हमने महिलाओं को थल सेना में प्रवेश देना शुरू किया। पहले इस बात को लेकर कुछ आशंका थी कि क्या वे काम का बोझ और सेवा की मांग को संभाल पाएंगी। लेकिन आज मैं बेहद गर्व के साथ यह कह सकता हूं कि उन्होंने खुद को योग्य साबित किया है। 'वूमेन ऑफ ऑनर: डेस्टिनेशन आर्मी' का प्रीमियर 8 मार्च, 2021 को रात 9 बजे नेशनल जियोग्राफिक चैनल पर होगा। प्रेस और सेना के अधिकारियों के सामने फिल्म की स्क्रीनिंग जब दिल्ली कैंट के एनसीसी ऑडिटोरियम में की गई तो हर किसी ने इसे काफी पसंद किया। इस स्क्री्निंग के मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल डॉ.माधुरी कानिटकर अपने पति लेफ्टिनेंट जनरल राजीव कानिटकर के साथ शामिल हुईं।


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