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फूट की वजह से हारी एबीवीपी

यमुनापार के कॉलेजों में होने वाले छात्र संघ के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की अंदरुनी फूट संगठन को ले डूबी। एबीवीपी की इस फूट के कारण कॉलेजों में इस बार भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआइ) ने जीत का परचम लहराया। इस करारी हार के बाद एबीवीपी में खलबली मची हुई है। एबीवीपी के नेता हार का विशेषण करने में जुट गए हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 12 Sep 2018 11:02 PM (IST)Updated: Wed, 12 Sep 2018 11:02 PM (IST)
फूट की वजह से हारी एबीवीपी
फूट की वजह से हारी एबीवीपी

शुजाउद्दीन, पूर्वी दिल्ली

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यमुनापार के कॉलेजों में होने वाले छात्र संघ के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की अंदरूनी फूट संगठन को ले डूबी। एबीवीपी की इस फूट के कारण कॉलेजों में इस बार भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआइ) ने जीत का परचम लहराया। इस करारी हार के बाद एबीवीपी में खलबली मची हुई है। एबीवीपी के नेता हार का विश्लेषण करने में जुट गए हैं।

विवेकानंद महिला कॉलेज में एबीवीपी के सदस्य संगठन से इस बात को लेकर काफी नाराज थे कि उन्होंने जमीनी स्तर पर जुड़े सदस्यों को चुनाव लड़वाने की जगह भाजपा में किसी न किसी पर पद पर आसीन नेताओं की बेटियों को चुनाव लड़वाया। एबीवीपी की महिला सदस्यों ने बताया कि चुनाव से पहले ही संगठन को साफ तौर पर कहा गया था कि छात्र संघ चुनाव उन कार्यकर्ताओं को लड़वाए जाएं जो राजनीति में सक्रिय हैं, लेकिन संगठन ने इस बात को नजरअंदाज किया। पिछले वर्ष इसी कॉलेज में सातों सीटें एबीवीपी की थीं, लेकिन इस बार फूट के कारण वह सातों सीटें एबीवीपी बुरी तरह हार गई। कुछ माह पहले एबीवीपी की बहुत सी सदस्य कॉलेज प्रशासन के खिलाफ विभिन्न मांगों को लेकर भूख हड़ताल पर बैठी थीं। भूख हड़ताल की वजह से मुस्कान भाटिया नामक छात्रा को अस्पताल तक में भर्ती होना पड़ा था। एबीवीपी की सदस्यों ने बताया कि मुस्कान भाटिया इस वर्ष एबीवीपी से अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ रही थी और वह प्रचार में भी जुटी हुई थी, लेकिन चुनाव से कुछ दिन पहले एबीवीपी ने अपने पैनल की जो घोषणा की, इसमें मुसकान का नाम नहीं था। इससे नाराज मुस्कान व उनकी सहयोगियों ने अपना खुद का पैनल बनाकर चुनाव लड़ा। नतीजा यह हुआ कि एबीवीपी बुरी तरह से हार गई। एबीवीपी का यही हाल श्याम लाल कॉलेज सांध्य में हुआ। कॉलेज में इस बार एबीवीपी के बागी निर्दलीय चुनाव लड़कर पांच सीटों पर जीते, जबकि एबीवीपी को दो सीटों से संतोष करना पड़ा। कॉलेज से एबीवीपी के सदस्यों ने बताया कि संगठन ने उन कार्यकर्ताओं को चुनावी मैदान में उतारा, जो सक्रिय नहीं थे। संगठन तभी जीत दर्ज कर सकता है जब कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता दी जाए। कॉलेज में बहुत से एबीवीपी के सदस्यों ने संगठन के उम्मीदवारों को वोट देने की जगह बागियों को वोट किए।


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