डीयू साफ-सुथरा है, तो फिर जीआरसी से क्यों डर रहा : हाई कोर्ट
ओपन बुक परीक्षा (ओबीई) परीक्षा की निगरानी के लिए पुर्नगठित की गई शिकायत निवारण समिति (जीआरसी) की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) से पूछा कि अगर आप साफ-सुथरे हैं तो फिर जीआरसी के पुर्नगठन के न्यायिक आदेश से क्यों डर रहे हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने ओबीई के दौरान छात्रों की शिकायत का निवारण करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी की देखरेख में जीआरसी का पुर्नगठन किया गया है।
- डीयू ने जीआरसी के पुनर्गठन के खिलाफ दाखिल की चुनौती याचिका
- पीठ ने जीआरसी में प्रो. एससी राय को शामिल करने की इजाजत दी
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की तरफ से आयोजित अंतिम वर्ष के छात्रों की ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षाओं (ओबीई) की निगरानी के लिए शिकायत निवारण समिति (जीआरसी) के पुनर्गठन फैसले के खिलाफ दिल्ली विश्वविद्यालय ने चुनौती याचिका दाखिल की है।
याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति हिमा कोहली व न्यायमूर्ति एस प्रसाद की पीठ ने कहा कि डीयू अपनी ईमानदारी को लेकर कम चितित नजर आ रहा है और बाहरी लोगों को समिति का हिस्सा बनाए जाने से अधिक चितित है।
एकल पीठ के सात अगस्त को जीआरसी के पुनर्गठन का आदेश दिया था। डीयू की याचिका पर पीठ ने कहा कि यदि डीयू इतना साफ-सुथरा है, तो आप इतना खतरा क्यों महसूस कर रहा है? समिति केवल छात्रों की शिकायतों पर गौर करेगी। वहीं, डीयू ने कहा कि जीआरसी का पुनर्गठन उसकी प्रतिष्ठा की खराब स्थिति को दर्शाता है। डीयू ने अनुरोध किया कि उसे अपने कार्यों को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के काम करने की अनुमति दे।
डीयू ने कहा कि पहले की चार सदस्यों की समिति को बरकरार रखा जाए और इसकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति कर सकते हैं। हालांकि, पीठ ने डीयू के सुझाव को ठुकरा दिया। पीठ ने सुझाव दिया कि बाहर किए गए सदस्यों में से एक को पुनर्गठित जीआरसी का हिस्सा बनाया जा सकता है और सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति इसकी अध्यक्षता करेंगे। इसे डीयू ने स्वीकार कर लिया। पीठ ने प्रोफेसर एससी राय को जीआरसी का हिस्सा बनाया और निर्देश दिया कि यह समिति शुक्रवार से काम करेगी।
दिल्ली हाई कोर्ट ने सात अगस्त को ऑनलाइन ओबीई के आयोजन को मंजूरी देते हुए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी के नेतृत्व में जीआरसी का पुनर्गठन किया था। पीठ ने ओबीई जारी रहने तक पैनल के कार्य करने एवं छात्रों की शिकायतों को पांच दिनों के भीतर हल करने का निर्देश दिया था।