मैक्स अस्पताल के डॉक्टरों को डीएमसी की क्लीनचिट
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल में नवजात को मृत घोषित करने के मामले में द
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल में नवजात को मृत घोषित करने के मामले में दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) ने इलाज में डॉक्टरों की लापरवाही मानने से इन्कार किया है। जांच के बाद डीएमसी ने अस्पताल के डॉक्टरों को क्लीन चिट दी है। डीएमसी ने आदेश में कहा है कि गर्भावस्था के 24वें सप्ताह तक के प्रीमैच्योर नवजात के जीवन रक्षक इलाज का दिशानिर्देश नहीं है। इसलिए केंद्र व दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय (डीजीएचएस) को आदेश की कॉपी भेजकर ऐसे बच्चों के इलाज के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की सिफारिश की गई है। ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न होने पाए।
उल्लेखनीय है कि गत नवंबर में मैक्स अस्पताल में 22 सप्ताह के प्रीमैच्योर जुड़वा बच्चों को मृत बताकर उनके शव पॉलीथिन में पैक करके परिजनों को सौंप दिए गए। बाद में परिजनों को पता चला कि एक बच्चा जीवित है। उसे पीतमपुरा के नर्सिग होम के आइसीयू में भर्ती कराया गया था। जहां करीब एक सप्ताह बाद उसकी मौत हो गई थी। परिजनों ने डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही का आरोप लगाया। इसके मद्देनजर अस्पताल प्रशासन ने दो डॉक्टरों को निलंबित कर दिया था। वहीं, डीजीएचएस ने अस्पताल का लाइसेंस रद कर दिया था, जिसे अस्पताल ने वित्त आयोग में चुनौती दी। आयोग ने अस्तपाल का लाइसेंस रद करने के आदेश पर रोक लगा दी। हालांकि, मामला वित्त आयोग की अदालत में विचाराधीन है।
उधर, डीएमसी की पांच सदस्यीय (चार डॉक्टर व एक कानूनविद) अनुशासनात्मक समिति ने जांच शुरू की। जांच में अस्पताल प्रबंधन, इलाज में शामिल डॉक्टरों, नर्सिग कर्मचारियों तथा परिजनों को नोटिस जारी किया गया। डॉक्टरों का कहना था कि गर्भावस्था के 22वें सप्ताह में प्रीमैच्योर नवजात को बचा पाना बेहद मुश्किल होता है।
डीएमसी ने आदेश में कहा कि नवजात के इलाज का डॉक्टरों का फैसला मौजूदा दिशानिर्देश के अनुसार था। समिति ने 19 मार्च को डीएमसी को रिपोर्ट सौंपी, जिसे 19 अप्रैल को डीएमसी की बैठक में पेश किया गया। इसके आधार पर डीएमसी ने डॉक्टरों को क्लीन चिट दी। बॉक्स
नवजात को मृत घोषित करने की प्रक्रिया में खामी
डीएमसी ने फैसले में कहा है कि नवजात को मृत घोषित करने के लिए डॉक्टर का लिखित निर्देश तक नहीं मिला। मगर दस्तावेजों के अभाव में डॉक्टरों को क्लीन चिट दे दी गई। रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. विशाल गुप्ता ने बच्चे की धड़कन की जांच की। धड़कन सुनाई नहीं देने पर इसकी सूचना नर्स को दी और डॉ. एपी मेहता को उसके स्वास्थ्य की जानकारी देने गए। डॉ. मेहता ने डीएमसी के समक्ष कहा कि उन्होंने एक घंटे तक बच्चे की निगरानी करने को कहा था। एक घंटे बाद नर्स प्रियंका ने बच्चे को मृत समझकर उसे परिजनों को सौंप दिया। नर्स ने बयान में कहा कि डॉ. विशाल ने बच्चे का शव सौंपने की प्रकिया पूरी करने को कहा था। जबकि डॉ. विशाल ने लिखित में इससे इन्कार किया। वहीं, अस्पताल ने बच्चे का मृत्यु प्रमाण पत्र भी जारी नहीं किया था। इसपर अस्पताल ने कहा था कि परिजनों ने बच्चे को आइसीयू में इलाज के लिए स्वीकृति नहीं दी थी। बकौल डीएमसी, ऐसे बच्चों के इलाज की प्रक्रिया का स्पष्ट दिशानिर्देश का अभाव है। इसलिए प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई।