अधिवक्ता से वीडियो कान्फ्रेंस कर सकते हैं कैदी
जेल प्रशासन ने मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट में कहा कि दिल्ली की जेलों में बंद कैदी निजी अधिवक्ता व कानूनी सहायता वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के माध्यम से सप्ताह में दो बार 30 मिनट के लिए कानूनी मुलाकात कर सकेंगे। मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ के समक्ष जेल प्रशासन ने बताया कि पहले सिर्फ कानूनी सहायता की सुविधा ही उपलब्ध थी लेकिन छह जुलाई को जारी आदेश के तहत अब कैदी निजी अधिवक्ता से भी मदद ले सकेंगे।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : दिल्ली की जेलों में बंद कैदी सप्ताह में दो बार वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपने अधिवक्ता से बात कर सकते हैं। इसके लिए हर बार उन्हें 30 मिनट का समय मिलेगा। यह जानकारी मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ के समक्ष जेल प्रशासन ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान दी है। इसके साथ ही यह भी बताया कि पूर्व में कैदियों को सिर्फ कानूनी सहायता की सुविधा ही उपलब्ध थी, लेकिन छह जुलाई को जारी आदेश के तहत अब कैदी निजी अधिवक्ता से भी मदद ले सकेंगे। इस जानकारी को रिकॉर्ड पर लेते हुए पीठ ने कहा कि अब इस याचिका पर कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।
अधिवक्ता सार्थक मग्गोन ने याचिका दायर की थी। इसमें 25 मार्च के उस आदेश को रद करने की मांग की थी, जिसमें कैदियों से अधिवक्ता के मिलने पर रोक लगा दी गई थी। इसके साथ ही याचिका में कहा गया था कि यदि रोक लगाई गई है, तो दूरसंचार के माध्यम से कैदियों की अधिवक्ता से मुलाकात कराई जानी चाहिए। याचिका पर सुनवाई के दौरान जेल प्रशासन की तरफ से कहा गया कि अधिवक्ता ई-मेल से आवेदन भेजेंगे। इस पर जेल अधीक्षक वकालतनामा की सत्यता व अन्य पक्षों को ध्यान में रखकर निर्णय लेंगे और बातचीत का समय निर्धारित करेंगे। बातचीत के दौरान कुछ दूरी पर एक अधिकारी भी मौजूद रहेगा। दूरी इतनी होगी कि बात सुनाई न दे। यदि कोई कैदी वीडियो कान्फ्रेंसिंग का दुरुपयोग करते पाया जाता है तो उसकी यह सुविधा निरस्त कर दी जाएगी।
हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील ने निजता का हवाला देते हुए अधिकारी की मौजूदगी पर आपत्ति जताई। साथ ही कहा कि आदेश में समयसीमा की स्पष्टता नहीं है, जबकि जरूरत पड़ने पर कैदी को वकील से 48 घंटे के अंदर विडियो कान्फ्रेंसिग करानी चाहिए।