कानून एवं व्यवस्था व जांच के लिए अलग होगी टीम
राकेश कुमार सिंह, नई दिल्ली दिल्ली पुलिस में कानून एवं व्यवस्था व जांच टीम अलग-अलग करने की कव
राकेश कुमार सिंह, नई दिल्ली
दिल्ली पुलिस में कानून एवं व्यवस्था व जांच टीम अलग-अलग करने की कवायद शुरू हो गई है। बीते 13 सितंबर को इस मसले पर उपराज्यपाल के साथ हुई बैठक के बाद शनिवार को पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक ने सभी 14 जिलों के डीसीपी को अपने यहां कानून एवं व्यवस्था संभालने व जांच के लिए अलग टीम बनाने को कहा है।
पायलट प्रोजेक्ट के तहत फिलहाल हर जिले के डीसीपी को दो थानों का चयन कर वहां कानून एवं व्यवस्था संभालने व जांच के लिए अलग टीम बनाने को कहा गया है। संभवत: इस महीने के अंत तक सभी जिलों के दो थानों में ऐसी व्यवस्था लागू हो जाएगी। इसके बाद धीरे-धीरे दिल्ली के सभी थानों में यह व्यवस्था लागू की जाएगी। ऐसी व्यवस्था अभी देश के किसी भी राज्य की पुलिस में नहीं है। वरिष्ठ आइपीएस अधिकारियों का मानना है कि इससे केस की जांच में काफी प्रभाव पड़ेगा। दरअसल, 2005 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर देश की पुलिस व कानून व्यवस्था से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए थे। उनके कई सुझाव शीर्ष अदालत को अच्छे लगे थे। यही वजह थी कि शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार, गृहमंत्रालय व राज्यों को कई निर्देश जारी किए थे। उन्हीं में से एक निर्देश कानून एवं व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने व जांच के लिए अलग टीम बनाने का था, जो अब करीब 14 साल बाद अमल में लाया जा रहा है। वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि एक जांच अधिकारी के पास हमेशा 70-90 केस होते हैं। इतने केसों की बेहतर जांच करने के अलावा उनपर थाने के इलाके में कानून एवं व्यवस्था संभालने की भी जिम्मेदारी होती है। अधिक से अधिक 90 दिनों में उन्हें आरोप पत्र दायर करना पड़ता है। ऐसे में जांच अधिकारी अधिकतर केसों में जैसे-तैसे तफ्तीश कर तय समय पर आरोप पत्र दायर कर देते हैं। कई बार कमजोर जांच व पुख्ता सुबूत के अभाव में अपराधी सजा पाने से बच जाते हैं। नई व्यवस्था का फायदा यह होगा कि जांच अधिकारी का इलाके की कानून एवं व्यवस्था से कोई मतलब नहीं होगा। उसका काम केवल बेहतर जांच व पुख्ता सुबूत जुटाना होगा। इससे लंबित केसों की जांच में तेजी आएगी और अपराधियों को सख्त सजा दिलाने में भी मदद मिलेगी। पुलिस आयुक्त का मानना है कि वर्तमान स्थिति में काम का बेहद दबाव होने के कारण जांच अधिकारी सभी केसों तो दूर, चुनिंदा केसों में भी अधिक समय देकर जांच नहीं कर पाते हैं और सुबूत नहीं जुटा पाते हैं। कई केसों में मौके पर तुरंत जाकर जांच करनी होती है। अधिकारियों का मानना है कि दोनों टीमों को अलग करने पर अधिक पुलिसकर्मियों की जरूरत होगी। इसके लिए कोशिश जारी है। बता दें कि पहले दिल्ली के थानों में केवल एक थानाध्यक्ष होते थे। आबादी व पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ने पर दो इंस्पेक्टरों की तैनाती की जाने लगी। वर्ष 2009 में तत्कालीन पुलिस आयुक्त वाईएस डडवाल ने तीन इंस्पेक्टरों की तैनाती कर दी और तीसरे इंस्पेक्टर को इंस्पेक्टर इंवेस्टिगेशन नाम दिया गया। इसका मकसद यह था कि उनके नेतृत्व में केस की तफ्तीश बेहतर हो सके, लेकिन अभी स्थिति यह है कि तीनों इंस्पेक्टर कानून एवं व्यवस्था संभालने के साथ-साथ केस की जांच में भी लगे रहते हैं।
सुधार की ओर संपादकीय