पराली नहीं, दिल्ली-NCR के प्रदूषण की मुख्य वजह आज भी कोयला, गोबर और लकड़ी; एक स्टडी में हुआ खुलासा
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण पराली नहीं, बल्कि कोयला और लकड़ी का जलना है। एक अध्ययन के अनुसार, 80% प्रदूषण धूल और धुएं के कारण होता है ...और पढ़ें
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दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, समूचे उत्तर भारत में वायु प्रदूषण की वजह लकड़ी एवं गोबर के उपले हैं।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। दिल्ली एनसीआर ही नहीं, समूचे उत्तर भारत में वायु प्रदूषण बढ़ने की वजह पराली नहीं, औद्योगिक इकाइयों में ईंधन के तौर पर कोयला एवं गांव-देहात सहित निम्न वर्ग के चूल्हे में जल रहे लकड़ी एवं गोबर के उपले हैं। वैसे भी पराली सिर्फ एक से डेढ़ माह ही जलती है जबकि ईंधन के रूप में आज भी कोयला, गोबर और लकड़ी साल भर जलते हैं।
प्रदूषण की मुख्य वजह के रूप में सिर्फ पराली और किसानाें को दोषी ठहराने पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने तो आपत्ति जताई ही है, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और सीपीसीबी के विशेषज्ञों ने भी इससे इन्कार नहीं किया है।
पर्यावरण थिंक टैंक आइफारेस्ट (इंटरनेशनल फोरम फॉर एन्वॉयरमेंट एंड सस्टेनेबिलेटी) के एक अध्ययन में सामने आया है कि देश में 80 प्रतिशत प्रदूषण की वजह धूल और धुंआ हैं। लेकिन धूल खत्म करने की दिशा में जहां अस्थायी उपाय किए जाते रहे हैं वहीं धुआं रोकने के नाम पर पराली का नाम उछाला जाने लगता है।
यह अध्ययन कहता है कि वाहनों का धुआं भी उतनी बड़ी वजह नहीं, जितना कि बायोमास का जलना है। वाहनों का धुआं रोकने के लिए तो फिर भी कई नई- नई तकनीकें इस्तेमाल की जा रही हैं लेकिन कोयला-गोबर और लकड़ी का धुआं रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया जा रहा। हालांकि इस दिशा में उज्जवला योजना शुरू की गई है लेकिन उसमें भी बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
इस अध्ययन के मुताबिक दिल्ली में दिखने वाले स्माग की चादर पूरे इंडो-गैंगेटिक प्लेन्स (आइजीपी) में फैली हुई है। भिवाड़ी, दरभंगा और मुरादाबाद जैसे छोटे शहरों में तो अक्सर दिल्ली से भी अधिक प्रदूषण दर्ज किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्र भी उतने ही प्रभावित हैं।
प्रदूषण का स्तर राष्ट्रीय मानकों से पांच से दस गुना और विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वास्थ्य-आधारित दिशानिर्देशों से 20 से 40 गुना अधिक है। इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब हर शहर, राज्य, अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र मिलकर उत्सर्जन में कमी लाने के लिए सामूहिक प्रयास करें।
भारत और दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के मुख्य स्रोत
भारत हर वर्ष लगभग 5.2 मिलियन टन (एमटी) प्रत्यक्ष पीएम 2.5 उत्सर्जित करता है (प्राकृतिक और मानव-जनित धूल को छोड़कर)। इसमें से:
- 48 प्रतिशत बायोमास (जैसे ईंधन लकड़ी और उपले) से आता है, जिसका उपयोग खाना पकाने और घरों को गर्म रखने के लिए किया जाता है।
- 6.5 प्रतिशत कृषि अवशेषों (पराली) के खुले में जलाने से आता है।
- यानी कुल मिलाकर बायोमास बर्निंग कुल पीएम 2.5 उत्सर्जन का 55 प्रतिशत है।
- 37 प्रतिशत उद्योगों और पावर प्लांट्स से आता है।
- 7 प्रतिशत परिवहन क्षेत्र से आता है।
उज्ज्वला योजना का नया संस्करण लाया जाए
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाइ) ने प्रदूषण कम करने में ग्रेप एवं आड-इवेन आदि की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी काम किया है। इसलिए गरीबों को एलपीजी, बायोगैस या बिजली पर स्थानांतरित करने के लिए इस योजना का एक नया संस्करण लाया जाए। गरीबों व छोटे उद्योगों को स्वच्छ ईंधन पर स्थानांतरित करने में पूरी मदद की जाए। पीएम उज्जवला योजना का नया चरण लांच किया जाए चाहिए क्योंकि दिल्ली-एनसीआर में स्वच्छ कुकिंग ईंधन उपलब्ध कराने से पीएम 2.5 में 25 प्रतिशत तक की कमी संभव है।
दिल्ली-एनसीआर के लिए आई फॉरेस्ट की प्रमुख नीतिगत
- गांव-देहात और शहरों से बाहर आज भी सर्दियों में गर्मी के लिए उपले, कोयला और लकड़ी को जलाया जाता है। इससे दिसंबर-जनवरी में प्रदूषण बढ़ता है। इस पर रोक लगाई जाए।
- चीन की सबसे प्रभावी नीतियों में एक क्लीन हीटिंग फ्यूल पालिसी थी। अल्पकाल में दिल्ली भी यह कर सकती है। बायोमास की जगह हीटर के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए।
- लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए के लिए इलेक्ट्रिक बायलर और भट्टी को बढ़ावा दिया जाए।
- बड़े उद्योगों पर कड़े मानदंड लागू हों। पुराने थर्मल पावर प्लांट बंद किए जाएं। इन्हें लेकर 2015 के उत्सर्जन मानक लागू किए जाएं।
- दो-पहिया और तीन-पहिया वाहनों का तेजी से विद्युतीकरण हो।सभी नई बसें इलेक्ट्रिक लाई जाएं।
- 2030 तक दो पहिया और तीन पहिया के सौ प्रतिशत बिक्री केवल इलेक्ट्रिक हो।
- 30 से 50 प्रतिशत वाहन बिक्री का विद्युतीकरण लक्ष्य तय हो और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाए।
- दिल्ली के चारों ओर ग्रीन बेल्ट विकसित की जाए। शहर में सड़कों के किनारे भी हरित क्षेत्र बढ़ाया जाए।
- यातायात जाम को कम किया जा जाए। कचरा प्रबंधन की कमी को भी दूर किया जा सके।
दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, समूचे भारत में प्रदूषण की प्रमुख वजह धूल और धुआं है। 80 प्रतिशत प्रदूषण इसी से होता है। लेकिन इसकी रोकथाम को लेकर गंभीरता कम ही नजर आती है। पराली पर बहुत फोकस न करके हमें धूल और धुआं थाामने का प्रयास करना चाहिए। समस्या का स्थायी और दीर्घकालिक उपाय भी सिर्फ यही है। - चंद्रभूषण, अध्यक्ष एवं सीईओ, आइ फॉरेस्ट
बायोमास के रूप में इन सभी का उपयोग खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाता है। ये आसानी से उपलब्ध हैं, गैस व बिजली की तुलना में सस्ते और किफायती हैं। ईंट भट्टे कोयले का उपयोग करते हैं। होटल कोयले और लकड़ी का उपयोग करते हैं। इससे प्रदूषण तो फैलता ही है। निस्संदेह सख्ती की आवश्यकता है। - डॉ. दीपांकर साहा, पूर्व अपर निदेशक, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी)
वायु प्रदूषण में बड़ी हिस्सेदारी वाहन, उद्योग या दूसरी अन्य चीजों के जलने की है, लेकिन हम जलने से होने वाले प्रदूषण को सिर्फ पंजाब और हरियाणा में जलने वाली पराली से जोड़कर देखते है। ऐसा नहीं है। अकेले दिल्ली-एनसीआर को देखेंगे तो दो-तीन चीजें धड़ल्ले से जलती है, जिन पर कोई नियंत्रण नहीं है। इनमें लकड़ी, उद्योग से निकलने वाले कचरे का जलना और लैंडफिल साइट में लगने वाली आग है। लेकिन हम इन्हें भी लगातार नकारते रहते है। हम ध्यान से देखें तो जितना प्रदूषण खेतों में जलने वाली पराली से हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा प्रदूषण शहर के भीतर जलाई जा रही इन चीजों से हो रहा है। दिल्ली के बाहर जितने उद्योग है, उन्हें न तो एमसीडी क्लेम करती है न इंडस्ट्री वाले। उनमें निकलने वाले रबर, पेपर वेस्ट का क्या होता है। यह भी कोई देखने वाला नहीं है। बैकयार्ड में भी गोबर के उपले सहित काफी चीजों में आग लगाई जा रही है, जिसे हम नियंत्रण नहीं कर पा रहे है। - सीके मिश्रा, पूर्व सचिव, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार

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