दिल्लीः शिवाजी कालेज परिसर में 300 प्रजाति के पौधे व 427 प्रजाति के पेड़, आडिट रिपोर्ट में सामने आई ये चीजें
प्राचार्य प्रो. शिव कुमार सहदेव ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण व जैव-विविधता संरक्षण विषय पर विद्यार्थियों के बीच हर वर्ष जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। कालेज बीते छह वर्ष से प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में प्रतिबद्ध है।
नई दिल्ली [मनीषा गर्ग]। समग्र पर्यावरणीय स्थिरता में सुधार के लिए राजौरी गार्डन स्थित शिवाजी कालेज का कुछ महीने पहले मुंबई की स्टेप प्राइवेट लिमिटेड कंपनी द्वारा ग्रीन आडिट किया गया था। कक्षा, लैब, कार्यालय में सूरज की रोशनी व वेंटिलेशन, जल क्षमता, अपशिष्ट जलप्रबंधन, कालेज परिसर में हवा की गुणवत्ता, ऊर्जा प्रबंधन, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, भवन की सार्वभौमिक पहुंच, कुशल संचालन और रखरखाव, परिवहन व हरी पट्टी व हरित पहल जैसे मुख्य बिंदुओं को मद्देनजर रखते हुए यह ग्रीन आडिट हुआ है। हाल ही में इस आडिट रिपोर्ट के नतीजे आए हैं। कालेज प्रशासन की माने तो अब हर दो वर्ष में यह ग्रीन आडिट कराया जाएगा।
करीब 55 वर्ष पुराने हैं पेड़
कालेज परिसर के 1.83 एकड़ क्षेत्रफल में हरित क्षेत्र फैला हुआ है, जिसमें 300 प्रजाति के पौधे, 427 प्रजाति के पेड़ व झाड़ियां और 1500 पौधे गमलों में लगे हुए है। पीपल, गुलर, पाकड़, अशोक, जामुन, आम, कदंब, बिल्व, गुलमोहर, चंपा, कनक चंपा, सेमल व नीम आदि बड़े पेड़ है। इनमें कुछ पेड़ 50 से 55 वर्ष पुराने है। हरित क्षेत्र में हर्बल गार्डन भी शामिल है। फल युक्त पेड़ों के चलते तितलियां, ततैया, मधुमक्खियां, चींटियां और भृंग काफी आकर्षित हुए हैं और इससे कालेज परिसर के अंतर्गत जैव-विविधता में वृद्धि दर्ज की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक कालेज परिसर में छह प्रजाति की तितलियां व 19 विभिन्न प्रजातियों के पक्षी देखे गए हैं। अच्छी बात यह है कि हरित क्षेत्र के चलते कालेज परिसर में ध्वनि प्रदूषण कम है।
बोरवेल का नहीं होता इस्तेमाल
कालेज में पानी का मुख्य स्त्रोत दिल्ली जल बोर्ड है। हालांकि कालेज में बोरवेल है, पर कालेज की जल प्रबंधन टीम के मुताबिक फिलहाल वह प्रयोग में नहीं है। रिपोर्ट की मानें तो कालेज में नियमित रूप से 51 किलोलीटर पानी का इस्तेमाल होता है, जिसमें से 26 किलोलीटर पानी हरित क्षेत्र में इस्तेमाल किया जाता है। कालेज परिसर में पानी का एक दूसरा स्त्रोत वर्षा जल संचयन गड्ढे है। जहां एकत्रित पानी को भी हरित क्षेत्र में सिंचाई के लिए प्रयोग में लाया जाता है। कालेज की जल प्रबंधन टीम परिसर के अंतर्गत पानी की बर्बादी न हो इसके लिए प्रयासरत है।इसके अलावा कालेज परिसर में 130 किलोलीटर प्रतिदिन की क्षमता युक्त सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का कार्य प्रगति पर है।
हवा, बिजली, अपशिष्ट प्रबंधन
वर्ष 2016 से कालेज में 75 किलोवाट प्रति घंटा क्षमता युक्त फोटोवोल्टिक प्रणाली के सोलर पैनल लगे हुए है। जिससे न सिर्फ कालेज के बिजली बिलों में कमी आई है, बल्कि सोलर पैनल से उत्पन्न करीब एक हजार यूनिट बिजली कालेज हर माह देश के उत्तरी ग्रिड को प्रदान करता है।
बता दें कालेज में 100 किलोवाट एम्पीयर क्षमता का डीजल जनरेटर है, पर उसका प्रयोग आपातकालीन स्थिति में ही किया जाता है। कालेज में नियमित रूप से 25 से 50 किलोग्राम जैविक अपशिष्ट उत्पन्न होता है। कालेज में वर्मीकम्पोस्ट यूनिट है, जहां हरित अपशिष्ट काे निस्तारित किया जाता है। कैंटीन से निकलने वाले अपशिष्ट के निस्तारण के लिए कालेज प्रशासन 25 से 30 किलोग्राम प्रतिदिन की क्षमता युक्त कंपोस्टिंग यूनिट लगाने की दिशा में प्रयास कर रहा है। कागज जैसे ठोस अपशिष्ट का कम से कम प्रयोग हो इसके लिए परिसर में डिजिटलाइजेशन पर जोर दिया जा रहा है। उधर, पुराने कागजों को रि-साइकिल कर उनसे सजावट का सामान तैयार किया जाता है। सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग कालेज परिसर में निषेध है।
प्राचार्य प्रो. शिव कुमार सहदेव ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण व जैव-विविधता संरक्षण विषय पर विद्यार्थियों के बीच हर वर्ष जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। कालेज बीते छह वर्ष से प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में प्रतिबद्ध है। कालेज के इको क्लब को पारिस्थितिक सरोकारों पर अनुसंधान और नवीन गतिविधियां व मुद्दों पर उत्कृष्ट शोध को बढ़ावा देने के लिए ग्रीन ट्राफी से भी सम्मानित किया गया जा चुका है।