जवान की बाहर निकली आंत को डॉक्टरों ने शरीर के भीतर डाला
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : नक्सली हमले में घायल होने के बाद चार साल तक समुचित इलाज के अभाव में आंत का
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : नक्सली हमले में घायल होने के बाद चार साल तक समुचित इलाज के अभाव में आंत का एक हिस्सा पेट के बाहर लेकर भटकने को मजबूर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवान मनोज तोमर को आखिरकार असहनीय पीड़ा से राहत मिल गई। शुक्रवार को एम्स ट्रॉमा सेंटर में डॉक्टरों ने सर्जरी कर उनकी बाहर निकली आंत को वापस शरीर में यथास्थान लगा दिया। एम्स ट्रॉमा सेंटर प्रशासन के अनुसार उनके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है।
एम्स के डॉक्टरों ने उनकी सर्जरी को आसान प्रक्रिया बताया है। डॉक्टरों का कहना है कि उनकी सर्जरी जटिल नहीं थी, फिर भी हैरानी की बात है कि वह वर्ष 2014 में नक्सली हमले में सात गोलियां लगने के बाद आंत का एक हिस्सा पॉलीथिन में लेकर घूमने को मजबूर थे। हालांकि अब इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। डॉक्टरों को उम्मीद है कि वह सामान्य जीवन व्यतीत कर सकेंगे।
उल्लेखनीय है कि दैनिक जागरण ने 'पॉलीथिन में आंत रख भटक रहा सात गोलियां झेलने वाला जवान' शीर्षक से खबर प्रकाशित कर मनोज तोमर की व्यथा को देश के सामने रखा था। इसके बाद मध्य प्रदेश सरकार ने 10 लाख रुपये की सहायता राशि की घोषणा की। साथ ही सीआरपीएफ अधिकारियों की देखरेख में उन्हें इलाज के लिए मध्य प्रदेश से एसी एंबुलेंस में बुधवार को दिल्ली लाकर एम्स ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया था। बृहस्पतिवार को उनकी सर्जरी की जानी थी, लेकिन कुछ कारणों से सर्जरी टाल दी गई थी। इसके बाद शुक्रवार को करीब ढाई घंटे उनकी सर्जरी चली। ट्रॉमा सर्जरी के डॉक्टरों ने उनकी सर्जरी की।
डॉक्टरों का कहना है कि उनकी आंत का बाहर निकला हुआ हिस्सा बिल्कुल ठीक था। पेट खोलकर उसे अंदर अपनी जगह पर लगा दिया गया है। हालांकि, पहले वाली सर्जरी भी ठीक थी। मल निकासी के लिए कोलोस्टोमी सर्जरी की गई थी। इस सर्जरी में पेट के एक हिस्से में छेद कर आंत का थोड़ा हिस्सा बाहर निकाल दिया जाता है और कोलोस्टोमी बैग लगा दिया जाता है, जिसे नियमित रूप से बदलने की जरूरत पड़ती है। ऐसा नहीं करने पर संक्रमण होने का खतरा रहता है। वैसे, जवान की यह कोलोस्टोमी सर्जरी नहीं की जानी चाहिए थी।