50 फीसद मामलों में परिजन कर लेते हैं समझौता
बाल शोषण अब बस.. न्याय में रोड़ा - जांच अधिकारी का कहना, आरोपित के पीड़ित का रि
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : बाल यौन शोषण के 50 फीसद मामले न्याय की दहलीज तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। अक्सर ऐसे मामलों में परिवार का ही कोई सदस्य या रिश्तेदार शामिल होता है। ऐसे में करीब 50 फीसद मामलों में पीड़िता को लोक लाज और संबंधों की दुहाई देकर चुप करा दिया जाता है और कोर्ट के बाहर ही समझौता हो जाता है। यह कहना है जांच अधिकारी का।
बाल शोषण के मामले में पीड़ित को न्याय दिलाने की प्रक्रिया में यह स्याह पक्ष है। इसके कारण मासूम जिंदगीभर आरोपित को अपने सामने खुला घूमता देखता है और डरा-डरा रहता है। परिवार द्वारा समझौता कर लेने से पुलिस जांच अधिकारियों को भी निराशा हाथ लगती है। वह ठगे महसूस करते हैं। जांच अधिकारी के मुताबिक, यह काफी निराशाजनक स्थिति होती है कि आप मासूम को न्याय दिलाने के लिए दिनरात एक किए हुए हैं। जांच की कड़ियां जोड़ रहे हैं और तभी कह दिया जाता है कि मामला बंद हो गया है, क्योंकि परिवार में आपसी समझौता हो गया है।
बाल यौन शोषण के अधिकतर मामलों में कोई नजदीकी रिश्तेदार, पड़ोसी या जानने वाला शामिल होता है। पुलिस जांच अधिकारी को पहली दिक्कत काउंसलर मिलने में आती है, क्योंकि काउंसलरों की संख्या कम है और वह दूर से आते हैं। काउंसलर के बिना बच्चा बयान दर्ज कराने में सहज नहीं महसूस करता है। ऐसे में काउंसलर के लिए लंबा इंतजार करना होता है। ऐसे में बयान दर्ज करने की प्रक्रिया कई दिनों की हो जाती है।
मामला दर्ज होने के साथ पीड़ित के माता-पिता पर रिश्तेदारों और समाज द्वारा समझौते के लिए दबाव बनाया जाने लगता है। खून के रिश्ते के शामिल होने पर मामला ज्यादा पेचीदा हो जाता है। जांच अधिकारी का कहना है कि औसतन 50 फीसद मामले न्याय मिलने की प्रक्रिया पूरी करने से पहले ही समझौते की बलि चढ़ जाते हैं। यह भी देखा गया है कि समझौते के बाद आरोपित बच्चे को नुकसान पहुंचाने का भी प्रयास होता है।