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जानिये- किसने कहा था 'पाकिस्तान में भी चुनाव लड़ते तो जीत जाते अटल'

विजय कुमार मल्होत्रा बताते हैं कि समाचार पत्रों के माध्यम से अगर जनता को अटल जी की सभा की जानकारी मिल जाती थी तो लोग अपना कामकाज छोड़कर सभा में आ जाते थे।

By Edited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 12:32 AM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 02:53 PM (IST)
जानिये- किसने कहा था 'पाकिस्तान में भी चुनाव लड़ते तो जीत जाते अटल'
जानिये- किसने कहा था 'पाकिस्तान में भी चुनाव लड़ते तो जीत जाते अटल'

नई दिल्ली (निहाल सिंह)। अटल जी इतने लोक प्रिय नेता थे कि पड़ोसी देश के लोग और अधिकारी भी उन्हें पसंद करते थे। दिल्ली के भाजपा नेता विजय कुमार मल्होत्रा बताते हैं कि आपातकाल के बाद बनी मोरारजी देसाई की सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे। इसलिए वह पाकिस्तान में भी बहुत लोकप्रिय थे। एक दिन पाकिस्तान के तत्कालीन उच्चायुक्त अब्दुल सत्तार उनके घर पहुंचे। सत्तार ने अटल जी से कहा कि आप तो पाकिस्तान में भी इतने लोकप्रिय हैं कि अगर वहां से चुनाव लड़ें तो दूसरों की जमानत जब्त हो जाएगी। यही बात पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने भी एक बार कही थी।

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इतना ही नहीं, साल 1999 में सरकार बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी दो दिवसीय (19-20 फरवरी) दौरे पर पाकिस्तान गए थे। इस दौरान उन्होंने दिल्ली-लाहौर बस सेवा शुरू करते हुए बस से लाहौर यात्रा की थी। इस सेवा का शुभारंभ करते हुए पहले यात्री के तौर पर वाजपेयी पाकिस्तान पहुंचे थे। इस यात्रा के दौरान ही नवाज शरीफ ने कहा था कि वाजपेयी पाकिस्तान से भी चुनाव जीत सकते हैं। इस बात का जिक्र वरिष्ठ पत्रकार किंगशुक नाग की पुस्तक अटल बिहारी वाजपेयी: ए मैन फॉर ऑल सीजन में किया गया है।

बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी के साथ 22 लोगों का दल भी दिल्ली-लाहौर बस यात्रा में गया था। इस यात्रा में उस वक्त के दिग्गज फिल्म अभिनेता देव आनंद सहित लेखक जावेद अख्तर भी गए थे। जिस बस से अटल जी लाहौर गए थे, बाद में उसे दिल्ली-लाहौर के बीच चलाया गया।

कम संसाधनों में कैसे किया जाता है काम, वाजपेयी से सीखा
विजय कुमार मल्होत्रा बताते हैं कि कम संसाधनों में काम कैसे होता है, यह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से सीखा जा सकता है। बात उन दिनों की है जब वर्ष 1951 में दिल्ली में जनसंघ की स्थापना हुई थी। अजमेरी गेट में मकान संख्या 5239 में पहले और दूसरे तल पर चार कमरों में कार्यालय बनाया गया। प्रवास के समय कार्यालय में दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी बाजपेयी रहते थे।

संसाधनों का अभाव था तो इन्हीं चार कमरों में से एक में सोना होता था और दिनभर कार्यकर्ताओं से मिलना और आगे की रणनीति पर चर्चा होती थी। जनसंघ के संस्थापकों में शामिल रहे विजय कुमार मल्होत्रा कहते हैं कि अटल जी बड़े सहज और सरल स्वभाव के थे। वह जब भी दिल्ली आते थे तो इसी कार्यालय में छोटे से कमरे में रहते थे।

जनसंघ का दायरा बढ़ने पर उन्होंने जगह की कमी से कई बैठकें कार्यालय की छत पर लीं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), भारतीय जनसंघ की उत्तराधिकारी है। भारतीय जनसंघ का 1977 में जनता पार्टी में विलय हो गया था। आतंरिक मतभेदों के फलस्वरूप 1979 में जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद 1980 में भाजपा का उदय एक स्वतंत्र दल के रूप में हुआ।

नेताओं का रखते थे ख्याल
उन दिनों कंप्यूटर नहीं था, टाइपराइटर से टाइपिंग होती थी। ऐसे में अटल जी मदद के लिए आने वाले लोगों के लिए खुद ही बीड़ा उठाते थे। विजय कुमार मल्होत्रा एक पत्र का हवाला देकर बताते हैं कि वर्ष 1963 में जब वह दिल्ली नगर निगम के सदस्य थे तो उन्हें अटल जी ने पत्र लिखा था। वह एक महिला का तपेदिक का इलाज दिल्ली में कराना चाहते थे। मल्होत्रा कहते हैं कि उन्हें यह जानकार हैरानी हुई कि अटल जी ने खुद पत्र लिखा है। उन्होंने मेरे भाषण की तारीफ भी की थी।

आज चलता है मजदूर संघ का कार्यालय
अजमेरी गेट में जिन चार कमरों से भारतीय जनसंघ की शुरुआत हुई थी, आज उस कार्यालय में भारतीय मजदूर संघ दिल्ली का कार्यालय चलता है। जिस कमरे में अटल बिहारी वाजपेयी रहा करते थे, उसमें अनिस मिश्रा रहते हैं। वह भारतीय मजदूर संघ दिल्ली के महामंत्री हैं। अनिस कहते हैं कि उन्हें गर्व है कि वह इस कमरे में रह रहे हैं।

जनसभाओं में दौड़े चले आते थे लोग
विजय कुमार मल्होत्रा बताते हैं कि समाचार पत्रों के माध्यम से अगर जनता को अटल जी की सभा की जानकारी मिल जाती थी तो लोग अपना कामकाज छोड़कर सभा में आ जाते थे। यह उनके वक्तव्य का जादू था कि रात 12 बजे तक दिल्ली में सभाएं होती थीं और उसमें हुजूम उमड़ता था। उनकी सभाओं के लिए 12 टोटी, हौजकाजी, टाउन हॉल के सामने, दरीबा कलां आदि जैसे प्रमुख स्थान प्रसिद्ध थे।


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