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जब अपनों ने साथ छोड़ दिया तो लोगों के लिए मसीहा साबित हुए थे एंबुलेंस मैन, जानिए कैसे की थी मदद

एंबुलेंस मैन के नाम से मशहूर चिरंजीव मल्होत्रा। उनकी इस सेवा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने 21 नवंबर को विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में उन्हें प्रतिष्ठित संत ईश्वर सम्मान से सम्मानित किया है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Mon, 29 Nov 2021 01:19 PM (IST)Updated: Mon, 29 Nov 2021 02:41 PM (IST)
जब अपनों ने साथ छोड़ दिया तो लोगों के लिए मसीहा साबित हुए थे एंबुलेंस मैन, जानिए कैसे की थी मदद
समारोह में उन्हें प्रतिष्ठित संत ईश्वर सम्मान से सम्मानित किया है।

नई दिल्ली [रीतिका मिश्रा]। कोरोना काल में जब लोग संक्रमित हुए तो कई लोगों के अपनों ने ही साथ छोड़ दिया। ऐसे में निधन के बाद परिवार के लोगों ने अंतिम संस्कार करना तो दूर, उनके पार्थिव शरीर को हाथ तक नहीं लगाया। राष्ट्रीय राजधानी में ऐसे लोगों के लिए मसीहा साबित हुए हैं 'एंबुलेंस मैन' के नाम से मशहूर चिरंजीव मल्होत्रा। करोलबाग निवासी चिरंजीव ने कोरोना काल में विभिन्न तरीकों से हजारों जरूरतमंद लोगों की सेवा की। उनकी इस सेवा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने 21 नवंबर को विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में उन्हें प्रतिष्ठित संत ईश्वर सम्मान से सम्मानित किया है।

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वे बताते हैं कि अब तक 30 हजार से अधिक शवों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं और अब भी कर रहे हैं। इसमें ज्यादातर ऐसे मामले हैं, जिनके खुद के घर वाले कोरोना से निधन होने के कारण अंतिम संस्कार के लिए हाथ खड़े कर चुके थे। वे कहते हैं कि अगर हर कोई घर बैठ जाएगा तो लोगों की मदद कौन करेगा। इसलिए वे हर जरूरतमंद को मदद पहुंचाने की कोशिश करते हैं।

शवों को श्मशान घाट पहुंचाने का भी किया कार्य

वे अस्पताल में भर्ती मरीजों की मृत्यु की सूचना के बाद उनके स्वजन का इंतजार करते। स्वजन के न आने के बाद वे खुद ही अपनी एंबुलेंस से शवों को श्मशान घाट ले जाते और पूरे रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार कराते हैं।

उनके मुताबिक, इस दौरान कई ऐसे लोगों से भी मुलाकात हुई जो आर्थिक समस्या के चलते अपने स्वजन का अंतिम संस्कार नहीं कर पा रहे थे। चिरंजीव ऐसे लोगों की आर्थिक सहायता के साथ उन्हें अंतिम संस्कार का सारा सामान दिलाते हैं।

एंबुलेंस मैन बनने की कहानी

चिरंजीव बताते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान एक वक्त ऐसा आया जब लोगों को श्मशान घाट जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिल रही थी। इस समस्या से लोगों को निजात दिलाने के लिए उन्होंने खुद की छह एंबुलेंस चलवाई और शवों को श्मशान तक पहुंचाने का कार्य भी किया। इसके साथ ही कई मरीजों को अस्पताल पहुंचाया। उन्होंने बुजुर्गो को टीकाकरण केंद्र पहुंचाकर टीका लगवाने के लिए भी एंबुलेंस चलवाई।

आक्सीजन और दवाइयां भी उपलब्ध कराई

कोरोना के दौरान किसी-किसी के घर में तो पूरा परिवार ही संक्रमित था। ऐसे में उन्होंने इन परिवारों की मदद के लिए निश्शुल्क दवाइयां पहुंचाई और आक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध कराया। इसके साथ ही उन्होंने कोरोना के दौरान सात हजार से अधिक परिवारों को निश्शुल्क राशन वितरण किया और लंगर सेवा भी शुरू की।


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