17 साल बाद धुला आइपीएस पर लगा भ्रष्टाचार का दाग
- सीबीआइ द्वारा दर्ज किए गए भ्रष्टाचार के मामले में तीस हजारी सीबीआइ की विशेष अदालत ने किया ब
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली
वर्तमान में डायरेक्टर जनरल (होमगार्ड) पद पर तैनात आइपीएस जतिंद्र कुमार शर्मा की वर्दी पर लगा भ्रष्टाचार का दाग आखिरकार 17 साल बाद धुल गया। तीस हजारी कोर्ट की सीबीआइ अदालत की विशेष न्यायाधीश सरिता बीरबल ने जतिंद्र कुमार शर्मा को बरी कर दिया। गत 30 अक्टूबर को फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि सीबीआइ यह साबित करने में पूरी तरह असफल रही कि जतिंद्र शर्मा की संपत्ति उनकी आय से अधिक है।
1982 में यूनियन टेरिटरी कैडर से आइपीएस चुने गए जतिंद्र कुमार शर्मा 1984 में दिल्ली पुलिस में शामिल हुए। 31 जनवरी 2000 को मिली खुफिया जानकारी पर सीबीआइ ने जतिंद्र के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया। जिसमें आरोप लगाया कि 1982 से 31 जनवरी 2000 के बीच जतिंद्र ने अपने व परिवार के सदस्यों के नाम पर 40 लाख रुपये की संपत्ति बनाई, जो उनकी आय से अधिक है। सीबीआइ ने 1 फरवरी 2002 को जतिंद्र के घर सर्च अभियान के बाद चार्जशीट दाखिल की थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 9.56 लाख रुपये की संपत्ति बनाई, जबकि अन्य रकम की बचत की। उक्त संपत्ति व रुपये को लेकर जतिंद्र के पास कोई जवाब नहीं था। प्रकरण में अभियोजन पक्ष ने 56 गवाहों से पूछताछ की। 14 जुलाई 2004 को जतिंद्र कोर्ट में पेश हुए, हालांकि उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया था। सुनवाई के दौरान सीबीआइ द्वारा दायर एफआइआर और चार्जशीट में अंतर सामने आया। एफआइआर में सीबीआइ ने आरोप लगाया था कि जतिंद्र के नाम पर एक फार्म हाउस, औद्योगिक प्लॉट, द्वारका में एक प्लॉट व कार है, वहीं चार्जशीट में उन्हें द्वारका में एक प्लॉट होने के अलावा किसी भी संपत्ति के लिए आरोपी नहीं बनाया। जांच में यह भी सामने आया कि द्वारका के प्लॉट के अलावा अन्य सभी संपत्ति जतिंद्र की पत्नी के नाम पर है। वह स्वतंत्र रूप से व्यापार करती थी और उनके नाम पर कंपनी भी थी। सीबीआइ ने पूरे मामले में जतिंद्र की पत्नी को आरोपी भी नहीं बनाया था।