Heat Alert ! बढ़ती तपिश और उमस घटा रही कार्य क्षमता, क्लाईमेट ट्रेंड की एक रिपोर्ट से खुलासा
Heat Alert ! जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में काम करने वाली एजेंसी क्लाईमेट ट्रेंड की रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में 21 फीसद श्रम उत्पादकता इसी वजह से कम हो रही है। हर साल 12 से 66 दिन का कार्य कुछ इसी तरह की गर्मी की भेंट चढ़ जाता है।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। लू भले कम चले या ज्यादा, या फिर न भी चले, लेकिन गर्मियों के मौसम में सान दर साल बढ़ती तपिश और उमस मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव अवश्य डाल रही है। कई तरह के रोगों का कारक बनने के साथ-साथ इसका सीधा असर कार्य क्षमता पर भी बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में काम करने वाली एजेंसी क्लाईमेट ट्रेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर में 21 फीसद श्रम उत्पादकता इसी वजह से कम हो रही है। हर साल 12 से 66 दिन का कार्य कुछ इसी तरह की गर्मी की भेंट चढ़ जाता है। दिल्ली में ऐसे दिनों की संख्या 63 है। रिपोर्ट के मुताबिक गर्मियों में इंसानी शरीर पसीने से खुद को ठंडा करता है लेकिन उमस का स्तर बहुत ज्यादा हो तो पसीना काम नहीं करता। खतरनाक ओवरही¨टग का जोखिम भी पैदा हो जाता है। इसी गर्मी और उमस को नापने का एक पैमाना है वेट बल्ब टेंपरेचर जो इस बात का अनुमान लगाने में भी उपयोगी है कि मौसमी परिस्थितियां इंसानों के लिए सुरक्षित हैं या नहीं। इसे मापने के लिए थर्मोमीटर के बल्ब के चारों तरफ एक गीला कपड़ा लपेट दिया जाता है। यह उस न्यूनतम तापमान का प्रतिनिधित्व करता है जो आप पानी से वाष्पीकरण (जैसे पसीना निकलना) के जरिए कम कर सकते हैं।
तापमान ज्यादा हो तो उमस भी ज्यादा ही होती है और ज्यादा तपिश और उमस से कार्यक्षमता प्रभावित होने लगती है।मौसम विज्ञानियों ने वैसे भी सबसे गर्म महीनों में, जब तापमान 30 से 33 डिग्री सेल्सियस होता है, के दौरान श्रम उत्पादकता की ²ष्टि से भारत को उच्च जोखिम वाले देशों की श्रेणी में रखा है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में इस वक्त भयंकर गर्मी और उमस के कारण घरों के बाहर काम करने के घंटों में 21 फीसद का नुकसान हो रहा है।
देश के ज्यादातर इलाकों में भीषण गर्मी और उमस के जानलेवा संयोजन से हर साल 12 से 66 दिनों तक श्रम उत्पादकता घट रही है। पूर्वी तटीय इलाकों से सटे हाट स्पाट यानी कोलकाता में 124, सुंदरबन में 171, कटक में 178, ब्रह्मापुर में 173, तिरुअनंतपुरम में 113, चेन्नई में 140, मुंबई में 47 दिन और दिल्ली में करीब 63 दिन इसी उमस भरी गर्मी की भेंट चढ़ जाते हैं।
डिग्री सेल्सियस के ऊपर काम करना मुश्किल
उमस भरी गर्मी के बीच करीब 32 डिग्री सेल्सियस पर स्वस्थ और गर्मी में रहने के आदी लोगों के लिए भी काम करना मुश्किल हो जाता है। यहां तक कि सांस, दिल तथा गुर्दे से संबंधित बीमारी से ग्रस्त बुजुर्ग लोगों और कड़ी मेहनत वाली गतिविधियां कर रहे व्यक्तियों पर तो 26 डिग्री सेल्सियस वेट बल्ब टेंपरेचर पर हीट स्ट्रोक का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
मानव शरीर को इस तरह प्रभावित करती है उमस भरी गर्मी
हीट स्ट्रोक से चक्कर आने और जी मिचलाने से लेकर अंगों में सूजन, बेचैनी, बेहोशी और मौत जैसे लक्षण हो सकते हैं।
गर्मी के संपर्क में आने से पांच शारीरिक तंत्र सक्रिय होते हैं
इस्किमिया (कम या अवरुद्ध रक्त प्रवाह), हीट साइटोटोक्सिसिटी (कोशिका मृत्यु), . दाहक प्रतिक्रिया (सूजन), प्रसारित इंट्रावास्कुलर जमावट (असामान्य रक्त के थक्के) औररबडोमायोलिसिस (मांसपेशियों के तंतुओं का टूटना)। ये सभी तंत्र सात महत्वपूर्ण अंगों (मस्तिष्क, हृदय, आंतों, गुर्दे, यकृत, फेफड़े और अग्न्याशय) को प्रभावित करते हैं। इन तंत्रों और अंगों के 27 घातक संयोजन हैं, जिनके बारे में बताया गया है कि वे गर्मी के ही कारण उत्पन्न होते हैं।