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International Women's Day 2021: कठिन राह चुनने वाली महिलाओं ने चुनौतियों की नींव पर खड़ी की सफलता की इमारत

International Womens Day 2021 लोको पायलट समता कुमारी ने मालगाड़ी चलाकर ट्रेन को फर्राटे से दौड़ाने का बचपन का सपना साकार किया है। काजल खारी को जेसीबी चलाने में कोई परहेज नहीं है। देश की महिलाओं द्वारा चुनौतियां चुनने का अभियान जारी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 06 Mar 2021 01:39 PM (IST)Updated: Sat, 06 Mar 2021 01:49 PM (IST)
International Women's Day 2021: कठिन राह चुनने वाली महिलाओं ने चुनौतियों की नींव पर खड़ी की सफलता की इमारत
कठिन राह चुनने वाली ऐसी ही महिलाओं ने चुनौतियों की नींव पर खड़ी की है सफलता की इमारत

नोएडा, यशा माथुर। International Women's Day 2021 मैंने सोचा नहीं था कि जहां मैं खड़ी होऊंगी वहां कोई लड़की नहीं होगी और पुरुषों के बीच अपनी जगह बनानी होगी। मैंने परवाह नहीं की कि लोग क्या कहेंगे या रास्ते में आने वाली कठिनाइयों का सामना कैसे किया जाएगा? मैंने समझ लिया कि खुद को साबित करना होगा, कमजोर नहीं पड़ना होगा। तभी आज मैं सफल हूं और संतुष्ट भी। ऐसा कह सकती हैं वे लड़कियां, जिन्होंने अलग हटकर काम करने में न कोई शर्म महसूस की और न ही डर।

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जेसीबी क्यों नहीं चला सकती

जेसीबी आपरेट करना अब काजल खारी के लिए आम बात है। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के बिल्लू खारी की जेसीबी में एक बार बड़ी खराबी आ गई। मरम्मत में काफी रुपये खर्च हो गए। ड्राइवर रखने की स्थिति नहीं थी। तब बेटी काजल ने पिता से जेसीबी चलाने की इच्छा जताई। पहले तो उन्होंने असहमति जताई। उन्हें लगा कि लड़की है, पता नहीं चला पाएगी या नहीं। बाद में काजल के संकल्प के आगे वह झुक गए और स्वीकृति दे दी। काजल ने भी कम समय में जेसीबी चलाना सीख लिया और पिता की मददगार बनीं।

काजल का कहना है कि जब महिलाएं ट्रेन और हवाई जहाज चला सकती हैं तो मैं जेसीबी क्यों नहीं चला सकती? इसी सोच ने मुङो जेसीबी चलाने को प्रेरित किया। बीएससी द्वितीय वर्ष की छात्र काजल कहती हैं कि जब जेसीबी का चालक काम पर नहीं आता था तो मुश्किल होती थी। तभी से जेसीबी सीखने का मन बनाया। पुरुषों के वर्चस्व वाले पेशे को अपनाकर खुद पर गर्व महसूस करती हूं। मैं दर्जनों किसानों के खेतों को समतल कर चुकी हूं साथ ही गांव के तालाब को गहरा किया है। छोटे-छोटे काम तो रोज के हैं। अब तो मेरी छोटी बहन भी जेसीबी चलाना सीख रही है। वह कहती हैं कि दो साल पहले गड्ढा खोदते समय गलती के कारण जेसीबी फंस गई, तब मन में खयाल आया कि यह काम छोड़ दें, लेकिन पापा ने हौसला बढ़ाया।

बनाया अलग मुकाम

एलायंस एयर की सीईओ हरप्रीत एडी सिंह ने बताया कि मैं भारत की किसी एयर लाइंस की पहली महिला सीईओ हूं। जब एयर इंडिया में थी तब वर्ष 2015 में पहली महिला बनी जिसे चीफ ऑफ फ्लाइट सेफ्टी बनाया गया। इसमें पायलट्स, इंजीनियर्स और ग्राउंड हैंडलिंग को देखना होता था। मुझसे पहले इस काम में कोई महिला नहीं थी। मैं देश की पहली व्यक्ति (महिला व पुरुष मिलाकर) भी हूं, जो हेड ऑफ क्वालिटी बनी। वर्ष 1990 में पहली महिला पायलट इंस्ट्रक्टर थी। मैं ट्रेनिंग हेड बनी, ऑपरेशंस में आई। धीरे-धीरे आगे बढ़ती गई और अनेक अंतरराष्ट्रीय फोरम्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।

मैं क्वालिफाइड ऑडीटर भी हूं। मेरे पिता एयरफोर्स में थे। इसलिए चाहती थी कि पायलट बनूं। मैंने एनसीसी में प्रधानमंत्री का गार्ड ऑफ ऑनर भी कमांड किया है। मैं एनसीसी के एयर विंग में थी। यहीं से मेरी फ्लाइंग शुरू हो गई थी, लेकिन उस समय महिलाओं के लिए कमर्शियल फ्लाइंग का माहौल ही नहीं था। फिर भी मैं कमर्शियल पायलट का कोर्स करने हिसार गई और यहां से फ्लाइंग लाइसेंस लिया। यहां भी कोई महिला नहीं थी। मैं अकेली मोपेड पर कई किलोमीटर अंधेरे जंगल में जाती थी। फिर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी से मैंने कमर्शियल पायलट का कोर्स किया। वर्ष 1988 में पहली महिला पायलट बनी जिसका एयर इंडिया में चयन हुआ। इसके बाद स्वास्थ्य समस्या होने पर अमेरिका चली गई। वहां मैंने फिर फ्लाइंग लाइसेंस लिया और अपनी रेटिंग ठीक की, लेकिन मुङो भारत आना था। अचानक एयर इंडिया में पायलट इंस्ट्रक्टर की पोस्ट निकली और मैं दोबारा सेलेक्ट हुई। वर्तमान में मैं एक विमानन कंपनी की पूरी जिम्मेदारी निभा रही हूं और मैंने देश को आसमान के जरिए जोड़ने का जिम्मा उठा रखा है।

खींची जिंदगी की गाड़ी

पंजाब के होशियारपुर की पोलियोग्रस्त बेबी बंगा का जीवन काफी संघर्षमय रहा है। उन्होंने भजन गाना शुरू किया, लेकिन कोरोनाकाल में भगवती जागरण नहीं हुए तो घर चलाने के लिए ऑटो रिक्शा चलाने का फैसला किया। अब वह ऑटो चलाकर परिवार का पालन-पोषण कर रही हैं। लुधियाना रेलवे स्टेशन पर महिला कुली माया और लाजवंती यात्रियों का सामान उठाती हैं। हिसार की पिंकी सबसे युवा प्रोफेशनल ट्रैक्टर ड्राइवर हैं। वह खुद तो आगे बढ़ ही रही है। अन्य लड़कियों को भी प्रेरणा दे रही हैं।

जम्मू से कन्याकुमारी तक चलानी है ट्रेन

लोको पायलट समता कुमारी ने बताया कि जब मैं ट्रेन चलाती हूं तो सोचती हूं कि मुङो कुछ अलग करने का मौका मिला है। बचपन से मुङो तेजी से उड़ते हवाई जहाज और तेज भागती ट्रेनें बहुत पसंद थीं। बचपन में रेल पटरी के पास खड़े होकर रेलें देखा करती थी। अब जब हम ट्रेन लेकर स्टेशन पहुंचते हैं तो महिलाएं आकर मिलती हैं और मुङो गर्व भरी नजरों से देखती हैं। गोरखपुर में जब मैं ट्रेनिंग कर रही थी तो वहां रहने वाले मेरे मौसाजी ने कहा था कि बेटा, किसी से कहने में खराब लगता है कि तुम रेल ड्राइवर हो। कोई और पोस्ट ले लो। तब हमने कहा था मौसाजी, यह काम खराब नहीं है। पूवरेत्तर रेलवे की पहली लड़की लोको पायलट हूं मैं। मुङो जम्मू से कन्याकुमारी तक गाड़ी चलानी है साथ ही मैं हाई स्पीड रेल चलाना चाहती हूं।

लाइनवुमेन बन तोड़े बाड़े

अभी तक तो देश में लाइनमैन ही होते आए हैं, लेकिन तेलंगाना की सिरिशा ने देश की पहली महिला लाइनवुमेन बनने का गौरव प्राप्त किया है। एक मिनट में वह बिजली के खंभे पर चढ़ जाती हैं और खराबी ठीक कर देती हैं। वह मात्र 20 साल की हैं। जब लाइनमैन की भर्ती के लिए उन्होंने आवेदन देखा तो उसमें महिलाओं के लिए वर्जति लिखा था, लेकिन उन्होंने इस बात का विरोध किया और लंबी लड़ाई लड़कर अतंत: जीत हासिल की।

तांगेवाली पड़ गया नाम 

पंजाब के गुरुदासपुर की भोली को ज्यादातर लोग भोली तांगेवाली के नाम से ही पुकारते हैं। शराबी पति अचानक घर छोड़कर चला गया तो घर चलाने के लिए उन्होंने तांगा चलाना शुरू किया और स्वाभिमान के साथ परिवार को पाला। जब हालात सुधरे तो ऑटो खरीद लिया, लेकिन लोग उन्हें तांगेवाली ही बुलाते हैं। वह अपने दोनों बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा रही हैं। वह कहती हैं कि कोई काम छोटा नहीं होता।

इंडस्टियल मैन्यूफैक्चरिंग में कदम रखने का मेरा फैसला मुश्किलों से भरा था। जब मैं पॉटलाइन ऑपरेशन टीम में शामिल हुई तो पहली महिला इंजीनियर थी। मेरे सीनियर्स अनिश्चय में रहते थे कि मेरी शिफ्ट किस तरह तय की जाए। वह एक चुनौतीपूर्ण समय था, लेकिन सीनियर्स के समर्थन और कंपनी के मार्गदर्शन में मैंने चीजों को तेजी से सीखा और वहीं से मेरा कॅरियर आगे बढ़ा। मेरे पिता जी ने अपने शुरुआती दिनों में एक मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी में काम किया था। इस वजह से मेरे दिमाग में गूंजती मशीनों, जलते स्मेल्टर्स और लंबे फ्लोर शॉप की छवि बनी हुई थी। इसने मुङो खुद को मैन्यूफैक्चरिंग प्रोसेस से जोड़ने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया। नई जगह पर लोग महिला होने के नाते आपको कम आंकें तो अपनी क्षमता पर विश्वास करें और उनकी सोच को बदलने का काम करें। जाहिर है इसके लिए आपको अपने आप पर भरोसा रखना होगा।

देबमिता चौधरी, केमिकल इंजीनियर, एल्युमिनियम एंड पावर, वेदांता लिमिटेड, झारसुगुडा

ऑटोमोटिव इंडस्ट्री की सरताज

जो लोग ये कहते हैं कि महिलाओं को ऑटोमोबाइल की जानकारी नहीं होती, उनको रश्मि उर्धवार्डेशे को याद कर लेना चाहिए। जब वे ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया की डायरेक्टर थीं तब किसी भी वाहन का डिजाइन उनके यहां से पास होने के बाद ही सड़कों पर उतरता था। वह कहती हैं कि वाहनों को टेस्ट करना, उन्हें सर्टफिाइ करना मेरा काम था। हमारी लैब में सेफ्टी और क्रैश टेस्टिंग होती थी। अब मैं सोसायटी फॉर ऑटोमोटिव इंजीनियर्स की प्रेसिडेंट के रूप में अपनी जिम्मेदारियां निभा रही हूं। मैं महिला इंजीनियर्स के लिए एक किताब वुमेन एट वर्कप्लेस लिख रही हूं। जब मैंने इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग की थी तब कम ही लड़कियां इसमें आती थीं। आप जो करना चाहती हैं उसे करने की हिम्मत पैदा कीजिए। कोई ये नहीं बताएगा कि आपको क्या करना है।

तकनीक की धनी, कौशल पर विश्वास

माइनिंग एवं मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी वेदांता से जुड़ी कई महिलाएं अपने तकनीकी कौशल से कठिन से कठिन कामों को अंजाम दे रही हैं। महिलाओं के लिए असामान्य स्ट्रीम सिविल इंजीनियरिंग को चुनने वाली ज्योति आर. कृष्णा इस कंपनी में प्रबंधक, रेलवे और इंफ्रा हैं। अपने करियर के शुरुआत में वह तूतीकोरिन में एक 400 केटीपी कॉपर स्मेल्टर प्लांट के मेंटिनेंस की प्रमुख थीं। वे कहती हैं, 'महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं। उन्हेंं निडर होने की जरूरत है। किसी बड़े प्रोजेक्ट और परिवार के बीच संतुलन की चिंता न करें। अपने कौशल पर विश्वास रखें।' इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में अपनी स्नातक स्तर की पढ़ाई खत्म करने के बाद सी. लक्ष्मी वर्तमान में लांजीगढ़ में लीड, एसेटइंटेग्रिटी के रूप में काम कर रही हैं। इसी कंपनी में वसुधा सिंघल हैड-कोल प्रोक्योरमेंट हैं।

इलेक्ट्रॉनिक्स इंस्ट्रूमेंटेशन एंड कंट्रोल में अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी करने वाली वसुधा मेटल और माइनिंग मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व का उदाहरण हैं। आज उन्हें एल्युमीनियम एंड कॉपर मैन्यूफैक्चरिंग बिजनेस से जुड़े करीब 13 साल हो गए हैं। वे कहती हैं, 'मैं हर रोज यह साबित करना चाहती हूं कि अगर महिलाओं को मौका दिया जाए तो वे किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकती हैं। भले ही वह काम यह सुनिश्चित करना हो कि देश के सबसे बड़े एल्युमीनियम पावर प्लांट में हमेशा कोयले की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध रहे और प्लांट चलता रहे।'

[जालंधर से नितिन उपमन्यु, भिलाई से बलराम यादव]


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