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Coronavirus : जानिए- कैसे विज्ञान को नकारने की भूल पड़ी भारी

Coronavirus कोरोना के इस संकट में चिकित्सा विज्ञान के जानकार हर किसी के लिए फिजिकल डिस्टेंसिंग को जरूरी बता रहे हैं तो वहीं कुछ लोग धर्म की आड़ में इसे गलत ठहरा रहे हैं।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 06 Apr 2020 09:49 AM (IST)Updated: Mon, 06 Apr 2020 09:49 AM (IST)
Coronavirus : जानिए- कैसे विज्ञान को नकारने की भूल पड़ी भारी
Coronavirus : जानिए- कैसे विज्ञान को नकारने की भूल पड़ी भारी

नई दिल्ली (रणविजय सिंह)। Coronavirus पिछले कुछ दिनों से सबकी जुबान पर निजामुद्दीन का नाम है। कोई तब्लीगी मरकज में एकत्रित हुई भीड़ को बुरा-भला कह रहा है तो कोई अपने तर्कों से वहां हुए जमावडे़ को सही साबित करने में लगा है। डॉक्टर भी अपने तरीके से इस पर बहस में शामिल दिखे। किसी ने फेसबुक पर अपनी बात रखी किसी ने व्हाट्सएप पर। इस बहस में उनकी चिंता यह थी कि धर्मांधता व विज्ञान के बीच तकरार कोई नई चीज नहीं है। पहले भी विज्ञानियों को झुठलाने के प्रयत्न होते रहे हैं। कोरोना के इस संकट में चिकित्सा विज्ञान के जानकार हर किसी के लिए फिजिकल डिस्टेंसिंग (शारीरिक दूरी) को जरूरी बता रहे हैं। वहीं कुछ लोग धर्म की आड़ में इस परामर्श को नकारने की भूल करते दिखे। यही भूल अब भारी पड़ रही है।

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डॉक्टर कहते हैं कि दुनिया भर को अपनी चपेट में ले चुका यह वायरस न तो सरहद देखता है और धर्म। समय विवादों का नहीं, एकजुट रहने का है जिंदगी को लेकर ऐसा खौफ शायद ही पहले कभी किसी ने देखा हो। हर कोई खुद को सुरक्षित रखने के जद्दोजहद में लगा है। उसे अपनी और स्वजनों के स्वास्थ्य की चिंता सताए जा रही है। वहीं डॉक्टर, नर्स व पैरामेडिकल कर्मचारी है जिन्हें खुद को सुरक्षित रखने के साथ-साथ दूसरों को कोरोना से बचाने की चुनौती भी है। वे मोर्चे पर डटे हुए हैं, लेकिन लॉकडाउन के बीच सड़कों पर कभी फल-सब्जी, राशन लेने वालों की तो कभी धार्मिक स्थलों की भीड़ देखकर उनकी धड़कनें भी बढ़ जाती हैं।

सफदरजंग अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) के एक डॉक्टर ने तो बाकायदा एक वीडियो बनाकर यह संदेश देने से नहीं चूके कि कुछ लोगों की मनमानी से सबको नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह समय विवादों का नहीं है, बल्कि एकजुट होकर कोरोना को हराने का है।  ऐसे में सरकारी आदेश का पालन करें व घरों में ही रहें।

व्हाट्सएप ग्रुप पर सरकार की नजर

कोरोना के इलाज में जुटे अस्पतालों के डॉक्टरों को इन दिनों खामोश रहने का निर्देश मिला हुआ है। इस वजह कोरोना के असल योद्धा तो कुछ बोल भी नहीं पा रहे हैं। सफदरजंग अस्पताल प्रशासन ने तो संस्थान में कार्यरत उन सभी डॉक्टरों व कर्मचारियों से मोबाइल नंबर व ईमेल का डिटेल मांग लिया है, जो व्हाट्सएप गु्रप के एडमिन हैं। ताकि उनकी हर गतिविधियों और उनके द्वारा सोशल मीडिया में किए गए पोस्ट पर नजर रखी जा सके। इस फरमान से डॉक्टर भी सकते में आ गए हैं। हालांकि इसका कारण यह बताया गया है कि इन दिनों सोशल सोशल मीडिया पर कोरोना को लेकर तरह-तरह की फर्जी खबरें व अफवाह चल रही है। इसे रोकने के लिए यह पहल की गई है। कुछ हद तक यह बात सही हो सकती है, लेकिन इस फरमान की जानकारी मिलते ही अब दूसरे अस्पतालों के डॉक्टर भी सजग हो गए हैं।

कोरोना से लड़ने वाले योद्धा बनाए गए परिवहन संयोजक

कोरोना का सबसे नजदीक से जो सामना कर रहे हैं वे हैं डॉक्टर और नर्स, इसलिए उन्हें अग्रिम पंक्ति का योद्धा भी कहा जा रहा है। जैसे-जैसे कोरोना आक्रामक रुख अख्तियार कर रहा है वैसे-वैसे सरकार की रणनीति भी बदल रही है। जरूरत पड़ने पर मेडिकल के छात्रों व आयुष के डॉक्टरों को भी मोर्चे पर तैनाती की रणनीति बनाई गई है। वहीं एम्स में 25 नर्सिंग कर्मचारियों को इन दिनों परिवहन सुविधा संभालने की जिम्मेदारी दे दी गई है। ऐसे में एम्स में चर्चा है कि ऐसे वक्त में इन योद्धाओं को कोरोना से निपटने के लिए लगाना चाहिए था, क्योंकि इनमें से कइयों के पास गंभीर मरीजों की देखभाल का लंबा अनुभव है। उनका अनुभव कोरोना के मरीजों की देखभाल में काम आ सकता था। लेकिन ऐसे वक्त में परिवहन संयोजक बनाने का क्या औचित्य। वैसे भी एम्स में नन क्लीनिकल कर्मचारियों की कमी नहीं है।


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