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Delhi Violence: दिन में दहशत और रात में पसरा सन्नाटे का खौफ

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में पुलिस और प्रशासन भले ही हालात काबू में होने का दावा कर रहे हैं लेकिन लोगों के मन से दहशत नहीं जा रही है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 28 Feb 2020 12:59 AM (IST)Updated: Fri, 28 Feb 2020 12:59 AM (IST)
Delhi Violence:  दिन में दहशत और रात में पसरा सन्नाटे का खौफ
Delhi Violence: दिन में दहशत और रात में पसरा सन्नाटे का खौफ

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। Delhi Violence: उत्तर-पूर्वी दिल्ली में पुलिस और प्रशासन भले ही हालात काबू में होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन लोगों के मन से दहशत नहीं जा रही है। दंगों की शुरुआत के बाद पांच दिन बाद भी लोगों में खौफ साफ दिख रहा है। दंगा प्रभावित इलाकों में ज्यादातर दुकानें, शिक्षण-संस्थान व अन्य प्रतिष्ठान बंद ही रहे।

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दंगा प्रभावित इलाकों में पांचवें दिन भी घरों के अंदर कैद रहे लोग

मौजपुर, भजनपुरा घोंडा, करावल नगर, चांद बाग, शिव विहार आदि दंगा प्रभावित इलाके में रैपिड एक्शन फोर्स ने रातभर फ्लैग मार्च किया। इसके बावजूद लोगों में खौफ है। मौजपुर चौक पर रहने वाले बाबू राव का कहना है कि उनका परिवार पांच दिन से घर में कैद है। अब गलियों में पुलिस और पैरा मिलिट्री के जवानों ने मोर्चा तो संभाल लिया है लेकिन डर उनके मन से नहीं जा रहा है।

दोपहर एक बजे बाबू राव आसपास रहने वाले लोगों के साथ घर के बाहर समूह में खड़े थे। लोगों का कहना था कि उन्होंने सारा काम धंधा अभी बंद कर दिया है। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को घरों के अंदर ही रहने की हिदायत दी गई है। वे लोग घरों के बाहर इसलिए खड़े हैं क्योंकि कहीं से भी अचानक दंगाइयों को आते देखें तो बचने के लिए समय रहते सही निर्णय ले सकें।

रात में दहशत और सन्नाटे में नींद नहीं आती

दहशत की वजह से वे लोग दिन भर घरों के आसपास पहरेदारी कर रहे हैं, लेकिन रात में सुरक्षाकर्मी उन्हें घर के बाहर नहीं निकलने देते तो मजबूरन घरों में अंदर चले जाते हैं, लेकिन दहशत और सन्नाटे में नींद नहीं आती है। मौजपुर के ही सुभाष मिश्रा का कहना था कि खौफनाक मंजर उनके दिमाग से नहीं निकल पा रहा है। दंगाइयों को रोकना मौत को गले लगाना था। अब भी वे लोग रात को जागकर पहरा देते हैं।

लापता लोगों की तलाश में भटक रहे स्वजन

हिंसा के दौरान लापता हुए कई लोगों का अभी तक पता नहीं चला है। गुरु तेग बहादुर (जीटीबी), जग प्रवेश चंद्र और लोक नायक जयप्रकाश (एलएनजेपी) अस्पताल में लापता स्वजनों की तलाश में भटकते रहे। इस दौरान उन्होंने जीटीबी अस्पताल की मोर्चरी में रखे शवों में दंगे में लापता हुए स्वजनों की तलाश की। इनमें से कई लोगों को अपने परिजनों के शव यहां मिले तो करीब 10 से ज्यादा लोगों को स्वजनों का पता नहीं चला।


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