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दिल्ली जल बोर्ड के 2 पूर्व अधिकारियों को 3 साल की जेल, जानिए क्या है पूरा मामला

दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली जल बोर्ड में हेराफेरी करने वाले दो अधिकारियों को 3 साल की सजा सुनाते हुए जेल भेज दिया है। दोनों अधिकारियों पर 47.76 लाख रुपये का गबन करने के आरोप में साल 2009 में सीबीआई ने केस दर्ज किया था।

By AgencyEdited By: Nitin YadavPublished: Sun, 19 Mar 2023 04:00 PM (IST)Updated: Sun, 19 Mar 2023 04:00 PM (IST)
दिल्ली जल बोर्ड के 2 पूर्व अधिकारियों को 3 साल की जेल, जानिए क्या है पूरा मामला
दिल्ली जल बोर्ड के 2 पूर्व अधिकारियों को 3 साल की जेल।

नई दिल्ली, पीटीआई। दिल्ली की एक अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय(ED) द्वारा दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में दिल्ली जल बोर्ड के दो पूर्व अधिकारियों को यह कहते हुए तीन साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है कि वह इस मामले में "नरम रुख" अपना रहा है।

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ईडी ने दिसंबर, 2009 में 47.76 लाख रुपये की हेराफेरी का मामला दर्ज किया था। वहीं, सीबीआई कोर्ट ने साल 2012 में सुनवाई करते हुए राज कुमार शर्मा को पांच साल तो रमेश चंद चतुर्वेदी को चार साल की सजा सुनाई थी। हालांकि, एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग एजेंसी ने मार्च 2021 में वर्तमान अदालत में 11 साल से अधिक की देरी और सीबीआई मामले में अभियुक्तों द्वारा अपनी सजा पूरी करने के लगभग चार साल बाद शिकायत दर्ज की।

विशेष न्यायाधीश अश्विनी कुमार सर्पाल ने शनिवार को पारित किए एक आदेश में कहा गया है, "आरोपी व्यक्तियों ने यह महसूस करने के बाद कि सीबीआई अदालत द्वारा अनुसूचित अपराधों में दोषी ठहराए जाने के बाद मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम (पीएमएलए) मामले में उनके पास कोई बचाव नहीं है और उन्होंने अपनी मर्जी से अपना गुनाह स्वीकार लिया है।"

न्यायाधीश ने आगे कहा, "वह पहले ही अनुसूचित अपराधों में क्रमशः पांच और चार साल की सजा काट चुके हैं और साथ ही सीबीआई मामले और अन्य परिस्थितियों में अपने बचाव के लिए पहले से ही गबन या धोखाधड़ी के पैसे खर्च कर चुके हैं ... इसलिए एक उदार रुख रखते हुए, दोनों आरोपी व्यक्तियों को तीन साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई और प्रत्येक को 5,000 रुपये का जुर्माना भी देना होगा।"

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि आरोपी व्यक्तियों की प्रस्तुतियों पर ध्यान देते हुए, जैसे कि दोनों ने अपनी सरकारी नौकरी खो दी, परिवार की जिम्मेदारी निभाना रहे हैं। इस पर न्यायाधीश ने कहा कि ये "वास्तविक कारण" हो सकते हैं लेकिन अदालत "असहाय" और तीन साल से कम की सजा नहीं दे सकता। इस मामले पर ईडी की ओर से विशेष लोक अभियोजक अतुल त्रिपाठी पेश हुए।

कम-से-कम सजा में छूट का नहीं है कोई प्रवधान

न्यायाधीश ने यह भी कहा किल PMLA के प्रावधान के अनुसार, न्यूनतम सजा तीन साल की थी और इसका मतलब यह था कि अगर अदालत ने "बहुत नरम रुख" अपनाया, तो भी कम-से-कम सजा को तीन साल से कम नहीं किया जा सकता। जब किसी भी कानून के तहत न्यूनतम सजा निर्धारित है तो आरोपी को प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट का कोई लाभ नहीं दिया जा सकता है और अदालत के पास कम-से-कम सजा देने का कोई विवेक नहीं बचता।"

सीबीआई का मामला आधिकारिक कर्तव्य का निर्वहन करते हुए लोक सेवक के साथ धोखाधड़ी, गबन के अपराधों से संबंधित था, लेकिन वर्तमान शिकायत उक्त अपराधों की आय का उपयोग करने, प्राप्त करने, छुपाने या दावा करने आदि से संबंधित है, जो धन की राशि है। लॉन्ड्रिंग और इस प्रकार एक अलग अपराध बनता है और'ऐसी स्थिति में दोहरे खतरे का सवाल ही नहीं उठता।' वहीं, अदालत ने वर्तमान शिकायत मामले में सीबीआई मामले में दी गई और काटी गई सजा को समायोजित करने से भी इनकार कर दिया।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि ईडी द्वारा दर्ज की गई शिकायत में देरी के कारण अब समवर्ती सजा देने की यह प्रबल संभावना आरोपी व्यक्तियों से छीन ली गई है, लेकिन वर्तमान शिकायत मामले को दर्ज करने की कोई सीमा नहीं थी और दरअसल, सिर्फ यह तथ्य कि ईडी कई सालों के बाद खुद जागा है। साथ ही अदालत ने कहा, तीन साल से कम की सजा देने या इस सजा को सीबीआई मामले में पहले की सजा के साथ समायोजित करने का कोई आधार नहीं है।

खजांची और मीटर रीडर थे दोषी कर्मचारी

आपको बता दें कि राज शर्मा दिल्ली जल बोर्ड के पश्चिमी जोन में खजांची के पद पर कार्यरत थे, जबकि रामेश चंद चतुर्वेदी 2008 में सहायक मीटर रीडर थे। ईडी की ओर से पेश हुए वकील के अनुसार, फरवरी 2008 से दिसंबर 2008 तक दोनों ने रिकॉर्ड में हेराफेरी करके और जालसाजी करके एक साजिश रची और फिर बैंक में लगभग 47.76 रुपये जमा न करके दिल्ली जल बोर्ड के पैसे का गबन करते हुए धोखा दिया। इसके आरोप में सीबीआई ने साल 2009 में दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।


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