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जंगली घास की खपत में दिल्ली तीसरे और न्यूयार्क पहले स्थान पर, तीसरा स्थान कराची को मिला

जंगली घास के इस्तेमाल में देश की आर्थिक राजधानी मुंबई भी बहुत पीछे नहीं है। दुनियाभर के 120 शहरों की सूची में मुंबई छठे स्थान पर है।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 10 Sep 2019 08:26 AM (IST)Updated: Tue, 10 Sep 2019 08:33 AM (IST)
जंगली घास की खपत में दिल्ली तीसरे और न्यूयार्क पहले स्थान पर, तीसरा स्थान कराची को मिला

नई दिल्ली, एजेंसी। जंगली घास के खपत के मामले में वैश्विक स्तर पर 38.3 टन के साथ देश की राजधानी दिल्ली को तीसरा स्थान हासिल हुआ है, जबकि अमेरिका का न्यूयार्क शहर (77.4 टन) पहले तो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का शहर कराची (42 टन) दूसरे स्थान पर है। इस कड़ी में देश की आर्थिक राजधानी मुंबई भी बहुत पीछे नहीं है। 120 शहरों की सूची में मुंबई छठे स्थान पर है। मुंबई शहर में 32.4 टन भांग की खपत होती है।  यह आकड़ा 2018 के अध्ययन के आधार पर निकाला गया है और यह सर्वे जर्मनी की संस्था एबीसीडी ने किया है।

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सर्वे के मुताबिक, दो भारतीय शहरों (दिल्ली और मुंबई) कराची (पाकिस्तान) के अलावा, अन्य चार शहर काहिरा, लंदन, मॉस्को और टोरंटो हैं। बता दें कि ये दुनिया के ऐसे शहर हैं, जहां भांग का सेवन वैध नहीं है। हालांकि टोरंटो ने इस साल की शुरुआत में इसे वैध कर दिया है। दिलचस्प बात यह है कि एम्स्टर्डम शहर, जिसका उल्लेख हर खरपतवार प्रेमी की बाल्टी सूची में किया जाएगा, को 3.6 टन भांग की वार्षिक खपत के साथ 56 वां स्थान दिया गया है। ऐसे में बमुश्किल दसवां हिस्सा जो दिल्ली में इस्तेमाल हुआ।

भांग के मामले में सबसे सस्ती सूची में  अन्य लैटिन अमेरिकी शहरों में कोलंबिया में बोगोटा, पराग्वे में असुनियन, पनामा में पनामा सिटी और उरुग्वे में मोंटेवीडियो हैं।

बता दें कि जंगली घास अब वाहनों के लिए ईंधन बनाने में काम आने वाली है। इस दिशा में हरकोर्ट बटलर प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एचबीटीयू), कानपुर के बायो केमिकल इंजीनियरिंग विïभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. ललित कुमार सिंह ने बड़ी सफलता हासिल की है। एचबीटीयू के डॉ. ललित कुमार सिंह ने जंगली घास (कांस) से सस्ता एथेनॉल बनाने में सफलता प्राप्त की है। डॉ. सिंह ने तीन चरणों में कांस घास से एथेनॉल बनाने की प्रक्रिया विकसित की है। उनके शोध पत्र को अमेरिका के बायो रिसोर्स टेक्नोलॉजी और बायो केमिकल इंजीनियङ्क्षरग जर्नल ने प्रकाशित किया है। इस तकनीक पर लिखी उनकी पुस्तक को अमेरिकी प्रकाशक जॉन बिले एंड संस पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है। डॉ. सिंह ने तकनीक का पेटेंट भी फाइल कर दिया है।

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