अब पचास साल तक खराब नहीं होंगी कुतुबमीनार की दीवारें, जानें क्या हुआ बदलाव
विश्व धरोहर कुतुबमीनार को कबूतरों और चमगादड़ों से बचाने के लिए शुरू किया गया प्रयोग सफल रहा है। पिछले चार माह से कुतुबमीनार के अंदर एक भी कबूतर और चमगादड़ प्रवेश नहीं कर सका है।
नई दिल्ली, जेएनएन। विश्व धरोहर कुतुबमीनार को कबूतरों और चमगादड़ों से बचाने के लिए शुरू किया गया प्रयोग सफल रहा है। पिछले चार माह से कुतुबमीनार के अंदर एक भी कबूतर और चमगादड़ प्रवेश नहीं कर सका है। कुछ दिन पहले किए गए निरीक्षण में यह बात सामने आई है।
जाली लगा कर रोक रहे चमगादड़
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) का कहना है कि मीनार के रोशनदानों में स्टील की मजबूत जालियां लगाई गई हैं, जोकि खराब होने वाली नहीं है। अगले 50 साल तक रोशनदानों पर काम कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
यहां साल भर रहती है पर्यटकों की भीड़
कुतुबमीनार एएसआइ के उन स्मारकों में शामिल है, जिनमें साल भर पर्यटकों की भीड़ रहती है। पिछले साल एएसआइ ने कुतुबमीनार में संरक्षण कार्य कराने की योजना बनाई थी। मीनार का सर्वे कर यह पता किया गया कि उसमें लगे कौन-कौन से पत्थर खराब हुए हैं।
खराब पत्थर की पहचान के दौरान कबूतर और चमगादड़ का पता चला
इस दौरान पुरातत्व विशेषज्ञों ने पाया कि मीनार के अंदर बड़ी संख्या में चमगादड़ और कबूतर हैं। सीढ़ियों के साथ हर मंजिल पर बने रोशनदान खुले हुए हैं, जिससे कबूतर अंदर आ जाते हैं। अध्ययन किए जाने के बाद संरक्षण कार्य शुरू किया गया।
बदले गए खराब पत्थर
इसके तहत खराब पत्थर बदले गए। रोशनदानों में स्टील की मोटी जालियां लगाई गई। परिसर को बेहतर भी किया गया है। परिसर से खराब पत्थर हटाए गए ताकि पर्यटक आसानी से चल-फिर सकें। परिसर की दीवारों पर लोहे की ग्रिल लगाई गई हैं।
प्रवेश और निकास हुआ बेहतर
प्रवेश और निकास द्वार बेहतर किए गए हैं। इसी स्मारक में सबसे पहले मेट्रो की तर्ज पर टोकन से स्मारक में प्रवेश की योजना शुरू की गई थी। स्मारक में प्रवेश और निकास के लिए अलग-अलग रास्ते बनाए गए हैं। परिसर में अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर शौचालय बनाए गए हैं।
लगातार हो रहा संरक्षण का काम
पेयजल की उचित व्यवस्था की गई है। एएसआइ के प्रवक्ता डीएन डिमरी बताते हैं कि सभी स्मारकों में पर्यटकों के लिए सुविधाएं बेहतर करने के निर्देश दिए गए हैं। कुतुबमीनार में भी उसी के तहत काम किया गया है। संरक्षण कार्य के साथ हमारा ध्यान सुविधाएं बेहतर किए जाने पर अधिक है।
कुतुबमीनार की खासियत
कुतुबुद्दीन एबक ने वर्ष 1199 में इस मीनार का निर्माण शुरू कराया था। बाद में उसके दामाद एवं उत्तराधिकारी शमशुद्दीन इल्तुतमिश ने 1368 में इसे पूरा करवाया। यह यूनेस्को की विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल है। कुतुबमीनार की ऊंचाई 72.5 मीटर है और इसमें 379 सीढि़यां हैं।