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दिल्ली-एनसीआर की हवा में बढ़े कैंसर कारक प्रदूषक तत्व

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली दिल्ली-एनसीआर की पहले से ही प्रदूषित और जहरीली हवा में कैंसर कारक तत्व भी

By JagranEdited By: Published: Fri, 30 Jun 2017 12:56 AM (IST)Updated: Fri, 30 Jun 2017 12:56 AM (IST)
दिल्ली-एनसीआर की हवा में बढ़े कैंसर कारक प्रदूषक तत्व
दिल्ली-एनसीआर की हवा में बढ़े कैंसर कारक प्रदूषक तत्व

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली

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दिल्ली-एनसीआर की पहले से ही प्रदूषित और जहरीली हवा में कैंसर कारक तत्व भी तेजी से बढ़ रहे हैं। इन कार्सेजैनिक तत्वों के बारे में जनता तो क्या, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों तक को जानकारी नहीं है। इन्हें मापने की क्षमता भी किसी बोर्ड के पास नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की एक शोध रिपोर्ट में सामने आया है कि दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा में पोलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाईड्रोकार्बन, डायोक्सीन, बेंजीन और पेस्टीसाइड की मात्रा काफी खतरनाक स्तर पर पहुंच रही है। सीपीसीबी ने इन सभी प्रदूषक तत्वों को कार्सेजैनिक (कैंसरजन्य) की श्रेणी में रखा है।

मौजूदा दौर में प्रदूषक तत्वों में मोटे तौर पर पर्टीकुलेट मैटर 10, पार्टीकुलेट मैटर 2.5, सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड, ओजोन, कार्बन मोनोक्साअड, अमोनिया, लेड, आर्सेनिक और निकेल को मापा जाता है। इस सूची में बेंजो-ए-पायरिन और बेंजीन शामिल जरूर हैं, लेकिन इन पर बहुत ध्यान कभी नहीं दिया गया।

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नए प्रदूषक तत्वों की स्थिति

हवा में बेंजो-ए-पायरीन या पोलीसाइक्लिक एयरोमैटिक हाइड्रोकार्बन की मात्रा 1 नैनोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन यह 5 नैनोग्राम तक पहुंच गई है। डायोक्सीन की मात्रा 0.1 नैनोग्राम होनी चाहिए, जोकि 0.4 से 0.5 नैनोग्राम तक है। बेंजीन की मात्रा 5 माइक्रोग्राम तक होनी चाहिए, लेकिन यह 10 से 15 माइक्रोग्राम तक पहुंच गई है।

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ये हैं मुख्य कारण

वाहनों का बढ़ता धुंआ, कोयला जलाना, वेस्ट टू एनर्जी प्लांट (ओखला), बायोमेडिकल कचरा जलाना, चिमनियों का धुंआ, औद्योगिक कचरा जलाना।

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अगस्त में होगी विशेष कार्यशाला

राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को नए प्रदूषक तत्वों की जानकारी देने के लिए सीपीसीबी ने अगस्त में तीन दिन की विशेष कार्यशाला रखी है। इसमें अधिकारियों को यह भी बताया जाएगा कि इन्हें मापा और रोका कैसे जाए।

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कैंसर कारक इन तत्वों की ओर पहले कभी इतना ध्यान नहीं दिया गया। इसकी एक प्रमुख वजह यह रही कि किसी भी राज्य की प्रयोगशाला में इतने महीन प्रदूषक तत्वों को मापने की सुविधा ही नहीं है, लेकिन जिस तरह आबोहवा में इनकी मात्रा बढ़ रही है, इन पर ध्यान देना जरूरी है। इस दिशा में विशेष दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं। जल्द ही सभी प्रदूषण बोर्ड को इसकी जानकारी दी जाएगी।

-डॉ. एस के त्यागी, वैज्ञानिक 'ई' एवं हेड एन्वायरमेंटल ट्रेनिंग यूनिट, सीपीसीबी


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